मंगलवार, 30 जुलाई 2024

   आज सनातन को समूल समाप्त करने शिखण्डियों की फ़ौज है
और इस पवित्र भारत में शिखण्डियों की ही मौज है ।

आर्यावर्त-भारत जो देवभूमि, संत, गौ, गंगा और प्रकृति के अपार वात्सल्य के साथ योग, 
कर्म-कर्तव्यों की मर्यादा भूमि जिसका कण-कण पूजित है, पवित है, 
क्या वह हमारे संतुष्टि और गर्व के लिए कम है..?

अध्यात्म और साधना की वह शक्ति जो साधारण से साधारण व्यक्ति भी पत्थर पूजकर उसे ईश्वर रूप में जागृत कर बारदान प्राप्त करने की विधा का मर्मज्ञ हो उनके लिए ईश्वर ने स्वयं इस भू भाग को आर्यावर्त-देव भूमि के रूप में स्थपित करने अनेकों जन्म लिए, परंतु अस्थिर मांसिकता तथा स्वयं को दूसरो से प्रथक दिखाने की छणिक होड़ ने उस सनातन का बार-बार अपमान किया जिसने हमे सतमार्ग से मोक्ष अर्थात् ईश्वर प्राप्ति का सहज मार्ग बताया, हम भ्रमित ना हो सत्य और सनातन की मर्यादा हमारे हाँथो तार-तार ना हो इसी लिए गुरु शिष्य परंपरा के साथ मंदिरों की स्थापना की गई ।
आज पुरातन काल की पवित्र परंपरा जीर्ण-छीर्ण इस लिए हो रही है की हमने अपने अंदर झांकना और स्वयं को पहचानना छोड़दिया है स्पष्ट है कि हम स्वयं से दूर अर्थात् संस्कृति, सनातन की मर्यादा और सत्यता से दूर हुए है, हम चेतना शून्य हुए है, इसका कारण सिर्फ़ एक ही है की सनातन को समाप्त कर दिया जाए तो यह राष्ट्र सदा-सदा के लिए ग़ुलाम अथवा समाप्त हो जाएगा, जिस हेतु विदेशों से और राष्ट्र विरोधियों से अकूत पैसा भारत में उड़ेला जा रहा है, देखने और समझने की ज़रूरत है की कोई बाबा अचानक पैदा होता है और अरबपति बनजाता है, टीवी चैनलो में पैसे के दमपर उसके चमत्कार और महिमा मंडन के कार्यक्रम प्रचारित होते है । इस भ्रम में हम स्वयं के अस्तित्व को भूलकर अपने बिनाश को स्वीकार करलेते है, क्या यह चिंतन का विषय नहीं की हम भ्रमित है..?

सनातन के पालन और पथदर्शन के लिए शंकराचार्यों की चार पीठों को चारो दिशाओं में स्थापित किया  (बद्रीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी, द्वारिका पीठ) 

गोवर्धन पीठ-जगन्नाथ पुरी, उड़ीसा 
जिनके देवता-जगन्नाथ भगवान, देवी-विमला, तीर्थ-महोदधि, वेद-ऋगवेद, महावाक्य-प्रज्ञान ब्रह्म, प्रथमाचार्य-पद्मपादाचार्य, ब्रह्मचारी-प्रकाश और पीठाधीश्वर के पद पर-अनंत बिभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज वर्तमान में विराजमान है ।

श्रृंगेरी पीठ-कर्नाटक
जिसके देवता-आदिवाराह, देवी-कामांक्षी, तीर्थ-रामेश्वर, वेद-यजुर्वेद, महावाक्य-अंह ब्रह्मास्मी, प्रथमाचार्य-हस्तामलकाचार्य, ब्रह्मचारी-चैतन्य, और पीठाधीश्वर के पद पर-अनंत बिभूषित जगद्गुरु  शंकराचार्य स्वामीश्री तीर्थ भारती जी महाराज और चल गद्दी पर विधुशेखर भारती जी महाराज वर्तमान समय में विराजमान है ।

शारदा पीठ- द्वारका, गुजरात 
देवता-सिद्धेश्वर, देवी-भद्रकाली, तीर्थ-गोमती, वेद-सामवेद, महावाक्य-तत्वमसि, प्रथमाचार्य-सुरेश्वराचार्य, ब्रह्मचारी-स्वरूप, और पीठाधीश्वर के पद पर अनंत बिभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री सदानंद जी महाराज वर्तमान समय में विराजमान है ।

ज्योतिषपीठ-बद्रिकाधाम उत्तराखण्ड
जिसके देवता-नारायण, देवी-पुर्णागिरी, तीर्थ-अलकनंदा, वेद-अथर्ववेद, महावाक्य-अयमात्मा ब्रह्म , प्रथमाचार्य-त्रोट्काचार्य, ब्रह्मचारी-आनंद, और पीठाशीश्वर के पद पर अनंत बिभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री अवि मुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज वर्तमान समय में विराजमान है ।

आचार्य परम्परा अर्थात् ज्ञान और विज्ञान का अकूत भंडारण जो हमे विरासत में प्राप्त हुआ उसके अनुरूप, निम्बारकाचार्य, माधवाचार्य, बल्लभाचार्य, रामानन्दाचार्य और रामानुजाचार्य की परंपरा वर्तमान समय में विदमान है । पवित्र सनातन और राष्ट्र की रक्षा, उसके उत्थान और समाज को शिक्षित, सबल, संपन्न, शक्तिशाली बनाने के लिए ही तेरा अखाड़ो का निर्माण किया गया था ।
श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा,
श्री पंचअटल अखाड़ा, श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा, श्री तपोनिधि आनंद पंचायती अखाड़ा, श्री पंचदशनाम  जूना अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आव्हान अखाड़ा, श्री पंचदशनाम अग्नि अखाड़ा, श्री दिगंबर अनि अखाड़ा , श्री निर्वानी अनि अखाड़ा, श्री पंच निर्मोही अनि अखाड़ा, श्री बड़ा उदासीन अखाड़ा, श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा, श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा, है ।
सभी के कार्य विभाजित है, सनातनी जानता का विश्वास युक्त अंकुश इस पारंपरिक अखाड़ो से अलग हुआ, संतों से संबाद हीनता, सत्संग और देश तथा समाज के उत्थान की चर्चाये बंद हुई तो अखाड़े भी निरंकुश हो गए, नये अखाड़े बनाने लगे किन्नर अखाड़े का निर्माण करदिया गया किसी ने ना तो प्रतिरोध किया ना ही संतों और मठाधीशों की घेरा बंदी की यह सामाजिक उदासीनता भारत के लोगो को भले ही समझ नहीं आई परंतु भारत को नष्ट-भ्रष्ट करने की ताक में बैठे षड्यंत्रकारियो ने इसका लाभी उठाया और सनातनी भारत को वैदिक धर्म से भटकाने के लिए ही राधे माँ-सुखविंदर कौर, निर्मल बाबा-निर्मल जीत सिंह, रामपाल बाबा, राम रहीम-गुरमीत सिंह, आशाराम-आशुमल शिरमलानी, नारायण सरकार, नित्यानन्द, सच्चिदानंद गिरी-सचिन दत्त, इक्षाधारी भीमानंद-शिवमूरत दुवेदी,स्वामी असीमानंद,नारायण साईं, आचार्य कुश्मुनि, वृहस्पति गिरी, मालखान गिरी बाबा, ॐ नमः शिवाय बाबा, जैसे सनातन विरोधियों को आश्रय देकर संपूर्ण राष्ट्र को पतन के पथ पर चलने को मजबूर किया, इस पतन और फलते-फूलते पाखंड के सामने पुरातन संत परंपरा इस लिए भी घुटने टेकने लगी की अधिकांस अखाड़े, आचार्यों के विरुद्ध फर्जी संतों को खड़ाकर सरकारों ने भी अपने ग़ुलाम संत पैदा कर धर्म को भर नहीं संपूर्ण राष्ट्र, समाज और परंपरा को धोखा दिया स्वघोषित शंकराचार्य, जगद्गुरु, महामंडलेश्वरों की गड़णा करना मुस्किल है कारण स्पष्ट है हमे अपने धर्म के विनाश के कोई सरोकार नहीं, परंतु हम यह भूलगए की हमारा अस्तित्व हमारा धर्म ही है जिसके सामने संसार नतमस्तक होता था आज दुनिया उस अलौकिक शक्ति को मिटाकर भारत को ग़ुलाम बनाने में सफल हो रही है, और भारत के सनातनी आराम से पाश्चात् सभ्यता को आदर्श रूप में स्वीकार कर मदहोशी में थिरक रहे है, जब तक यह चैतन्य होगा तब तक हमारी सभ्यता संस्कृति परम्पराएँ समाप्त हो चुकी होगी हमारे पास क़िस्से और कहनियों के शिवाय कुछ भी नहीं होगा, आज निर्विबादित कोई भी पीठ, कोई भी आचार्य, कोई भी अखाड़ा नहीं रहा, इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है की भारत की अब अल्प आयु बची है कर्म और धर्म विहीन देश दीर्घ जीवी कभी नहीं हो सकता । 

हम धार्मिक-आध्यात्मिक और बौद्धिक रूप से कंगाल होरहे है ।
हमने स्वयं को छोड़कर संसार को पहचानने का यत्न किया, हमने स्व कल्याण की छाती में ख़ंजर भोपकर विश्व कल्याण का आडंबर किया परिणाम सामने है ।

चिंतन करे और सार्थक यत्न भी, कमियाँ नहीं समाधान ढूढ़े, संतों से दूरी नहीं नक़दीकी बढ़ाए, परंपराओं पर परिहास नहीं उनके पालन की प्रतिज्ञा ले शायद आप के सार्थक यत्न से आर्यावर्त का एक छोटा सा टुकड़ा भारत जो आप का अपना बचा है उसे सुरक्षि करने में सफल हो जाए 



 आपका
देवेन्द्र पाण्डेय