रविवार, 15 नवंबर 2015

नथूराम जी के चरणो में कोटि कोटि नमन प्रणाम ! नथूराम विनायक गोडसे जी की कुर्वानी का आंकलन सम्पूर्ण राष्ट्र में होना जरुरी है ! जरुरी सिर्फ इस लिए नहीं की उन्होंने गाँधी का बध किया बल्कि इस लिए भी की उन्होंने भारत के एकता अखण्डता स्वतंत्रता के हितार्थ फाँसी का फंदा अपने गले में जयमाला की तरह पहन लिया था ! अन्तिम शब्द जो अमर हुए वो जय हिन्दू राष्ट्र और अखण्ड भारत थे ! यदि ऐसे संस्कारी सपूत के देश भक्ति के सम्मान को सरकार हिन्दू महासभा की उदण्डता समझती है तो हमें अपनी उदण्डता पर गर्व है ! देश भर के लगभग 270 शहरो में आज 15 नवम्बर 2015 को नथूराम जी के बलिदान को शौर्य दिवश के रूप मनाया ! हिन्दू महासभा ने नाथूराम जी की अस्थियों को विषर्जित करने का संकल्प लिए जो गोडसे जी की अंतिम इक्षा के अनुरूप सिन्धु नदी के भगवा ध्वज के छाँव में प्रबाहित होने पर विषर्जित होने की प्रतीक्षा में आज भी हिन्दू सपूतो की बाट जोह रही है ! हमारा संकल्प भयमुक्त सबल सक्षम अखण्ड हिन्दू राष्ट्र का निर्माण करना था !है  !और रहेगा ! हिन्दू महासभा के समस्त सपूतो को हमारा सादर प्रणाम  !

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

कितना कस्ट होता है भाजपा और आर एस एस को जब हिन्दू अपने धर्म रक्षा की बात करता है ! इनको देख कर तो गिरगिट भी अपना रंग बदलना भूल जाये !सत्ता में आने से पहले जिस गाय की आरती उतारते थे अब उसकी हत्या पर रोक के बेहूदे बयान देकर ये खुद के हिन्दू होने पर संदेही सावित हो रहे है ! देश गऊ माता के क़त्ल को बंद करने की बात करता है तो भाजपा के महासचिव राम माधव लोगो को यह बताते है की अरव जहा इस्लाम का जन्म हुआ बहा ऊट होते है गाय नहीं ! तो परम आदर्णीय भाजपा और आर एस एस को यह समझ में क्यों नहीं आता की वो भारत के भीतर सरकार की सहमति से देश भर में कटाने बलि गायो की बात है जिसे बंद करने की इनमे हिम्मत नहीं ! देश के साथ खिलबाड़ और हिन्दुत्व के अपमान की जो परंपरा इन्होने डाली है बाह निंदनीय है !ये बही राम माधव है जिन्होने कभी कहा था हिन्दू माने चोर कला और लुटेरा ! हमने इस बात का इन्हे करारा जवाब दिया था ! गऊ हत्या को आदर्श मानाने बाले हिन्दुओ का dna होना जरुरी है ! ऐसा सत्ता लोभ ऐसी ओछी सोच बाले बयानों से हिन्दुओ को दुःख हुआ भाजपा और आर एस एस को राम माधव के बयान पर माफ़ी मांगनी चाहिए !

सोमवार, 3 अगस्त 2015

हिन्दू खुद को हिन्दू कह कर अब न तो स्वयं में गर्व महसूस करेगा नहीं उसे देवालय में पूजा अर्चना की इजाजत ही होगी...... ? इस बात को भोजशाला के गर्भ गृह में हवन पूजन में बिघ्न पैदा कर हिन्दुओ की हड्डियां चकनाचूर करने बलि भाजपा सरकार ने पूर्णताः सिद्ध करदिया था ! उसमे बची कुची कसर को आज पूरा कर दिया गया ! जब हिन्दू महासभा के सांस्कारिक लोगो को जो सावन के प्रथम सोमबार को कशी विशवनाथ में जलाभिषेकः ( पूर्व नियोजित कार्यक्रम ) करने के पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार ने बंदी बना लिया हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष कमलेश तिवारी सहित सैकड़ो हिन्दू महासभाइयो शिव भक्तो का अपराध क्या हिन्दू होना , शिव के जलाभिषेकःकी तैयारी करना या सरकार की चाटुकारिता न करना है , उत्तर प्रदेश सरकार को इस बात को स्पस्ट करना चाहिए ! हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा की मध्य प्रदेश ,छत्तिसगढ़ ,राजस्थान,ग़ुजरात,महाराष्ट्र से आये हिन्दू महासभा के शालीन कर्यकर्ताओ ने भीड़ में शामिल हो अपनी पहचान छुपाते हुए विशवनाथ में जलाभिषेकःकिया ! हमारा मकसद शोर सरावा करना नहीं बल्कि अपने लक्ष्य को किसी भी तरह पूरा करना था ! हमारे कुछ साथियो की गिरफ़्तारी से हमारे मकसद अब प्रभित होने बाले नहीं !क्यों की अब हमभी ऐसी सरकारों को चकमा देना सीख गए है, जो पूर्णतः हिन्दू बिरोधी है! 

शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

      तुम जिओ हजारो साल साथियो मै तो मरने को ही जन्मा हू ,
अब्दुल कलाम जी के योगदान से भारत गौरव महसूस कर रहा है ,ऐसे सपूत किसी जाती धर्म के नहीं बल्कि राष्ट्र के होते है ! परन्तु जातीबादी उन्माद में ऐसे पुरुष के महत्व के नज़ारे चिन्तनीय है ! जब कलाम साहब को अंतिम बिदाई देने किलो मीटरों की कतार में खड़े भारतीय सिसक रहे थे ! तब यकूव मेनन जैसे दुर्दान्त आतंकी की मौत का मातम मानते मुसलमान यह क्यू भूल गए की मुंबई बमब्लास्ट में सिर्फ हिन्दू भर नहीं मुसलमान ईशाई बौद्धया अर्थात इंसान का लहू बहा था ! न्यायलय ने जिसे अपराधी घोषित किया उसे नेक इंसान कहकर उसके सव यात्रा में शामिल लाखो की संख्या बाला समुदाय आखिर क्या सिद्ध करना चाहता है !
यह हिन्दू भर नहीं सम्पूर्ण भारतीयों के लिए चिंतन की बात है के भारत रत्न बाले कलाम को श्रद्धांजलि देनी की जरुरत उन्हों महसूस नहीं हुई जो यकूव मेनन की मौत में ग़मगीन थे ! अर्थात आतंकी पूजन की प्रथा बाला समाज अब चिन्तनीय है ! हिन्दू जागो रे जागो
 

सोमवार, 11 मई 2015

     अन्धा बांटे रेबड़ी चीन्ह चीन्ह कर दे ..... बाप रे बाप कोर्ट के आदेश की अबमानना समझो कोर्ट ऑफ़ कंटेम्ट का भय लोगो को न्यायालय के सम्मान हेतु मजबूर करदेता था. ये  तब की बात थी जब न्याय में नैतिकता दिखती थी परन्तु जब न्याय का व्यापार होरहा हो.न्यायालय के फैसले जातिगत आधार पर होरहे हो .न्यायपालिका की अपने फैसले की सत्यता और असत्यता की कोई जुम्मेदारी न हो. आम जानो को ये लगने लगे की अत्याचार सहलेना ज्यादा सस्ता है न्यायालय के पीसने से. तो विचारणीय हो जाता है की देश में कितनी दादागिरी है न्यायपालिका की और कितना अविश्बास है न्यायाधीशों के प्रति. यदि यही हाल रहे तो न्यायिक प्रक्रिया से त्रस्त तबका हथियार उठाकर अपने सम्मान सम्पत्ति की रक्षा हेतु विबस हो जायेगा तब क्या होगा जब हर फैशला फरियादी की बन्दूक करेगी. क्या यह चिन्तनीय नहीं है. क्या न्याय में समानता सहजता सत्यता तत्परता को लागू करने की जरुरत नहीं है .क्या न्याय सब के लिए सुलभ हो इस ओऱ प्रयास नहीं होना चाहिए. क्या देश के दमन हेतु बनाये अंग्रेजो के कानून को समाप्त कर भारत के अनुरूप संबिधान का निर्माण नहीं होना चाहिए. यदि इसकी जरुरत है तो ख़ामोशी तोड़ो नाद करो हिन्दू राष्ट्र बनाने का . हिन्दू जागो रे जागो 

सोमवार, 4 मई 2015

एक टिटिहरी ( चिड़िया ) थी जो ऊँचे ऊँचे आसमानो में उड़ाती और दूसरी चिडिओ को हेय दृस्टि से देखती थी उस घमण्डी टिटिहरी को अपने बच्चो की भी परबाह नहीं होती दिन भर आवारा गर्दी करने के बाद रात में जब बच्चो के पास पहुचती तो बच्चे भूख प्यास से तड़फ रहे होते जब वो अपनी माँ से पूछते की दाना पानी कहा है  तुम तो खाली हाँथ लौट आई जब की बोल के गई थी की जल्दी ही अच्छे पकवान लाओगी हम सब मजे से दावत उड़ायेंगे तो टिटिहरी बड़ी बेशर्मी और दृढ़ता के साथ अपनी चोंच अपने पँख में छुपा कर टिया टिया करते हुए अपने पैरो को ऊपर आसमान की और उठा कर कहती है की ये जो ऊपर आसमान देखते हो न उसको हमने ही अपने पंजो से थाम रक्खा है वरना ये निचे गिरजायेगा और दुनिया खत्म हो जाएगी बच्चे अपनी महान टिटिहरी माँ की ऒर गर्व से देखते गर्मी ठण्डी बरसात में अपनी माँ के द्वारा उठाये गए आसमान के निचे अपना जीवन यापन करते और विरासत में मिली सीख और परम्परा को आगे बढ़ाने खुद को तैयार करने में लगजाते ऐसी थोथी परम्परा को थोपने बाली टिटिहरी से किसका भला होगा ये तो टिटिहरी ही जाने !



शुक्रवार, 1 मई 2015





जंगल में शेर का बहोत आतंक था सरे जानवर परेशान थे सबने संगोष्ठी की और और शेर से मिलने की प्लानिंग हुई निर्धारित समय पर सबने शेर से मुलायत की और बदलते हुए बाताबरण की बात करते हुए प्रजातंत्र  प्रणाली अर्थात चुनाव हेतु शेर को मनालिया गया चुनाव की घोषणा हुई शेर के खिलाफ कोई परचा भरने को तैयार न हुआ तो बहोत दिनों से किट किट करता उछाल कूद से सब का ध्यान अपनी और आकर्षित करने बाले बन्दर ने कहा मै शेर की दादागिरी खत्म करुग जंगल में अब कोई भी जानबर डरेगा नहीं न किसी का शिकार ही किया जायेगा सब को घर सबको खाना सबको पानी उपलब्ध कराया जयेगा यह सुन सबने खूब तालिया पिटी मंकी दादा विकिश पुरुष के रूप में प्रचारित हुए और चुनावो में बहुमत से विजयी हुए उनकी सेवा में सेवक रोज फल लेकर पहुँचजाते हाथी भालू घोड़े सभी मंकी शासन का गुड़गान करने में लगे रहते परन्तु परिवर्तन कही दिखाई नहीं दे रहा था बही अराजकता बही आतंक यथाबत बना हुआ था फरियादी परेशान थे कब अच्छे दिन आयेगे किसी की समझ नहीं आ रहा था शेर का जब मन होता अपना शिकार करता बल्कि अपनी पराजय से नाराज होने के कारण जानवरो का अपने भोजन की जरुरत से ज्यादा मार देता था ! सारे जंगल में दहसत का बातावरण था पडोसी जंगली जब मन होता आते शिकार करते और लौट जाते कही भी कोई सुरक्षित नहीं था न ही कोई व्यबस्था थी इस अत्याचार की कही सुनबाई न थी तो सभी जंगल बासी इकट्ठे होकर मंकी राजा के पास गए हालत न सुधरने की दसा में जंगल छोड़ जाने या आत्महत्या करलेने की धमकी दी तो मंकी राजा को गुस्सा आगया उसने शेर को ललकारा सब को लगा आज शेर की खैर नहीं आगे  आगे मंकी चले पीछे हाथी घोडा भालू गधे सब शेर के माद की और चल पडे  करीब पहुंच कर मंकी जी ने शेर को फिर ललकारा दन्त किट किटा कर शेर को माद से बहार निकलने को कहा शेर ने माद से निकलते हुए दहाड़ तो मंकी राजा पेड़ में चढगए गुस्साए शेर ने सैकड़ो जानवरो को मौत के घाट उतार दिया मंकी कभी इस पेड़ कभी उस डाली में उछाल कूद करता रहा ! निरीह निर्दोष जानवर चीखते रहे और मंकी महराज शेर को मर देने की धमकी देते दनादन उछाल कूद में लगे रहे अब ने निरन्तर घटने बाली घटना होगी  जब जब राज दरबार सजता तब तब  मंकी महराज से लोगो की शिकायत करते रोज रोज की शिकायत से दुःखी मंकी जी ने बड़े गम्भीर उद्वोधन में सभी को समझते हुए कहा  मै तुम सब का राजा हु तुम्हारा दुःख हमारा दुःख है तुमने हमें पांच वर्षो के लिए चुना है तुम सब की भलाई के लिए भागना कोशिश करना हमारा कर्त्तव्य है उसे हमने पूरी ईमानदारी से निभाया खूब चीखा चिल्लाया एक पेड़ से दूसरे दूसरे से तीसरे पेड़ दर पेड़ डाली दर डाली पडोसी जंगल दर जंगल दौड़ता ही रहा हू अंगे भी ऐसे ही दौड़ता रहूँगा ये मेरा बादा है मै शेर मुक्त दहसत मुक्त संपन्न जंगल देने के लिए प्रयाश रत हु यह सुन कर सबने तालिया पीटी मंकी जी के कोशिश की खूब सराहना हुई मंकी जी जिन्दाबाद जिन्दाबाद जिन्दाबाद ! लेकिन ये किसी ने न जाना की मंकी जी सरे जंगल गिरवी रखने की योजना में मसगुल है और इस अभियान में जंगल के मिडिया प्रभारी सहित अधिक तर जानवर स्वार्थी होगये जंगल का अस्तित्व धीरे धीरे समाप्ति की और है फिर भी मंकी महाराज जिन्दाबाद ही है !

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

     हे परशुराम धरो अवतार
     फिर जागो जग में एक बार
हे ओस बूँद के  कोमल हार - जग जननी के प्रथम लाल 
जीव जगत तुम ॐ माद     -  स्वाश धरा की प्रथम नाद !!
सृष्टि सृजन के कपाल काल - बसन्धुरा के ललाट लाल 
हृदय कान्ति कंचन काया   - वेदनीति की निर्मल छाया !!
अमृत कलश तुम धरा धार   - अनमोल निधि जग मणि हार 
अदम्य शक्ति निशंक ज्ञान -  प्रखर बुद्धि बूँद बिज्ञान !!
प्रथम शिखर सिरमौर पार   - जग गूढ़ सागर बूँद सार 
ज्ञान सैयाम छमा दान      -    वेद विधा जग शौर्य शान !!
   हे प्रचण्ड परशु की शान्त धार 
   फिर जागो जग में एक बार !!
हे भूत भविष्य के पालन हार  - वर्त्तमान की मौन धार 
धरा धर्म के आदि अन्त  - नीति जनक जग शिखर संत !!
पवन वेग के हृदय मान  -परशु विधा की प्रलय शान 
शीतल स्वक्ष् शिखर चाँदनी  - सूरज सी अँगार आगानी !!
भरा नसों में शक्ति सार  - जान्ह्वी जीवन प्रखर धार 
कर्म नीति तुम मानव तंत्र  - जीव जगत के बीज मन्त्र !!
धरा धर्म की मधुर तान  - शिव ताण्डव के सहज गान 
तृण मौन तरुण तरुणाई  - तापस अम्बर सी अंगड़ाई !!
हे शास्त्र शस्त्र परमाणु सार 
फिर जागो जग में एक बार !!
हे शक्ति ज्ञान की प्रखर आग  - हुँकार तुम्हारी प्रलय राग 
श्रष्टि प्रलय तुम्हारी सांसो में  - जग सार भरा सब आँखों में !!
भूचाल पला पग बैरागी  - संग्राम सजा नख अनुरागी 
सिंह नाद के उदय अन्त  - वेद विधा के शक्ति सन्त !!
शम्भु जटा के गूढ़ सार  - जग तिमिर ताण्डव खिंच मार 
जल वायु अम्बर धरा आग  - जग जीव जगत तू पुनः जाग !!
कण कण गूँजे हृदय राग  - देवेन्द्र स्वांश बन धार जाग 
सम्मान सैयाम ऐश्वर्य अवतारी - स्वस्थ सुखी जग उपकारी !!
हे अदम्य शक्ति विशवास सार 
फिर जागो जग में एक बार !!

हे दिव्या ज्ञान के प्रथम दीप  - जग मग जग श्रष्टि प्रकाश
पाषाण शिखर की हृदय शीला में -अमर अँकित कर इतिहाश !!
वेद नीती जीवन साँसे बन - धरा धर्म हृदय धड़कना है  
सत्य सपूत अमृत धरा बन -विशब विजयी सिरमौर चमकना है !!
देवेन्द्र मती अरु हृदय राग - शंख नाद बन धरा जाग 
जीव जगत तुम प्रथम आर्य - तुम्ही आदि शंकराचार्य !!
बिज्ञान वेद गुरु द्रोण नाम - चाणक्य विप्र तुम परशुराम 
रश्मी रथि अब आत्म राग -बन ज्ञान सैयाम शक्ति जाग !!
हे परशुराम धरो अवतार - फिर जागो जग में एक बार !!
हे सत्य सनातन शिव स्वरुप सरकार 
जागो फिर जागो जग में एक बार !!

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

     वध की वाध्यता
सच्चाई के करीव पहोच कर इससे सालीन भाषा का चयन करना शायद मेरे लिए सम्भव नहीं था यदि मेरी भाषा और शैली आप को असंसदीय लगे तो निवेदन है की उन पाखंडियो के लिए क्या शव्द लिखू जो पतित होकर पावन का पाठ पढ़ते है ! जो निहित स्वार्थो की बलिवेदी में हिंदुत्व की बलि देने उसे बकरे की भाति फूल माल तिलक से सजा कर उसकी गर्दन काटते है वो मेरी नजरो में सम्मान के लायक नहीं ,ऐसे कालनेमियो के मुखौटे अब नोच फेकने का वक़्त आगया है ताकि  साधू के भेष में छुपे शैतानो की घिनौनी सूरत जनता देख सके और समझ सके की सत्ता लोभी किस हद तक गिर सकते है, यदि ऐसा नहीं हुआ तो वो वक़्त दूर नहीं जब हमारी पहचान हमरे अराध्या श्री राम के रूप में नहीं बल्कि रमा उल्ला खान के रूप में होगी क्यो की अब सुन्नत के पैरोकार हमारे अपने लोग ही है तभी तो लगता है की सम्मान धर्म संस्कृती और खुद को बचा पाने हम कितने असहाय व उदासीन है  !
अपने भारत वर्ष की सीमा रेखा सिन्धु नदी है जिसके किनारे वेदो की रचना प्राचीन दृस्टाओ ने की है बह सिन्धु नदी जिस शुभ दिन फिर भारत वर्ष के ध्वज की छाव में स्वछन्ता से बहती रहेगी उस दिन मेरी अस्थिया या राख का छोटा सा हिस्सा उस सिन्धु नदी में बहा दिया जाये ! ऐसे विचारो के धनी व्यक्ति जिनकी अस्थिया आज भी अखण्ड भारत में अपने प्रवाहित होने की प्रतिक्छा कर रही हो क्या बाह सिर्फ हत्यारा हो सकता है यह विचारणीय है ! अपना बलिदान देने के पूर्व जिसने अखण्ड भारत का नक्सा गीत और भगवा ध्वज को गर्व से नतमस्तक हो कर सर पर रखने के बाद सीने से लगाया हो जिसने पुरे उल्लासः के साथ अखण्ड भारत का बार बार जयघोष किया और फांसी के फंदे को चूमते हुए देश की अखण्डता एवं हिन्दुत्व को सम्बल देने के लिए उस पर झूल गया ! जिन्होंने अपने कृत्यों पर गर्व महसूस किया जो पेशे से व्यद्वान पत्रकार रहा हो जिसने भरी अदालत में कहा हो की मन्दिर में बैठ कर नमाज़ पढने बाले गांधी ने कभी मस्जिद में बैठ कर गीता पढने की हिम्मत नहीं जुटाई ,भारत को दो टुकड़ो में बांटने बालो को 55 करोड़ उस हालत में दिलबने की जिद करना जब हमारे लगभग 20 लाख हिन्दू को मार दिया गया हो हिन्दू बंधुओ को धर्म के नाम पर काटा जा रहा हो उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा हो बहनो की इज़्ज़त लूटी जा रही हो सम्पत्ति से बेदखल किया जा रहा हो तब अहिंसा का पुजारी ये सब देख कर भी मौन ही था !आज़ादी के लिए जिसने अहिंसा के नाम पर उपबास रक्खा हम उसके सेहत के चिंतन से प्रभावित होसकते है परन्तु उस के अनुशरण करता कदापि नहीं !जिस अहिंसा के नाम पर देश लहूलुहान हुआ हिन्दू और गांधी जी की उस उपेक्छा से मन और अधिक द्रवित हुआ जब सीमा पार से आये हिन्दुओ को जिन्होंने खली पड़ी मस्जिदो में शरण ली थी  उनको गांधी जी ने तत्काल मौसम की मार झेलने सड़को पर निकाल दिया इस अहिंसा के देवता ने सीमा पार होने बाले नर संघार को रोकने कोई भी ऐसा कारगर कदम नहीं उठाया जिसका असर दिखा हो ! सीमा पार मन्दिर टूटते रहे धन धर्म लूटता रहा और यहाँ खली पड़ी मस्जिदो में हिन्दुओ को रात बिताने की भी इज़ाज़त नहीं दी गई ! अहिंसा की परिभाषा का जो रूप देखने को मिला बाह किसी का भी दिल दहलाने के  लिए पर्याप्त है !1921 में हुए मोपला कांड में कम से काम 10 हजार हिन्दुओ को क़त्ल किया गया नारियो का सतीत्व भांग तो हुआ ही हजारो मंदिर ढहा दिए गए अनुमानन एक लाख से ऊपर हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन हुआ, जिस घटना से पूरा विशव द्रवित हुआ जिन हत्यारों को मौत की सजा मिलनी चाहिए थी  ऐसे उपद्रविओ को गांधी ने धर्म भीरु वीर पुरुषो की संज्ञा दी ! (पाकिस्तान ..... लेखक डॉ अम्बेडकर  प्रष्ठ क्रमांक 148 )बकरी का दूध पीकर ईश्वर अल्ला तेरो नाम सब को सम्मति दे भगवान का गायन करने बाले गांधी जी  ने गौ सेवा का प्रपंच तो खूब किया लेकिन खिलाफत आन्दोलन के दौरान मुस्लिम चरण वंदना में उन्होंने कहा की यदि कोई गाय काटता है तो ये उसका मौलिक अधिकार है इसपर भी संतुस्ट न होने बाले महात्मा  ने हिन्दुओ से कहा की वो गौ रक्षा का नाम न ले न ही इसकी कोई चर्चा ही करे (यांग इंडिया अंक 28 जुलाई 1921 )गांधी ने कहा कि भारत में गौहत्या को रोकने कोई कानून नहीं बनेगा (धर्मपालन भाग 2 पृष्ठ 135 )गौ मांस को प्रेरित करते हुए गाँधी ने कहा की मुसलमानो  को मै गौमांस खाने का अधिकार दूगा (प्रताप लाहौर अंक 29 दिसम्बर 1924 )गाँधी ने कहा की जो मांस खता है यदि हमारे शाकाहार को देख कर वो मांस खाना बंद करता है तो बाह अधर्म करता है (हरिजन सेवक . अँक  6 जून 1946 )हिन्दुओ से नफरत और मुसलमानो से बेपनाह मोहब्बत करने बाले अहिंसा की मूर्ति ने स्वामी श्रद्धानन्द के हत्यारों को मेरे प्रिया भाई कह कर सम्बोधित किया और अब्दुल रशीद का पक्ष रखते हुए कहा की मै रशीद को हत्यारा नहीं मानता गाँधी जी ने 23 दिसम्बर 1926 को स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या होने पर कांग्रेसः नेता आशफ अली को मुकदमा लड़ने के लिए नियुक्त किया था और खुद स्वामी श्रद्धानन्द के खिलाफ बयान बाज़ी करने लगे थे (कांग्रेसः का इतिहास . लेखक सीतारमैया  पृष्ठ 516 )भारत के बाप कहलाने बाले मोहन दास करमचंद गाँधी ने गणेश शंकर विद्यार्थी ,की हत्या जो मुसलमानो द्वारा की गई उसपर भी मौन ही रहे ,भारत माँ के चरणो में निस्वार्थ खुद को न्योछाबर करने बाले महाराणा प्रताप ,शिवजी ,महर्षि दयानन्द स्रारस्वती ,वीर सावरकर और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आलोचना का कोई भी अबसर गाँधी जी ने नहीं गवाया ! भारत के सपूत भगत सिंह की फाँसी के सम्बन्ध में ब्रिटिश अभिलेख में गाँधी और इर्विंग की बात चीत का जो अभिलेख अंकित है उसके मुताबिक गांधी ने भगत सिंह की सजा रद्द करने का कोई उल्लेख नहीं है (पत्रावली स. 5 -45 /1931 के. डब्ल्यू -2 गृह बिभाग -राजनैतिक शाखा )20 मार्च 1931 को गाँधी ने वाइसराय परिषद् के गृह सचिव हर्वर्ट इमरसन से भेट की और कहा की अव्यबस्था रोकने हमसे जो भी हो सकेगा मै करुँगा जिसके परिणाम गाँधी ने कहा की जब भगत सिंह को फाँसी देनी है तो देर कैसी (पत्रावली स. 23  -1  /1931  गृह बिभाग -राजनैतिक शाखा )वक़्त से पहले फांसी दे कर लाश को टुकड़ो में काटा गया मिटटी का तेल डाल कर तीनो सपूतो को जलने बाली  ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारत के बाप के मुह से न एक शव्द निकला न ही इश कृत्य का कोई निंदा प्रस्ताव ही पारित हुआ जहा लाखो लोग भय आक्रोश और अपमान से काँप रहे थे बही महात्मा की अपमान जनक टिप्पड़ी युवाओ में नफ़रत और उस आक्रोश को जन्म देरही थी जिसके परिणाम स्वरुप गाँधी बध हुआ ! 20 मार्च 1931 को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ,चन्द्रशेखर आज़ाद के बलिदान दिवश पर एक सभा करने बाले थे उस समय गाँधी जी दरियागंज में रह रहे थे बही से हर्वर्ट इमरसन को पत्र लिख कर कहा था की सभा में कोई अब्यवस्था नहीं होगी साबधानी के कदम उठा लिए गए है (पत्रावली स. 4  -21  /1931  गृह बिभाग -राजनैतिक शाखा )ऐसे कृत्यों से प्रतीत होता है की गाँधी अँग्रेजी हुकूमत के कितने करीव और फ़िक्र मंद थे ! जलीय बाला बाग़ हत्या काण्ड के दोषी पंजाब के गवर्नर ओ. डायल के खिलाफ कड़े शव्दो से परहेज करने बाले महात्मा ने भारत के शुरवीर उधान सिंह जिसने इस हत्या काण्ड का बदला लिया उसकी बहादुरी को गाँधी जी  ने पागल और पागलपन जैसे घृणत शब्दों से उपकृत किया (महात्मा -खण्ड -5 लेखक तेन्दुलकर पृष्ठ, 258 ) विशव युद्ध के समय घायलो की मदद हेतु जो रेड क्राश का गठन कर चिकित्सा मुहैया करने की मुहीम चालू की गई उसपर गाँधी ने कहा था की रेड क्राश की मदद करना हिंसा की श्रेणी में आता है बन्दूख की गोली और मलहम में समानता का नजरिया सिर्फ गाँधी जी का ही होसक्त था !क्यों की हर बार उनकी टिप्पड़ी का आधार भारतीय क्रांतिकारियों की आलोचना ही रहती थी कैसे भुला दिया जाये बंगाल के क्रान्ति कारी गोपीनाथ साहा को जिनकी सराहना बंगाल कांग्रेसः अधिबेशन में देशबन्धु चितरंजन दास ने की और ब्रिटिश सरकार की क्रूरता का निंदा प्रस्ताव पारित किया इस घटना का मलाल भरे गाँधी ने 27 से 29 जून 1924 को अहमदाबाद में कांग्रेसः कर्यसमित की बैठक में उस बलिदानी साहा को हत्यारा पथ भ्रस्ट कहकर साहा से हमदर्दी रखने बालो को भी भला बुरा कहा था ! तभी तो डॉ मांगू राम ने लिखा क्या गाँधी महात्मा थे  ? अजीव परिभाषा है महात्मा की जिसके मन में दूसरे धर्मो के प्रति श्रद्धा तो खूब दिखी परन्तु अपनो के लिए हमदर्दी का एक कतरा भी नशीब नहीं हुआ !  जिसभी क्रन्तिकारी ने गाँधी जी का अनुशरण नहीं किया बह उनके कोप और निन्दा का पात्र हुआ ! भारत की आज़ादी अर्धनग्न होकर चरखा चालने का परिणाम मानाने बालो और देदी आज़ादी हमें बिना खडग बिना ढाल का गायन करने बालो से मै हांथ जोड़ कर बिनती करता हु की यदि भारत की सीमाओ में यही गायन करे और चरखा चलाये तो भारत भयमुक्त होजायेग और सीमाये सुरक्षित ? कैसे भूल गए भारत बसी की देश में शासन करने बाले अंग्रेजो ने अपने आकाओ से कहा था की सुभाष चन्द्र बोस की सरकार का गठन और 5 देशो द्वारा उसकी मान्यता के कारण भारत में सैनिक बगाबत की शुरुआत हो चुकी है भारतीय सेना अब ब्रिटिश गवर्नमेंट के प्रति बफादार नहीं रही अतः अब भारत में शासन करना सम्भब नहीं रहा इसी लिए अंग्रेजो ने भारत को दोफाट कर यंहा से कूच किया ! भारतीय क्रांतिकारियों के खिलाफ मोर्चा बंदी करने बाले गाँधी ने अपने ब्रम्हचर्य की परीक्षा के किये अनेक महिलाओ सहित अपनी पोती का जो चयन किया क्या बाह किसी महात्मा का कृत्य होसकता है ! ( दुनिया को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में आज कौन नहीं जानता। नाम : मोहनदास करमचंद गांधी। उपनाम : बापू, संत,
राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी। जन्मतिथि : 2 अक्तूबर 1869। जन्म स्थान : पोरबंदर, गुजरात।महात्मा गांधी
के पिता का नाम करमचंद्र और माता का नाम पुतलीबाई था। अपने परिवार में सबसे छोटे बापू की एक सबसे बड़ी बहन और दो बड़े भाई थे। इनकी सबसे बड़ी बहन रलियत, फिर भाई लक्ष्मीदास और भाभी नंद कुंवरबेन, भाई कृष्णदास और भाभी गंगा थीं। 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे ने गोली 
मारकर हत्या कर दी थी। अनेकों पुस्तकों में महात्मा गांधी से कई स्त्रियों के संबधों का दावा किया गया है।
 लेकिन इसमें सबसे चर्चास्पद मामला रहा है, महात्मा गांधी और सरला देवी के संबंधों को लेकर रहा । महात्मा गांधी और सरलादेवी शादी करना चाहते थे। उल्लेखनीय है सरलादेवी रवींद्रनाथ टैगोर की बड़ी बहन की बेटी थीं। इतिहास की अनेकों पुस्तकों में महात्मा गांधी से कई स्त्रियों के संबधों का दावा किया गया है। लेकिन इसमें सबसे चर्चास्पद मामला रहा है, महात्मा गांधी और सरला देवी के संबंधों को लेकर।। गांधीजी के 71 वर्षीय पोते राजमोहन गांधी ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि अपनी विवेकबुद्धि के लिए प्रख्यात महात्मा गांधी
 विवाहित और चार संतानों के पिता होने के बावजूद भी सरलादेवी के प्रेम में पड़ गए थे। इतना ही नहीं, वे सरला से शादी करने के लिए भी तैयार हो गए थे। सरलादेवी गांधीजी की पत्नी कस्तूरबा की तुलना में काफी प्रतिभाशाली और बुद्धिमान थीं और वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थीं। परिवार और राष्ट्रहित के लिए उन पर भी गांधीजी से संबंधों पर पूर्ण विराम लगाने का दबाव डाला गया। राजमोहन के अनुसार गांधीजी का यह 
प्रेम प्रकरण सीक्रेट नहीं था, बल्कि यह बात दोनों परिवारों में सबको मालूम थी। हालांकि यह बात अलग है कि सरलादेवी ने अपनी आत्मकथा में इस बात का जिक्र नहीं किया है।सरलादेवी का दीपक चौधरी नामक एक बेटा था। सरलादेवी के मोहपाश में बंधे गांधीजी ने तो दीपक के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू से बेटी इंदिरा गांधी का हाथ भी मांगा था। लेकिन पंडित नेहरू ने इसके लिए स्पष्ट मना कर दिया था। सरलादेवी के पति चौधराी राम भाजी दत्त स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य रूप से सक्रिय थे। जब वे जेल में थे, तब उन्होंने ही सरलादेवी को महात्मा गांधी के घर पर रहने के लिए कहा था। बताया जाता है कि इसी बीच महात्मा गांधी और सरलादेवी एक-दूसरे के नजदीक आए थे। इन्होंने तो ‘आध्यात्मिक लग्न’ कर लेने का आयोजन भी कर लिया था, जिसका गांधीजी के बेटे देवदास गांधी ने भारी विरोध किया था सरलादेवी के अलावा गांधीजी के कुछ अन्य स्त्रियों से संबंधों का भी दावा किया जाता है। इसमें ब्रिटिश एडमिरल की बेटी मेडेलीन स्लेड, सुशीला नायर और दो मानस पुत्रियों मनु तथा आभा गांधी का भी नाम शामिल है।गांधीजी का विवाह सन् 1883 में कस्तूरबा से हुआ, इस समय उनकी उम्र 13 वर्ष थी। जबकि कस्तूरबा गांधीजी से एक वर्ष बड़ी उम्र की थीं। कस्तूरबा निरक्षर थीं, लेकिन वे हमेशा से ही गृहकार्य में कुशल रहीं। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘मेरे सत्य के प्रयोग’ में लिखा है कि जब उनके पिता मरणासन्न की स्थिति में थे, तब वे कस्तूरबा से शारीरिक संबंध स्थापित कर रहे थे, इसी बीच दूसरे कमरे में उनके पिता की मृत्यु हुई थी।इतना ही नहीं, महात्मा गांधी अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा लेने के लिए सुशीला नायर और टीनएज मनु तथा आभा के साथ सह-स्नान और नग्न होकर सोने के प्रयोग भी किया करते थे। महात्मा गांधी के ये प्रयोग भारी विवाद का मुद्दा भी बना था। इसे लेकर आश्रमवासियों और उनके परिवारजनों ने उनसे नाराजगी भी प्रकट की थी
divyabhaskar network ) Jan 30, 2015, 13:03 PM IST )
  •  http://www.bhaskar.com/news-fli/GUJ-AHM-mahatma-gandhiji-wanted-remarriage-in-age-of-50-4888363-PHO.htm  
  •  जिसने हिन्दुओ की सदैव उपेक्षा की हो लाशो की चादर पर बैठकर जिसने भारत के बिभाजन को स्वीकारा हो जिसमे हमारे देश के सपूतो को ही राष्ट्र द्रोही की संज्ञा दी गई हो ऐसे ट्रान्सफर ऑफ़ प्रॉपर्टी एण्ड पॉवर की छदम भेसीया आज़ादी से जिसका मन द्रवित हुआ उसने भारत का अंतिम बलिदानी बनकर गाँधी बध किया और अपनी पूर्ण आहुति दी कभी जीवन में जिसने हिंसा न की हो धर्म कर्म का धनि ह्रदय में भारत की अखण्डता का सपना सजोने बाले नथुराम बिनायक राव गोडसे ने भरी अदालत में स्वीकारा की उन्होंने हिंदुत्व और भारत के रक्क्ष्र्थ गाँधी बध किया  गोडसे ने भरी अदालत में कहा की उनको गाँधी बध का न कोई मलाल है न पछताबा वो जानते थे की लोग उनको इस कृत्य के लिए गालिया देंगे नफ़रत करेंगे उनके सारे नेक कर्मो को पाप की संज्ञा देदी जाएगी फिर भी उन्होंने अपने कीर्ति की परबाह नहीं की और राष्ट्र से बड़ा अपने व्यक्तित्व को प्रदर्शित करने बाले गाँधी को 300 लोगो के सामने  30 जनबरी 1948 को शाम  5 . 17 मिनट पर गोली मारी गोडसे चाहते तो छुप कर गोली चला सकते थे भाग सकते थे परन्तु इस शालीन संस्कारी सभ्य हत्यारे ने गाँधी के चरण छुए उनकी हत्या करने के अपराध का हत्या के पूर्व ही प्रायश्चित करने बाले गोडसे के पास गाँधी जी को 3 गोली मारने के उपरांत अभी भी 5 गोलिया बाकि थी गोडसे जी ने बिरला हॉउस में तैनात सिक्ख सिपाही को  बुलाकर अपनी पिस्तौल और अपने आप को उसके हबाले कर दिया था ! एक ऐसे भारतीय को मारने का मलाल गोडसे के मन में जरूर रहा होगा जिसकी ख्याति देश की सीमाओ को लाँघ कर दूसरे देशो में फ़ैल चुकी थी परन्तु देश हित और हिन्दुत्व को पुनर जीवन देने का सायद गोडसे के पास और कोई रास्ता न था ! जिनलोगों ने गोडसे को पागल खलनायक अनपढ़ की उपमा दी उनके अल्प ज्ञानी होने में हमें कोई सन्देह नहीं क्यों की बह गोडसे जी के बारे में शायद कुछ जाने समझे बिना ही उन सियारो की भाँति हुआ . हुआ करने लगे थे जो दूसरे की हुआ . हुआ में शामिल होने की जातिगत परम्परा का निर्बहन करते है ! नथुराम विनायक राव गोडसे बचपन से ही करुणस्ताक ,गीता,मनुस्मृति,महाभारत,रामायण,का नियमति पाठक थे बह एक प्रतिष्ठित पत्रकार ,लेखक,विचारक ,कवि और राष्ट्र भक्त्त थे ! नथुराम की रचनाएँ इतनी लोकप्रिय होती थी की महाराष्ट्र के गणपति समारोह में चहुंओर गुंजाय मान होती थी ! गोडसे जी ने लक्ष्मीतनय नाम का कव्य लिखा और राम रक्षा स्त्रोत को मराठी में अनुबादित किया ! अग्रणी  समाचार के संपादक ने अपने अखबार का नाम हिन्दू राष्ट्र शायद इसलिए ही रखा की देश में हिन्दुओ की दुर्गति की आवाज़ उठाने बाले  अधिकतर नेता गाँधी जी के कोप का शिकार होकर खामोश हो चुके थे अतः हिन्दुत्व को पुनर जीवन देने गोडसे ने अखबार का नाम ही बदल डाला ! इस समाचार पात्र का अन्तिम प्रकासन 31 जनबरी 1947 को हुआ ! नथुराम का मुकदमा जी न्यायपीठ में चला उसके न्यायाधीश श्री खोसला ,श्री भण्डारी और अच्छरूराम थे ! ये न्यायाधीश गोडसे के असाधारण तार्किक छमता भाषा ज्ञान और बौधिक स्तर उनके विवेचन से इतने प्रभाबित थे की सरे मुक़दमे के तर्कों तथ्यों सहित नथुराम के विचारो के ऊपर एक पुस्तक ही लिख डाली ! जिन्होंने नथुराम के ऊपर  लिखी किताब में स्पस्ट कहा की  यदि नथुराम का मुक़दमा जनता की अदालत में होता तो वो निर्दोष घोषित करदिये जाते मेरे जीवन का यह पहला मुक़दमा है जिसे सुनाने लोगो का हुजूम उमड़ता है लोग सच्चाई को जान सुन समझ कर रोते है ! परन्तु भय से परे गोडसे की मन्द मन्द मुस्कान उनके आत्म बल का जैसे बखान कर रही थी ! नथुराम विनायक राव गोडसे दुनिया के शायद पहले या आखरी मुजरिम थे जिनकी प्रसंसा को न्यायमूर्ति बिवश हुए ! न्यामूर्ति ने कहा की गोडसे का अध्यन अत्यंत गम्भीर है उन्होंने अपने मुकदमे का प्रतिपादन करते हुए अंग्रेजी भाषा पर अपने पर्याप्त अधिकार का और प्रसशानीय सुस्पस्ट विचार छमता का परिचय दिया ! नथुराम ने अपने मुकदमे में निर्भीकता से स्वीकारा की उन्होंने गाँधी बध किया और बध के कारणों को स्पस्ट करते हुए उन्होंने 150 बिन्दुओ में बह सब कुछ बया किया जिसके प्रकशित होने से पंथनिरपेछ और अहिंसा के थोथे नारो के पीछे के भयाबह व क्रूर चेहरे घृणा के पात्र हो जाते परन्तु सरकार ने उस बयान को सार्वजानिक करने पर रोक लगादी अतः स्पस्ट हुआ की सरकार राष्ट्र प्रतिष्ठा पर  व्यक्ति प्रतिष्ठा को स्थापित करना चाहती थी और ऐसा हुआ भी ! (गोडसे के बयान की बिन्दु संख्या 35  )-1946 में बंगाल के मुख्यमंत्री सोहरबर्दी जो की मुस्लिमलीक का कट्टर समर्थक था जिसने हजारो हिन्दुओ की खुलेआम हत्या कराई महिलाओ का सील भांग करबया हिन्दुओ का जबरन धर्म परिवर्तन करने बाला ऐसा बर्बर व्यक्ति गाँधी  जी की भाषा में शाहिद साहब के सम्मान से नवाजा जाता रहा ये बही सोहरबर्दी था जिसके कारण कलकत्ता और नोआखाली में हिन्दुओ के खून की नदिया बहाई गई थी ! (गोडसे के बयान की बिन्दु संख्या 56  )-शिवजी ,महाराणा प्रताप ,गुरु गोविन्द सिंह जैसे महान लोग गाँधी जी की नजरो में पथ भटके हुए लोग थे ! 1919 में केरल में खिलाफत आन्दोलन के समय मोपला उपद्रव में हिन्दुओ का नरषहार हुआ और गाँधी सद्भाब की बातो से हिन्दुओ को ठगते रहे ! 1942 में गाँधी जी और कॉंग्रेस  ने अंग्रेजो से समझौता किया की वो भारत इन्हे सौप कर चले जाये उसके लिए ये कोई भी कीमत देने को तैयार थे भारत का बिभाजन उसी उताबले पन का परिणाम है ! (गोडसे के बयान की बिन्दु संख्या 69 -उपभाग बी )- मोपला दंगो में पीड़ित लोगो की सहायता न कर उपद्रविओ के सहायतार्थ गाँघी जी ने सहायता राहत कोष का गठन किया और दंगाईयो के मुकदमे को लड़ने मदद करने बाले मोहन दास की कभी समझ न आने बालि लीला आज फिर किसी के समझ न आई !(गोडसे के बयान की बिन्दु संख्या 69 -उपभाग -२ सी )-गाँधी जी ने अली भाइयो की उस योजना का समर्थन किया जिसके तहत अफगानिस्तान का आमिर भारत में आक्रमण कर यहाँ अपना शासन स्थापित करले अंग्रेजो की गुलामी के बाद मुसलमानो  की गुलामी का न्योता देने की मंसा कितनी भारत और हिन्दू हितैसी थी यह सुन सोच कर आज भी रोंग़टे खड़े हो जाते है !(गोडसे के बयान की बिन्दु संख्या70  -उपभाग 2 -ई )-1928 में सिंध को मुम्बई प्रान्त से पृथक करने मुस्लिमलीक की माग को गाँधी जी ने स्वीकार किया जो भारत का प्रथम बिभाजन था ,व्यबहार में यही बिभाजन पाकिस्तान के रूप में सामने आया ! 1931 में कांग्रेसः की और से  राउण्ड टेबल की बैठक में हिस्सा लेने सिर्फ गांधी जी गए थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के सम्बन्ध में कोई भी बात नहीं की बल्कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मैकडॉनल्ड को यह अधिकार भी दे आये की भारत में वो साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागु करदे शायद यही कारण था की देश में साम्प्रदाइक हिंसा और उग्र होगई ! गाँधी जी ने कट्टर पंथी तत्वों को प्रसन्न करने राष्ट्र भाषा हिन्दी की जगह हिंदुस्तानी नामक ऐसी भाषा थोपने की कोशिस की जिसकी न कोई शब्दाबली थी न कोई व्याकरण था  ये भाषा कभी कही न बोली गई ना ही  कही सुनी ही गई थी ! बंदेमातरम का बिरोह कुछ मुस्लिम नेताओ के करने पर गाँधी जी ने इस गान को कांग्रेसः अधिवेसनो में पूरी तरह बन्द करने की सलाह दे डाली  ! गांधी जी ने उस रास्ट्र्बाद और वीरता के ऊर्जा स्रोत ग्रन्थ (शिवा बावनी )पर प्रतिवन्ध लगाने का दवाब डाला जिसे राष्ट्र कबि भूषण ने लिखा था ! मुस्लिम रियासतो द्वारा हिन्दुओ पर होने बाला अत्याचार गाँधी जी को कभी नहीं दिखा जब की हिन्दू राजा इनके आँखों की हमेशा किरकिरी ही रहे ! गाँधी जी ने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान एक प्रस्ताव तैयार किया जिसके मुताबिक शासन सत्ता में हिन्दुओ मुस्लिमो की संख्या बारबार हो ,भारत पाकिस्तान बिभाजन के सम्बन्ध में गाँधी जी ने लिख की यदि मुसलमान किसी भी कीमत पर पाकिस्तान चाहते है तो उनको कौन रोक सकता है ,ये उस बटबारे का समर्थन नहीं तो और क्या था , 1947 के बटबारे का पलायन आज तक नहीं हुआ यदि एक राष्ट्र मुस्लिम राष्ट्र बनगया तो दूसरा हिन्दू राष्ट्र न होकर सर्वधर्म सराय बनगया ! 15 अगस्त 1947 को सत्ता का हस्तान्तरण हुआ (माउण्टबेटन फार्मूले के अनुरूप )तो जश्न मनाया गया नारे लगे की गाँधी जी के अहिंसा की जीत हुई मै सालिनीता से पूछता हू 20 लाख हिन्दुओ के क़त्ल को यदि अहिंसा कहा गया तो हिंसा की परिभाषा क्या होगी ! गाँधी जी ने स्वतन्त्रता के पश्चात गौरक्षा कानून बनाने का बिरोध किया ! ये बही गाँधी जी थे जिन्होंने 1946 में एक पाकिस्तानी के कहने पर राष्ट्र ध्वज तिरंगा उतरबा दिया था ! कांग्रेसः के कराची अधिवेशन में गाँधी जी ने सरदार भगत सिंह और उनके साथियो को आदर देने बाले प्रस्ताव का प्रवाल बिरोध किया बह भगत सिंह और अन्य क्रान्तिकारियों  को पथभ्रस्ट भटके हुए लोग कहते थे ! लोकमान्य तिलक जैसे महान देश भक्तो को गाँधी जी ने कई कई बार अपमानित किया ! गाँधी जी ने भारत की बागडोर जिन्नाह के हांथो सौपने का निर्णय इस प्रकार से लिया जैसे ये देश उनकी पैतृक जयाजाद हो ! भारत बिभाजन के समय जब पंजाब में हिन्दुओ का संहार हो रहा था तो हिन्दुओ को जिन्दा निकलने बाले पुलिस व सेना का  गाँधी जी ने  बिरोध किया ! इस महात्मा ने पाकिस्तानी हिन्दुओ को चुपचाप बिना किसी बिरोध के मुस्लिम भाइयो के हांथो क़त्ल हो जाने की अपील की क्या ये हिन्दुओ की हत्या करने मुसलमानो को प्रोत्साहन नहीं था ! राष्ट्र के बाप ने प्रथम विशव युद्ध में उस जर्मनी की सहायता नहीं की जिसने सुभाष चन्द्र बॉस के द्वारा भारत की मदद की बल्कि इंग्लैण्ड की मदद की गई जिसके हम गुलाम थे, गाँधी जी के पूँजीपति समर्थको ने इस युद्ध में सामग्री आपूर्ति के दौरान खूब धन कमाया स्वयं गाँधी जी ने खादी आश्रमों से कम्बल की आपूर्ति कराई ! कश्मीर के राजा हरि सिंह के सहायता निवेदन को तबतक रोके रक्खा गया जब तक बह शेख अब्दुल्ला को शासन सौपने तैयार नहीं हो गए ,इस घटना से क्या यह प्रतीत नहीं होता की राष्ट्र के बाप को कश्मीर से ज्यादा शेख अब्दुल्ला के कुर्सी की चिन्ता थी ! जब पाकिस्तान की जमी हिन्दुओ के लहू से सुर्ख होरही थी, 15 हजार सिक्खो को एक साथ भून दिया गया ,हिन्दू महिलाओ को नंगा कर जुलूस निकला गया उनको बेचा गया ,जब 40 मील लम्बा रोते बिलखते लुटे हिन्दुओ का काफिला शर्णार्थी बन भारत आया तब महान आत्मा की आँखे नाम तक न हुई न ही पाकिस्तान के खिलाफ कोई चेतावनी दी गई न ही कोई निवेदन ही किया गया उल्टे भारत की मिडिया पर नकेल लगते हुए (प्रेश इमरजेंसी एक्ट ) लागू कर दिया गया ताकि समाचार पत्रो में इस सच्चाई का खुलासा न हो सके की देश का बटबारा हिन्दुओ की लाशो पर बैठ कर किया गया है ! गाँधी जी की अस्थियाँ और उनकी राख को दुनिया भर में बिखेरा गया परन्तु पाकिस्तान की नदियोमे इनको जगह न मिली ! भूखे रहकर देश को अपनी बाते मानाने मजबूर करने बाले इस महात्मा ने गीता को तो हमेशा सीने से लगाये रक्खा जिस कृष्ण ने गऊ सेवा को सर्वोपरि माना उस गीता के प्रपंची ने गौ हत्या को बैध करार देदिया ,जिस राम से सनातन की पहचान है उस राम को बादशाह राम और माता सीता को बेगम कहने बाले इस सवारमती के संत का जिगर अजीव था जिसने अहिंसा की शर्त पर हिंसा का साथ दिया अपनो की लाशो के लोथड़ों से सने भारत को  जिस स्वतन्त्रता को सशर्त  मंजूरी मिली उस मानवता के रक्त की धार देख कर भी अहिंसा की मंद मंद मुस्कान धूमिल न पड़ी ! निजाम हैदराबाद के भारत बिरोधी स्वर तभी ठन्डे हुए जब गाँधी जी इस दुनिया से बिदा होगये ! ऐसे गंभीर आरोपों के तथ्यों और तर्कों को लिखित  न्यायलय में सौपने बाले नथुराम गोडसे ने मनो भारत के हर बहुरुपिया नेताओ  का नकाब नोच फेका हो तभी इन आरोपो का जवाब शायद किसी नेता , संगठन व सरकार के पास भी न था  यही कारण था की उपरोक्त आरोपों का खण्डन करने की हैसियत न जुटा पाने बलि सरकार ने उस बयान को सार्बजनिक न करने का आदेश पारित करदिया और आत्मोत्सर्गी संत को पागल कहकर प्रचारित किया जाने लगा ! अजीव माहौल था जब आप्टे को न्यायलय ने सजा में छूट की सिफारिश की फिर भी  उनको भी गोडसे जी के साथ फांसी के फंदे पर लटका दिया गया ! क्या कोई पागल फांसी के पूर्व भारत माँ के अखंडता का जय घोष कर सकता है,क्या कोई पागल अखण्ड भारत के नक्से के साथ गीता और भगवा ध्वज को मस्तक में लगा कर बंदेमातरम की आवाज़ बुलंद कर सकता है ,क्या कोई पागल फांसी के फंदे को चुम कर फाँसी के काले कपडे को अपने चेहरे पर डालने से पहले .. नमस्ते सदा वत्सले मातृ भूमि त्वया हिन्दू भूमे सुखम् वर्धतोहम् ....... का गायन कर सकता है नहीं कदापि नहीं ये पागल नहीं दीवाना था हिन्दुत्व का अखण्ड भारत का ,ये पक्का कर्मयोगी था अपने धर्म कर्म का नित पालन करने बाला तभी तो 15 नवम्बर 1949 की शरद ठंडक में स्नान पूजन और कॉफी पीकर प्रातः 8 बजे इस दुनिया से बिदा होगया ! अपने कथन में गोडसे ने कहा की महाभारत का धर्म युद्ध यह सिखाता है की राष्ट्र से ऊपर भाई बन्धु सखा अपन सब कुछ न गर्नण है यदि दुर्योधन बध पाप था ,यदि कान्स बध पाप था तो भगवान श्री कृष्ण ने पाप किया उन जैसेही पाप हमने भी किया !इतिहास करो की चाटुकारिता की कालिख ने जिस सच्चाई को पोत रक्खा है  आने बाले दिनों में देश इसका मूल्यांकन जरूर करेगा अब तक इस का मुल्यांकन तो नहीं हुआ ! जो हुआ बाह स्वार्थ से प्रेरित सत्ता के लोभ में ही हुआ बह पूजा हो या तिरस्कार , जिसका जीता जागता उदाहरण है की गोडसे की स्तुति से अपनी पहचान पाने बाले जाने किस लोभ बस उनको खलनायक सिद्ध करने में लगे है ! देश कैसे भूल गया की गोडसे ने कहा उनका बलिदान आने बाले दिनों में जनता जरूर समझेगी जिसका मूल्यांकन तभी होगा ! बस इसी बात पर खोज हुई और तथ्य आप के सामने है !  
  •      बाप बदलने बाले क्या समझेगे माँ के सम्मान और दर्द को
  • अपने जन्म के उद्देश्यों कर्म सिद्ध्यन्त और संस्कारो की आहुति सिर्फ इसलिए देना जरुरी हुआ क्यों की ये सत्ता लोभी और भोगी होगये अपने जनक का जनाजा उठाने बाले मातृ हन्ता और पितृ द्रोही नहीं तो क्या है ! ये देश का दुर्भ्याग नहीं तो और क्या है की  अब गद्दार सीखाते और बताते है राष्ट्र भक्ती  की परिभाषा ! जो खुद सिद्धान्त हीन है उनके सिद्धान्तो का सम्मान कर हम क्या हासिल करेंगे यह चिन्तन का बिषय है ! युवाओ का  मौन भांग जरुरी है ।  देश को अब स्वचिन्तन करना ही होगा !भारत में जब हिन्दू महिलाओ का सतीत्व हरना हिन्दुओ को क़त्ल करना उनको मुसलमान बनाना चरम पर था ! तब इस अत्याचार को रोकने हिन्दू महासभा के अध्यक्ष डॉ  बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने नागपुर में हिन्दुबादि लोगो की आपात बैठक बुलाई जिसमे डॉ हेडगेवार, श्री परांजपे और बापू साहिब सोनी  जैसे राष्ट्र भक्त इकठ्ठा हुए मुस्लिम अत्याचार से हिन्दुओ की रक्षा करने(28 ,9,1925 दशहरे के दिन ) हिन्दू क्लब का गठन किया गया जिसके विस्तार का दायित्व डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को सौपा गया ! कालान्तर में यही संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कहलाया (आर.एस. एस . ) डॉ . हेडगेवार वीर सावरकर को आदर्श पुरुष मानते थे (आर.एस. एस . ) की शाखाएं तब हिन्दू महासभ भवनो में ही लगती थी और सावरकार जी की लिखी पुस्तक (हिंदुत्व )का पाठन हर सखा में होता था (आ सिंधु -सिंधु पर्यन्ता ,यस्य भारत भूमिका। पितृभू -पूर्णय भूमि भुश्चेव सा वै हिंदू रीति स्मृता।। )  सावरकार जी की दृस्टीबन्दी 1937 में समाप्त हुई तो सावरकार जी हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार हिन्दू महासभा के उपाध्यक्ष बनाए गए ! विदित हो की अहमदाबाद के कर्णावती में हिन्दू महासभा के अधिवेसन में जो उद्बोधन सावरकर ने दिये बाह (हिन्दू राष्ट्र दर्शन )के नाम से जाना जाने लगा ! 1938 में सावरकर जी पुनः हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए हिन्दू महासभा के नागपुर अधिवेशन का कार्यभार आर .एस.  एस . के कंधो पर था जिसकी अगवाई डॉ हेडगेवार ने स्वतः की भाऊराव देवरस जैसे  उच्चय श्रेणी के स्वयं सेवक हांथो में भगवा ध्वज लेकर जलुश के अंगे अंगे चले थे ! सावरकर जी कलकत्ता अधिवेशन 1939 में तीसरी बार हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए इस अधिवेशन में डॉ . श्यामा प्रसाद मुखर्जी ,श्री निर्मल चन्द्र चटर्जी ,(कलकत्ता उच्य न्यायलय के पूर्व न्यायाधीश )गोरक्षापीठ  गोरखपुर के महन्त श्री दिग्विजयनाथ जी,बाबा साहिब गटाटे  ,आर.एस . एस . प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और उनके सहयोगी श्री माधव राव सदाशिव गोलवलकर भी उपस्थित थे ! सावरकर जी पहले ही अध्यक्ष चुनलिये गए थे अब अन्य पदो हेतु चुनाव होना था जिसमे सचिव पद हेतु महाशय इन्द्रप्रकाश ,गोलवलकर और ज्योति शंकर दिक्षित दावेदार थे ,गोलवरकर को 40 वोट मिली ज्योति शंकर दिक्षित को 2 और इन्द्रप्रकाश जी को 80 वोट मिले ! इस हार से तिलमिलाए पद लोलुप गोलवरकर अन्दर ही अन्दर हिन्दू महासभा बिरोधी होगए ! 1940 में हिन्दुत्व के महान नायक हिन्दू महासभा के कर्मठ सिपाही आर . एस . एस . प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का आकस्मिक निधन होगया ,उनकी जगह पर गोलवरकर आर . एस . एस . प्रमुख नियुक्त हुए  और यही से शुरू हुई हिन्दुत्व के दोहरे चरित्या की घिनौनि चाल जिसने इस संगठन को उनके मूल उदेश्य से भटकाया और अपने बाप संगठन हिन्दू महासभा से दूरी बना कर मनमानी शुरू की ! संघ को सैन्य शिक्क्ष्ा देने बाले मार्तण्डेय राव जोग को दरकिनार करने बाले गोलवरकर अति रूढिबादी थे जिन्होंने अपने जिन्दा अपना श्राध तो किया ही गंडा तावीज गले में हमेशा पहने रहते थे जो किसी ने उनको बुरी आत्माओ से बचने के लिए दिया था   ,सावरकर और हेडगेवार जैसे उदार व उच्यविचारो  का सानिध्य पाकर भी जो दकियानूस हो उसकी कार्य शैली का अंदाजा सहज ही लग जाता है ! 1946 में संघ के सेवको की संख्या 7 लाख थी , जो सावरकर और डॉ . हेडगेवार के सिद्धांतो से दूर होते जा रहे थे, सावरकर युवाओ को सेना  में भर्ती होने की प्रेणना देते थे गोलवलकर उनका बिरोध करते थे ! सुभाष चन्द्र बोस ने सिंघापुर से रेडिओ पर अपने भाषण में सावरकर जी की तारीफ़ की सावरकर जी की प्रेणना का परिणाम ही था की सेना में हिन्दुओ की संख्या पाकिस्तान बटबारे के समय तक 26 प्रतिशत से बढ़ कर 65 प्रतिशत हो गई थी जिसके परिणाम स्वरुप पाकिस्तानी आक्रमण पर काबू पाया गया था ! गोलवरकर ने भारत की बागडोर मुस्लिम लीक को सौपने बाले गाँधी के प्रस्ताव का बिरोध नहीं क्या किया बल्कि सावरकर और हिन्दू महासभा को मुस्लिम बिरोधी कह कर मुस्लिमो के हमदर्द बनने की फिराक में लगे रहे ! संघ के नेता गंगाधर इन्दुलकर ने कहा था की युवाओ में सावरकर के विचारो का सम्मान देख कर गोलवरकर, सावरकर और हिन्दू महासभा से चिढ़ाते है !उनको भय लगता था कही युवा उनको दरकिनार न करदे ! कलतक सावरकर की पुस्तक जिस संघ का वेद थी जिस व्यक्ति को संघ प्रातः प्रथम स्मरण कर खुद को ऊर्जावान समझता था उस संघ में अब सावरकर की जगह गाँधी जी प्रातः स्मरणीय हो गए थे ! डॉ हेडगेवार कर्यकर्ताओ से कहते थे हिन्दुस्तान हिन्दुओ का है ! बही अपने जनक की बात पर लात मारते हुए 7 ,9 ,49 को कलकत्ता ने पत्रकार वार्ता में गोलवरकर ने कहा था की हिन्दुस्तान हिन्दुओ का है ऐसा कहने बाले कोई और लोग होगे (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ -तत्व और व्यबहार पृ .14 ,38 एवं 64 और हिन्दू अस्मिता ,इन्दौर दिनाँक 15 ,10 ,2008 पृ .7 ,8 ,9 ) 1946  में केन्द्रीय बिधान सभा के चुनाव हुए कांग्रेस ने प्राय सभी हिन्दू ,मुस्लिम सीटो पर चुनाव लड़ा ! मुस्लिम लीक ने मुस्लिम सीटो पर जब की हिन्दू महासभा ने कुछ सीटो पर चुनाव लड़ा ! हिन्दू महासभा से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनेक प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे ! गोलवरकर की कुटिल चाल के चलते ही ऐन वक़्त में जब पर्चा भरने का समय समाप्त होगया तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रत्यासियो ने अपने पर्चे बापस लेलिये जिसके परिणाम स्वरुप कांग्रेस हिन्दू बाहुल्य 57 सीटें जीत गई और मुस्लिमलीक को 30 सीटें मिली ! गोलवलकर की हिन्दू महासभा से यही गद्दारी भारत के बिभाजन का मूल कारण बानी अंग्रेजो ने कंग्रेस को हिन्दू और मुस्लिमलीक को मुस्लिमो की प्रतिनिधि पार्टी के रूप में आमंत्रित किया और दोनों पार्टियो की सहमति से 3 जून 1947 के उस फार्मूले को मान लिया गया जिसके तहत  14 अगस्त 1947 में (लार्ड माउन्ट बेटन के हिन्दू मुस्लिम नफरत और देश के बिभाजन के फार्मूले के सामने सभी नेता घुटने टेक दिए ) भारत को चीर कर पाकिस्तान को मंजूरी देदी गई  ! राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रतिज्ञा हिन्दू रक्षा और अबिभाज्य भारत के दावे थोथे साबित हुए 7 लाख युवाओ की संघी टोली खामोशी से मुस्लिम तुस्टी कारण को स्वीकार करने बाध्य हुई क्यों ! यह विचारणीय है ! तो यह जानना जरुरी है की अक्टूबर 1944 में सावरकर जी ने दिल्ली में कुछ बिशेष हिन्दू नेताओ की बैठक बुलाई थी जिसमे मुस्लिमलीक की ललकार और भारत को दो फाट करने बाली ताकतों से निपटने की रणनीति बनानी थी उस बैठक में राधामुकुन्द मुख़र्जी (सभाध्यक्ष )पुरी के शंकराचार्य ,मास्टर तारा सिंह ,जोगिन्दर सिंह,डॉ. खरे ,एवं जमुना दास मेहता उपस्थित हुए लेकिन जिसे ऐसी स्थियो से निपटने हेतु पालित पोसित संरक्षित किया गया था वो गोलवरकर की आर . एस . एस .नहीं आई ! हिन्दू महासभा द्वारा कुतुवमीनार ,वाराणसी के विशवनाथ मन्दिर को बचाने धरा 370 को समाप्त करने के आन्दोलनो से भी गोलवरकर की आर . एस . एस .ने दुरी बनली अब ये शिर्फ़ संगठन रहगया था जिसका राष्ट्र के प्रति कोई कार्य कही भी दिखाई नहीं दे रहा था ! जब भारत में हिन्दू संगठन राष्ट्र द्रोह माना जाता था तब सावरकर और डॉ. हेडगेवार के नेतत्व में नारा गुंजायमान होने लगा था (हिन्दुस्तान हिन्दुओ का -नहीं किसी के बाप का ) डॉ .हेडगेवार की आर . एस . एस में सावरकर ,महाराणा प्रताप,शिवाजी ,गुरु गोविन्द सिंह ,बादा वैरागी आदर्श हुआ करते थे शाखाओ में इनकी पथ की सराहना होती थी ! जँहा अब माधव राव सदाशिव राव  गोलवरकर बन्दना को प्राथमिकता है ! 1936 - 37 में गोलवरकर संघ में आये 1938 में इन्होने (वि.आर. अवर नेशनहुड डिफाइंड -हमारी राष्ट्रीयता  ) नामक पुस्तक लिखी जिसमे सावरकर जी की पुस्तक (हिंदुत्व ) एवं विनायक दामोदर सावरकर के बड़े भाई बाबा राव सावरकर की पुस्तक (राष्ट्र मीमांसा ) से प्रेरित होने और इन्ही पुस्तको को अपना आदर्श मानाने बाले गोलवरकर ने कांग्रेसी भय या साठ  गंठ के चलते कुछ समय बाद कहा की मेरी लिखी हुई पुस्तक (वि.आर. अवर नेशनहुड डिफाइंड -हमारी राष्ट्रीयता ) को भूल जाओ ये बही हिन्दू वादी गोलवरकर है जिसने हिन्दू राष्ट्र के कल्पना को साकार करने बाले संगठन आर . एस . एस के संविधान में संशोधन कर हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्र के एजेण्डे को गोल करदिया अर्थात  पूरा का पूरा संघ उस पथ से भटक गया जिसपर चलने उसका जन्म हुआ था ! 1971 में आर . एस . एस. को पथभ्रस्ट करने बाले गुरु जी जिन्होंने संघ को हिंदुत्व बिहीन बना दिया कैंसर से पीड़ित होगये जिनकी 1993 में मौत होगी !  माधव राव सदाशिव राव  गोलवरकर के बाद बालासाहब देवरस संघ प्रमुख बने जिन्होंने ग्वालियर में कहा की मुस्लिम क्रिश्चियन में भी हिन्दू का ही लहू है ये हमारे अपने है अजीव लगता है लहू को पहचाने बालो के इन कथनो को सुन कर ये जाने कहा छुप गए थे जब हिन्दुओ का क़त्ल हुआ जब महिलाओ की इज़्ज़त लूटी गई जब लाशो के ढेर पर बैठ कर भारत को चीर दिया गया जब देश में में मुस्लिम तुस्टीकरण के नाम पर हिन्दुओ के रक्त और मुस्लिम कटारो से ये भूमि लाल हुई तब इनको लहू का रिस्ता याद क्यू नहीं आया ! 1977 -78 में नागपुर संघ कर्यालय में मुजफ्फर हुसैन के नेतत्व में बालासाहब देवरस ने नमाज अदा कराई क्या मंजर रहा होगा जब  डॉ . केशव बलिराम हेडगेवार की प्रतिमा के सामने नमाज अदा हुई होगी और संघ प्रांगण अजान से गुंजाय मान हुआ होगा ! कट्टरता की चाटुकारिता के बीच एकता के ऐसे प्रयासो के परिणाम शून्य ही रहे  !  बालासाहब देवरस के बाद राजिंदर सिंह उर्फ़ रज्जू भईया संघ प्रमुख बने जो लघभग पुरे समय बीमार ही रहे ! परन्तु इनके विचार डॉ . केशव बलिराम हेडगेवार से मिलते थे नाकि गोलवरकर से ! संघ ने अपने पाचवे प्रमुख के रूप में मार्च 2002 में श्री कु. सी. सुदर्शन को पेश किया जिनको हिन्दू शव्द कहने में तकलीफ महसूस होती थी शायद इसी लिए ये हिन्दू के जगह भारतीय शब्द् का उपयोग करते थे ये मुस्लिम परस्त थे ,मुस्लिम उलेमाओं से अनेको बैठके करने बाले श्री कु. सी. सुदर्शन ने 2002 में राष्ट्र बादी मुस्लिम मंच का गठन किया जिसके संयोजक  इंद्रेश कुमार और मोहम्मद अफज़ल इस संगठन के प्रमुख बने जो संघ की साख के रूप में आज भी विद्वान है ! श्री कु. सी. सुदर्शन ने  20 अगस्त 2012 सोमबार को ईद की नमाज़ अदा करने भोपाल की मस्जिद का रुख किया था जिनको बा मुस्किल रोक जा सका सर पर मुल्ला टोपी पहन कर नमाज़ पढने की होड़ लगाने बाले हिन्दू नेताओ से पूछना चाहिए की आज तक इनके कृत्यों से प्रभावित होकर कितने मुसलमानो ने माथे में तिलक लगाया और हनुमन चालीसा का पाठ किया है  ! कैसे भुला दिया गया हिन्दू महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जिन्होंने जनसंघ का गठन किया अर्थात भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की जनक हिन्दू महासभा ही है ! मैंने खुद राम मन्दिर के नाम पर इकट्ठे हुए अनुमानित 14 सो करोड़ और सोने की ईंटो के लापता होने की जान करी नरेन्द्र मोदी ,मोहन भागवत ,लालकृष्ण आडवाणी,सहित संगठन के प्रमुख लोगो से कई कई बार जानकारी चाही जिसपर इनकी मौन संदेहास्पद ही लगी ,गौहत्या का खुला खेल देश में जारी है ,धरा 370 ,सामान नागरिक सहित ,राम मन्दिर निर्माण महज चुनावी मुद्दे बनकर रह गए जिन पर भरोषा किया गया उनकी हरकते सदैव ही संदेहास्पद रही हिन्दू बादी मुखौटे में छुपे हिन्दुओ के दमन कारियों का गाल बजने से क्या देश में में आपसी सौहार्द बढ़ा है क्या हिन्दू मुस्लिम एकता को बल मिला क्या राष्ट्र में अब किसी धर्म का अपमान नहीं होता क्या राजनीति पर धर्म आज भी भरी नहीं है ,इसका जवाब सांसद भबन के भीतर वन्देमातरम का अपमान करने बाले सफीकुर्रहमान ने दे दिया उसने जूता मार सभी नेता खामोश रहे ....... ?
फ़र्ज़ी हिन्दू बादी नेताओ ने हमेशा देश में नफ़रत को फ़ैलाने की कोशिश की हिन्दू को मुसलमानो से लड़ाया और अपनी रोटी बेटी का रिस्ता उन्ही मुसलमानो से बनाया जिनके प्रति नफ़रत फैला कर इन्होने सत्ता पाई !अपना मुखड़ा दर्पण में देखे बिना ही छिछोरी टिप्पड़ी से  नाथूराम विनायक राय गोडसे को आज खलनायक की उपाधि देने बाले गोलवरकर की आर . एस . एस. को आत्म चिंतन और आत्म शुद्धि की जरुरत है उनको गोलवरकर और गोडसे को जानना होगा ! वीर विनायक दामोदर सावरकर सहित डॉ . केशव बलिराम हेडगेवार को समझना जरुरी है वार्ना अधजल गगरी छलकत जाय की कहाबत को चरितार्थ करने बाले अपने आदर्शो का अपमान करते रहेंगे पथ भटके लोग कितना भी पथ संचालन करले उनकी मंजिल वो कदापि नहीं हो सकती जिस हेतु वो चले थे !  गीता को सीने में चिपका कर हिंदुत्व का पाखंड करने बालो का चरित्या जगजाहिर है जिन्होंने दुसरो को पथ भ्रस्ट कहा उनके पथ का दर्शन हमने जन जन को कराया हमारा उद्देश्य स्पस्ट है की मुह में रुमाल रख कर बलात्कार करने बालो के मुखौटो को नोच कर उनकी सच्चाई से जनता को रूबरू कराया जाये अब जनता तय करे नायक कौन और खलनायक कौन ! गीता के अनुरूप  ऐसे लोगो की क्या गति हो उस पर इनको स्वतः ही चिंतन करना होगा (गीता में श्री कृष्ण ने कहा है धर्म युध में कोई भी निरपेछ् नहीं रह सकता जो धर्म के साथ नहीं समझो बाह धर्म के विरूध खड़ा है ) शायद नथुराम ने गीता को सच्चे मन से पढ़ा समझा और उसका पालन भी किया था !नथुराम गोडसे के जीवन चरित्या को समझने की छमता संकीर्ण मस्तिष्क के बूते की बात नहीं गोडसे को समझने के लिए समीक्छात्मक बुद्धि और सोच की जरुरत है !  इस खोज में तुलसी दास चानना आगरा (रिटायर आई. आर.एस.)ने अपना मार्ग दर्शन दिया हम उनके आभारी है !
हाल ही में जम्मू कश्मीर में सत्ता सीन हुई भाजपा और देश के प्रधानमंत्री से कोई पूछे की अब क्या होगा इनके उस बादे का जिसे इन्होने 120 करोड़ के भारत से किया था क्या गर्व भरा माहोल था जब देश के प्रधान मंत्री के सामने सज्जाद लोन (अलगाओ बादी नेता )ने मंत्री के रूप में शपथ ली और सब ने तालिया पीटी आर .एस .एस. और भाजपा ने देश के साथ क्या आज भी बही नहीं किया जिसके लिए ये सदैव से विख्यात रहे है , जब देश का प्रधान मंत्री झूठ बोल रहा हो तो भारत के भविष्य के प्रति भय स्वभाबिक है,पी.डी.पी.के 8 विधायको ने (मोहम्मद खलील. जरूर अहमद मीर ,रज़ा मंजूर अहमद,मोहम्मद अब्बास वानी,यावर दिलावर मीर ,एडवोकेट मो. यूसुफ,अज़ाज अहमद मीर,और नूर मोहम्मद शेख) एक स्वर में सांसद भवन के हमला बार कुख्यात आतंकी अफज़ल गुरु को फांसी की सजा दिए जाने के कारण न्यायलय की प्रक्रिया पर प्रशन चिन्ह लगा दिया इन विधायको ने अफज़ल की अस्थियो को कश्मीर में स्थापित करने की माँग की कल के दिन सत्ता लोभी भाजपा अफज़ल गुरु को वोटो के लोभ में कही राष्ट्र चिंतक या राष्ट्र गुरु की उपाधि से सम्मानित करदे इसमें कोई अचम्भो की बात नजर नहीं आती ! 120 भारतीयों के हत्यारे मसरत आलम की रिहाई करने बाली भाजपा की सरकार (जम्मू कश्मीर ) के कृत्यों से साफ़ जाहिर है की हिन्दुओ के बोट से सत्ता सीन हुए स्वार्थियों की इक्छा शायद अब भारत में सुन्नत को बढ़ाबा देने की है जिसे साफ़ तौर पर देखा जा सक्ता है ! भाजपा कैसे भूल गई और जनता को याद क्यू नहीं रहा मोहम्मद मुक्ति सईद का वो आतंकी कृत्य जिसमे इन्होने 8 दिसम्बर 1989 को अपनी बेटी रुबिया सईद का अपहरण कश्मीरी लिब्रेसन फ्रंट द्वारा कराया था और भारत सरकार से अपनी बेटी को छुड़ाने देश के 5 खूंखार आतंकियों को छोड़ने का जघन्य एवं राष्ट्र द्रोही कृत्य किया था  ये  वी. पी. सिंह की सरकार में मोहम्मद मुक्ति सईद खुद गृह मंत्री थे आज बही जम्मू कश्मीर के मुख्या मंत्री है तो देश द्रोही आतंकियों की रिहाई दाना दान हो रही है ऐसे में क्या इस नेता को आतंकी या राष्ट्र द्रोही घोसित करके जेल में नहीं दाल देना चाहिए ! कैसी बिडम्बना है देश की की राष्ट्र द्रोहियो और  गद्दारो के सरपरस्त सत्ता सीन है तो भारत का भविस्य चिंतनीय है ! भाजपा को अब शायद कुछ याद नहीं रहा जो चुनावी समर में इन्होने बड़े बड़े लुभाबने किस्से गपोले थे ! वो ढपोल शंखी अब बे पर्दा होने मजबूर है ! मूक दर्शको राष्ट्र हित हिंदुत्व की आन बचाने कुछ तो बोलो ! मर मिटने से पहले जग में हिन्दू जागो रे जागो हिन्दू जागो रे जागो 

बुधवार, 14 जनवरी 2015

  मोदी मोदी मोदी और मोदी की गुलामी करता मिडिया तब हमारी बात नहीं मानता सुनाता था जब हम कहते थे की पैसे का खेला है ठगी का झमेला है , राम को बेच बेच कर सत्ता की रोटी खाने बाले ठग नेताओ के चरित्र को देख कर तो बेशर्म भी शर्म से मर जाये इनकी जुबान से अब राम का नाम भी गली लगता है दुनिया जानती है की राम मन्दिर का मुकदमा न्यायलय में विचार धीन है , भाजपा ने कहा की न्याय सांगत तरीके से मन्दिर का निर्माण होगा तो बंधुओ अन्याय की बात कौन करता है इन्होने ही तो न्यायलय में चलने बाले मुकदमे को नजर अन्दाज कर कार्य सेव का राजनैतिक खेल खेला हजारो हिन्दुओ की हत्या हुई और राम के नाम पर कई कई बार सत्ता सीन हुए कभी गठबंधन का रोना रोया कभी पूर्ण बहुमत की अपील की जब पूर्ण बहुमत मिला तो इनकी रंगो में दौड़ते गद्दारी के खून ने अपना असर दिखाया और ये राम द्रोही अब न्यायलय के आदेश का इंतज़ार करने लगे जिन्हो ने सत्ता के खातिर न्यायलय की धज्जिया उड़ाई थी तो अब न्यायलय क्यों नहीं लेता इस पर संज्ञान क्यू संदेहास्पद हो रही है न्याय व्यबस्था भी इन बहुरूपीओ के सामने , जो बिदेशो की चरण बन्दना से खुद को धन्य मानते है देश की मानव संसाधन मंत्री की शिक्षा संदेहास्पद हो प्रधान मंत्री के लच्छे दार भाषणो से देश की जनता का भरण पोषण हो रहा हो तो राम ,को 10 रुपये की पन्नी से हटा पाना मुमकिन नहीं मुस्किल है !इनके ठग चरित्र के बारे में हम कुछ भी बोलेगे तो आप भी बोलोगे  की हिन्दू महासभाई बोलता है अतः आप स्वयं जाँचे परखे और हमें भी अबगत कराये इनके राष्ट्र हितैसी कारनामो से इन्हो ने जिस हिन्दू के सर पर सबार होकर सत्ता पाई आज उसकी औकार क्या है 
 जय हिन्द हिन्दू जागो रे जागो 


शनिवार, 10 जनवरी 2015

हिन्दू को कायर सावित करने की हर सम्भब कोशिस की जा रही है मकबूल फ़िदा हुसैन ने हमारे देवी देबताओ की नंगी तस्वीरें बनाई और देश में सम्मानित होता रहा , तभी तो pk जैसी घटिया फिल्म परोस कर हिन्दुओ के देबाधिदेव शिव को बाथ रूम में बंद किया जाता है लोगो के पैरो के नीचे से भागते शिव जी कटुए से अपनी जान बचते है और हिन्दू इस फिल्म को देख कर तालिया पीटता है ! कभी  tv में चलने बाले आधार हीन सीरियल अकबर जोधा की कहानी को परोष कर हिन्दुओ को उनकी औकात याद दिलायी जाती है ! अब देखिये इस महा मादर ............. को जिसने गणपति जी की ऐसी अश्लील तस्वीर अपने twotter @ praveeen swami में पोस्ट की और हिन्दू खामोसी से अपनी कायरता को छुपाने में मसगुल है …… तभी तो मानना पड़ता है की इस्लाम धर्म ने अपने आस्था और ईश्वर पर आघात करने बालो को जो सजा दी वो जायज थी ,हम नहीं खेलते किसी की आस्था से परन्तु हमारी आस्था के साथ बलात्कार क्यू ,  कायरता को छोड़ हथियार नहीं उठाओ परन्तु अपनी आस्था ,संस्कृति ,ईश्वर के होते अपमान पर अपनी जवान तो चला ही सकते हो अपनी आत्मा को झकझोरो अपने सम्मान के लिए कायरता छोड़ो अहसास करो की तुम जिन्दा हो हे हिन्दू जागो रे जागो