शनिवार, 3 जुलाई 2010

आत्ममंथन

प्रणाम दोस्तों !!                        
                          ईश्वर ने संपूर्ण श्रृष्टि की रचना करके जो अनुपम उपहार दिया है उसके कणकण में जीवन भरा है | संपूर्ण संसार की सुन्दरता से भी सुन्दर है मनुष्य का दिमाग जो अन्यत्र किसी जीव या प्राणी में नहीं है | हम इस दिमाग का उपयोग विकास में करें तो संपूर्ण श्रृष्टि को खुशहाल और सुन्दर बनाने में हमारा भी  योगदान आत्मसंतुष्टि प्रदान करेगा जो जीव जगत के कल्याण में किया गया एक तिनका मात्र प्रयास ही होगा | फिर क्यों भागते हैं हम अपने आप से ? जागो और खुद को पहचानो | हे मानव तुम ही सर्वशक्तिमान हो |

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