शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

      तुम जिओ हजारो साल साथियो मै तो मरने को ही जन्मा हू ,
अब्दुल कलाम जी के योगदान से भारत गौरव महसूस कर रहा है ,ऐसे सपूत किसी जाती धर्म के नहीं बल्कि राष्ट्र के होते है ! परन्तु जातीबादी उन्माद में ऐसे पुरुष के महत्व के नज़ारे चिन्तनीय है ! जब कलाम साहब को अंतिम बिदाई देने किलो मीटरों की कतार में खड़े भारतीय सिसक रहे थे ! तब यकूव मेनन जैसे दुर्दान्त आतंकी की मौत का मातम मानते मुसलमान यह क्यू भूल गए की मुंबई बमब्लास्ट में सिर्फ हिन्दू भर नहीं मुसलमान ईशाई बौद्धया अर्थात इंसान का लहू बहा था ! न्यायलय ने जिसे अपराधी घोषित किया उसे नेक इंसान कहकर उसके सव यात्रा में शामिल लाखो की संख्या बाला समुदाय आखिर क्या सिद्ध करना चाहता है !
यह हिन्दू भर नहीं सम्पूर्ण भारतीयों के लिए चिंतन की बात है के भारत रत्न बाले कलाम को श्रद्धांजलि देनी की जरुरत उन्हों महसूस नहीं हुई जो यकूव मेनन की मौत में ग़मगीन थे ! अर्थात आतंकी पूजन की प्रथा बाला समाज अब चिन्तनीय है ! हिन्दू जागो रे जागो