रविवार, 6 मई 2012

    भटके हुए राही को मंजिल मिल ही जाती है
गुमराह तो वो  है जो घरो से निकलते ही नहीं


लीक लीक गाड़ी चले लीकय चले  कपूत
लीक छोड़ तीनो चले
सायर सिंह सपूत

दिल में जो जख्म है
ओ सब फूलो के गुच्छे है
हमको पागल ही रहने दो
हम पागल ही अच्छे  है


संघर्षो के साए में असली
आजादी पलती है
इतिहास धर मुड़ जाता है
जिस और जवानी चलती है

     आपका
देवेन्द्र पाण्डेय "डब्बू जी "

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