बुधवार, 1 जून 2022

     हमने निश्छल प्रेम किया

और तुमने जेहाद किया सत्ता के लोभ में हमारे जीवन मरण का सौदा किया हरहाल में ज़बरदस्ती की, कभी सत्ता हथियाने और अपना अस्तित्व बचाने के लिए, कभी धर्म के विस्तार तो कभी आवरू के हरण का षड्यंत्र किया,

तुम जेहादी हो ,जेहादी हो , सिर्फ़ जेहादी हो ,

हमने हर हाल में सिर्फ़ निश्छल प्रेम किया भरोषा किया और तुमने हर घड़ी सिर्फ़ और सिर्फ़ जेहाद किया, इतिहास में दर्ज प्रशंग आपसी प्रेम और आत्मियता के सम्बंध सिर्फ़ हिंदुओ का एक तरफ़ा प्रेम ही हिंदुओ के पतन का कारण हुआ, जब की जेहदियो के प्रेमषड्यंत्र सत्ता के कुटिनीतिक सौदे थे, कभी प्रेम तो कभी षड्यंत्र के नाम पर सत्ता लोभ के जो सौदे हुए उस पर दोनो तरफ़ से बार बार महिलायें ही दाव पर लगाई गई ,शायद आज का जेहाद हमारे कल के आत्मीय प्रेम की भयानक भूल का ही परिणाम है, महिलाओं के साथ षड्यंत और उनके सौदे बंद होने ही चाहिए, क्यों की इतिहास गवाह है मुग़लों , तुर्कों , पठानो , कबलियो से किए गए हिंदुओ की आवरू के सौदे से भी हम और हमारा देश सुरक्षित नहीं थे,ना सुरक्षित है, ना ही सुरक्षित होने की उम्मीद ही है, अब इस रोटी - बेटी के स्वार्थी रिश्ते रूपी षड्यंत्र को रोकना ही होगा अन्यथा धर्म संस्क्रति संस्कार और राष्ट्र सब कुछ इस षड्यंत्र में स्वाहा हो जाएगा, भरत का भारत कलंकित होगा और हिन्दू कभी भी स्वातंत्र ना होने की शर्त पर हमेशा हमेशा के लिए अनंत काल के लिए ग़ुलाम होजएगा

👇हिन्दू राजाओं की निश्छल प्रेम कथा के कुछ उदाहरण 👇

1-  बप्पा रावल-गजनी के मुस्लिम शासक की बेटी- सबसे पहले हम बात करेंगे चित्तौड़गढ़ के महान शासक बप्पा रावल की जिन्हें काल भोज के नाम से भी जाना जाता है और उन्हें “फादर ऑफ रावलपिंडी” की उपाधि भी दी गई है। काल भोज ने 30 से अधिक मुस्लिम राजकुमारियों से विवाह किया था, जिनमें गजनी के मुस्लिम शासक की बेटी भी शामिल है। लेकिन हमारे देश के इतिहासकारों ने इस आपसी प्रेम संबंध की जानकारी को छिपाए रखा।

2-  महाराजा छत्रसाल-रूहानी बाई- राजा छत्रसाल को कौन नहीं जानता उनका विवाह भी मुस्लिम युवती के साथ हुआ था जो कि हैदराबाद के निजाम की पुत्री थी और नाम था रूहानी बाई। रूहानी बाई और राजा छत्रसाल ने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम था मस्तानी, आगे चलकर मस्तानी ने भी मराठा शासक बाजीराव प्रथम से प्रेम विवाह किया था। हालांकि बाजीराव प्रथम का यह द्वितीय विवाह था।

3-  महाराणा अमरसिंह जी- शहजादी खानुम- भारत के पुत्र वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की मुगल सेना को बुरी तरह पराजित कर दिया। इसके बाद उनका पुत्र महाराणा अमर सिंह मेवाड़ के शासक बने और उन्होंने अकबर की बेटी शहजादी खानुम के साथ विवाह किया, लेकिन इतिहासकारों ने इस प्रेम विवाह का जिक्र कभी नहीं किया।

4-  राणा सांगा-मेरूनीसा- मेवाड़ के महान शासकों में शामिल और शरीर पर 80 घाव लगने के बाद भी दुश्मनों को नानी याद दिलाने वाले मेवाड़ी महान सम्राट महाराणा सांगा ने 4 मुस्लिम लड़कियों से प्रेम विवाह किया था, जिनमें “मुस्लिम सेनापति के बेटी मेरुनिसा” का नाम शामिल है।

5-  विक्रमजीत सिंह-आजमगढ़ की मुस्लिम लड़की- अपने समय के महानतम राजाओं में शामिल विक्रमजीत सिंह गौतम का आजमगढ़ की मुस्लिम लड़की से प्रेम विवाह को इतिहासकार लिखने से परहेज करते आए हैं।

6-  राजा हनुमंत सिंह-जुबेदा- जोधपुर के राजा हनुमंत सिंह और मुस्लिम लड़की जुबेदा का प्रेम विवाह जगजाहिर है लेकिन इतिहासकारों ने इस विवाह को हमेशा ही गुप्त रखा।

7-  कुंवर जगत सिंह-मरियम- इसके अलावा उड़ीसा के नवाब कुतुल खा की बेटी मरियम और कुंवर जगत सिंह का प्रेम विवाह, मेवाड़ के शासक महाराणा कुंभा और जागीरदार वजीर खान की बेटी का प्रेम विवाह, मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की बेटी हैलेना का प्रेम विवाह, राजा मानसिंह और मुबारक का प्रेम विवाह, अमरकोट सम्राट वीरसाल और हमीदा बानो का प्रेम विवाह, मौर्य शासक राजा बिंदुसार और अमीर खुरासन की बेटी नूर खुरासन का प्रेम विवाह 

अल्लाउदीन खिलजी की बेटी "फिरोजा"" जो जालोर के राजकुमार विरमदेव की दीवानी थी वीरमदेव की युद्ध मै वीरगति प्राप्त होने पर फिरोजा सती हो गयी थी!

औरंगजेब की एक बेटी ज़ेबुनिशा जो कुँवर छत्रसाल के पीछे दीवानी थी ओर प्रेम पत्र लिखा करती थी ओर छत्रसाल के अलावा किसी ओर से शादी करने से इंकार कर दिया था!

औरंगजेब की पोती ओर मोहम्मद अकबर की बेटी सफियत्नीशा जो राजकुमार अजीत सिंह के प्रेम की दीवानी थी!
इल्तुतमिश की बेटी रजिया सुल्तान जो राजपूत जागीरदार कर्म चंद्र से प्रेम करती थी!

औरंगजेब की बहन भी छत्रपति शिवाजी की दीवानी थी शिवाजी से मिलने आया करती थी!

ये प्रेम कथाए ,प्रेम विबाह इतिहास के पन्नों से शायद इस लिए ग़ायब है की कही आज का मुसलमान कल के हिन्दू राजाओं के प्रेम प्रशंग, प्रेम विबाह से नाराज़ ना हो, इतिहास भी मुस्लिम तुष्टिकरण के आधार पर ही लिखा गया हिंदुओ के निश्छल प्रेम प्रशंग को छुपाया गया और मुसलमानो के जेहादी षड्यंत्रो को संबंधो की मधुरता बताया गया।

सत्ता, सम्पत्ति के लोभ, हिन्दू राजाओं का हिन्दू राजाओं से आपसी भेद और मुग़लों के दवाब प्रभाव में आकर हिन्दू राजाओं ने मुसलमानो को अपनी बेटियाँ सौंपी जो इतिहास को शर्मिंदा करने और मुसलमानो के जेहाद को सबल बनाने का आज भी कारण बना हुआ है 👇



जनवरी 1562, अकबर ने राजा भारमल की बेटी से शादी की (कछवाहा-अंबेर)
नवंबर 1569, महारावल हरिराज सिंह ने अपनी पुत्री राजकुमारी नाथी बाई का विवाह अकबर से किया 
(भाटी-जैसलमेर)
15 नवंबर 1570, राय कल्याण सिंह ने अपनी भतीजी का विवाह अकबर से किया (राठौर-बीकानेर)
1570, मालदेव ने अपनी पुत्री रुक्मावती का अकबर से विवाह किया (राठौर-जोधपुर)
1573, नगरकोट के राजा जयचंद की पुत्री से अकबर का विवाह (नगरकोट)
मार्च 1577, डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)
1581, केशवदास ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर से किया (राठौर-मोरता)
16 फरवरी, 1584, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का भगवंत दास की बेटी से विवाह (कछवाहा-आंबेर)
1587, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से विवाह (राठौर-जोधपुर)
2 अक्टूबर 1595, रायमल की बेटी से दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)
28 मई 1608, जहांगीर ने राजा जगत सिंह की बेटी से विवाह किया (कछवाहा-आंबेर)
1 फरवरी, 1609, जहांगीर ने राम चंद्र बुंदेला की बेटी से विवाह किया (बुंदेला, ओर्छा)
अप्रैल 1624, राजकुमार परवेज का विवाह राजा गज सिंह की बहन से (राठौर-जोधपुर)
1654, राजकुमार सुलेमान शिकोह से राजा अमर सिंह की बेटी का विवाह (राठौर-नागौर)
17 नवंबर 1661, मोहम्मद मुअज्जम का विवाह किशनगढ़ के राजा रूप सिंह राठौर की बेटी से (राठौर-किशनगढ़)
5 जुलाई 1678, औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद आजाम का विवाह कीरत सिंह की बेटी से हुआ. कीरत सिंह मशहूर राजा जय सिंह के पुत्र थे (कछवाहा-आंबेर)
30 जुलाई 1681, औरंगजेब के पुत्र काम बख्श की शादी अमरचंद की बेटी से हुए (शेखावत-मनोहरपुर)


10 हिंदू राज कुमारियाँ जो मुग़लों ,सल्तनो की वेगम बनी ये राजनैतिक समझौते थे या इतिहास का अपभ्रंश था जिसे आज भी हिन्दू समाज अपमान सहित गर्व से झेल रहा है.

चित्तौड़ की रानी पद्मिनी और मुगल शासक अलाउद्दीन खिलजी की कथित मनगढ़ंत प्रेम कहानी को मुग़लों और उनके चाटुकारों ने खूब हवा दी परन्तु सत्य आधारित इतिहासकारों ने इस झूठे प्रपंच को सिरे से खारिज कर दिया है. सत्य आधारित इतिहासकारों ने पद्मिनी अथवा पद्मावती का जिक्र महज राजा रतन सिंह की पत्नी और अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के बाद जौहर करने वाली रानी के रूप में माना है. पैसे के लोभी फिल्म मेकर संजय लीला भंसाली को फिल्म 'पद्मावती' को लेकर राजपूत समाज का भारी विरोध झेलना पड़ा. इतिहासकारों ने भी इसे कपोल कल्पित कहानी करार दिया है. बहरहाल, हम यहां रानी पद्मिनी नहीं बल्‍कि उन 10 हिंदू राजघरानों की राजकुमारियों की बात कर रहे हैं, जो मध्यकालीन भारतीय इस्लामी हुकूमतों के साथ सियासी संबंधों में अहम भूमिका रखती हैं. इन सभी राजकुमारियों की शादियां सुल्तानों, शहजादों के साथ कर दी गईं थी.
जिस वैवाहिक संबंध की नीति का बड़े पैमाने पर आरम्भ अकबर ने किया था, उसके परिणाम हिन्दू इतिहास के लिए कलंकित करने बाले और भयाबह थे. अकबर ने जो विवाह कछवाही राजकुमारी से किया था उससे सलीम का जन्म हुआ. इस निकट संबंध से आमेर के राजपरिवार को महत्व मुगल दरबार और राजस्थान में बढ़ गया. इसका महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि मारवाड़ (जोधपुर) के मोटा राजा उदयसिंह ने भी अपने सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के अभिप्राय से अपनी पुत्री मानीबाई का विवाह सलीम के साथ कर दिया. जोधपुर की राजकुमारी होने से उसे जोधाबाई कहने लगे. इसी जोधाबाई को शाहजादा सलीम ने 'जगत-गुसाई' की पदवी देकर सम्मानित किया. इसी जोधाबाई से खुर्रम पैदा हुआ था. (संदर्भ- डॉ. जीएन शर्मा कृत 'राजस्थान का इतिहास', पेज-380).
भारत के मध्यकालीन इतिहास में राजपूत वंशों की भांति कछवाह भी राजस्थान के इतिहास मंच पर बारहवीं शताब्दी से महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. इसी वंश के शक्तिशाली शासक पंचवनदेव की मृत्यु के बाद मालसी, जिलदेव, रामदेव किल्हण, कुन्तल जणशी, उदयकरण, नरसिंह, उदरण और चन्द्रसेन ने शासन किया. चंद्रसेन के बाद बेटा पृथ्वीराज और उसकी मृत्यु (1527 ई.) के बाद छोटा बेटा पूर्णमल आमेर का शासक बना. पूर्णमल के साथ ही राजगद्दी के लिए गृह-कलह शुरू हो गया. इस गृह-कलह से गुजरते हुए पूर्णमल से भीमदेव, भीमदेव से रत्न सिंह, आसकरण होते हुए सत्ता भारमल के पास पहुंची. कछवाह वंश के आमेर(जयपुर) शासक भारमल को अधिकांश इतिहासकारों ने दूरदर्शी बताया है. शेरशाह और अकबर जैसी बड़ी शक्तियों के बीच आमेर में अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए उसने अकबर से संबंध बनाए. इन्हीं सियासी संबंधों को और करीबी बनाते हुए उसने बाई हर्का का अकबर से विवाह किया. 1562 में हुए इस विवाह से प्रेरित होकर अन्य राजस्थानी शासकों ने भी अपनी राजकुमारियों का विवाह अकबर और उसके राजकुमारों से करना शुरू कर दिया. (संदर्भ- डॉ.गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान का इतिहास,पेज-149).
राजस्थान यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के भूतपूर्व प्रोफेसर और विख्यात इतिहासकार डॉ.गोपीनाथ शर्मा की रचना 'राजस्थान का इतिहास' में आमेर की राजकुमारी और अकबर के विवाह के साथ अन्य राजपूत-मुगल विवाहों का उल्लेख है. इसमें बताया गया है कि बीकानेर नरेश राय सिंह की पुत्री का भी संबंध जहांगीर से हुआ था, जिससे वहां के नरेशों की पद-वृद्धि होती रही.
अकबर ने 1585 ई. में जहांगीर को 12 हजार मनसबदार बनाया. 13 फरवरी, 1585 ई. को सलीम का विवाह आमेर के राजा भगवानदास की पुत्री मानबाई से हुआ. मानबाई को जहांगीर ने ‘शाह बेगम’ की उपाधि प्रदान की थी. कहा जाता है कि मानबाई ने जहांगीर की शराब की आदतों से दुखी होकर आत्महत्या कर ली थी. हालांकि इस बात की सत्यता को कई इतिहासकारों ने स्वीकार नहीं किया है. कालांतर में जहांगीर का विवाह जोधाबाई के साथ हुआ था. (संदर्भ- भारतडिस्कवरी के जहांगीर आलेख से).
शोध और शैक्षिक अनुसंधान तथा प्रसार संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र से मिले 'जैसलमेर के शासक तथा इनका संक्षिप्त इतिहास' की मानें तो 1570 ई. में जब अकबर ने नागौर में मुकाम किया, तो वहां पर जयपुर के राजा भगवानदास के माध्यम से बीकानेर और जैसलमेर दोनों को संधि के प्रस्ताव भेजे गए. जैसलमेर शासक रावल हरिराज ने संधि प्रस्ताव स्वीकार कर अपनी पुत्री नाथीबाई के साथ अकबर के विवाह की स्वीकृति प्रदान कर राजनैतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया. रावल हरिराज का छोटा पुत्र बादशाह दिल्ली दरबार में राज्य के प्रतिनिधि के रुप में रहने लगा. अकबर द्वारा उसे फैलादी का परगना जागीर के रूप में प्रदान की गई.
सन् 1570 में जैसलमेर की राजकुमारी नाथीबाई और अकबर के विवाह के बाद भाटी-मुगल संबंध समय के साथ-साथ और मजबूत होते चले गए. इसके बाद शहजादा सलीम को हरिराज के पुत्र भीम की पुत्री ब्याही गई, जिसे 'मल्लिका-ए-जहान' का खिताब दिया गया था. स्वयं जहांगीर ने अपनी जीवनी में लिखा है, 'रावल भीम एक पद और प्रभावी व्यक्ति था, जब उसकी मृत्यु हुई थी तो उसका दो माह का पुत्र था, जो अधिक जीवित नहीं रहा. जब मैं राजकुमार था तब भीम की कन्या का विवाह मेरे साथ हुआ और मैंने उसे 'मल्लिका-ए-जहान' का खिताब दिया था. यह घराना सदैव से हमारा वफादार रहा है, इसलिए उनसे संधि की गई.' (संदर्भ-इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के 'जैसलमेर के शासक तथा इनका संक्षिप्त इतिहास' से) यह भी गौरतलब है कि मुगल साहित्यकारों ने तो भीम की पुत्री के इस विवाह का उल्लेख किया है लेकिन राजस्थान के कई इतिहासकारों ने इसका जिक्र तक नहीं किया. ऐसे हम इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते.परन्तु इसे झुठलाने के प्रमाण भी नहीं है ।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष रहे नामचीन इतिहासकार सतीश चंद्र ने अपनी 'मध्यकालीन भारत' पुस्तक में लिखा है कि राजपूतों के साथ अकबर के संबंधों को देश के शक्तिशाली राजाओं और जमींदारों के प्रति मुगलों की नीति को व्यापाक कर पृष्ठभूमि में देखना होगा. हुमायूं जब भारत वापस आया तो उसने इन तत्वों को साथ लेने की एक नीति आरंभ की. सतीश चंद्र ने अबुल फजल के हवाले से लिखा है कि 'जमींदारों को खुश करने के लिए उसने उनके साथ विवाह संबंध बनाए'. भारत के बड़े जमींनदारों में से एक जमाल खान मेवाती ने जब हुमायूं की अधीनता स्वीकार कर ली तो उसकी सुंदर बेटियों में से एक से उसने विवाह कर लिया. यही नहीं उसकी छोटी बहन का विवाह बैरम खान से करा दिया. कालांतर में अकबर ने इसी नीति का प्रसार और विस्तार किया.
हुमायूं और अकबर से पहले विजयनगर साम्राज्य में भी हिंदू राजकुमारी का विवाह एक सुल्तान के साथ विवाह हुआ था. दरअसल, देवराय प्रथम (1406-1422 ई.) को अपने शासन काल में बहमनी सुल्तान फ़िरोजशाह के आक्रमण का सामना करना पड़ा था. इस युद्ध में फ़िरोज शाह बहमनी से पराजित होने के कारण देवराय प्रथम ने अपनी पुत्री का विवाह फ़िरोज शाह के साथ कर दिया. इस विवाह में दहेज के रूप में देवराय ने बांकापुर का क्षेत्र फ़िरोज शाह को दे दिया.
दक्षिण भारत में देवराय प्रथम की पुत्री का विवाह ऐसा पहला राजनीतिक विवाह नहीं था. इससे पहले ख़ेरला का राजा शान्ति स्थापित करने के लिए फ़िरोजशाह बहमनी के साथ अपनी लड़की की शादी कर चुका था. कहा जाता है कि वह सुल्तान की सबसे पहली बेगम थी. किन्तु यह विवाह अपने आप में शान्ति स्थापित नहीं कर सका. कृष्ण-गोदावरी के बीच के क्षेत्र को लेकर विजयनगर, बहमनी राज्य और उड़ीसा में फिर संघर्ष छिड़ गया था. (संदर्भ- भारतडिस्कवरी ).
अकबर से आमेर की राजकुमारी की शादी की कई विद्वानों ने कटु आलोचना की है. उन्होंने इस विवाह को धर्म-विरुद्ध और निंदनीय बताया था. उनकी यह मान्यता भी थी कि आमेर के शासक ने अपनी कन्या का विवाह सम्राट के साथ कर दिया तो अन्य राजपूत नरेशों को भी ऐसा करने के लिए बाध्य होना पड़ा. (संदर्भ- डॉ.गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान का इतिहास,पेज-148).

बता दें कि अकबर के साथ विवाह संबंध होने के बाद आमेर के शासक मुगल राज्य व्यवस्था के अंग बन गए, उनके पुत्र, पौत्र राजकीय सेना में प्रतिष्ठित पद पर नियुक्त किए गए. स्वयं भारमल 'अमीन-उल-उमरा' और 'राजा' की उपाधियों से सम्मानित किए गए. अकबर के बाद जहांगीर ने भी राजपूतों के साथ विवाह संबंधों को जारी रखा, लेकिन शाहजहां के काल से अग्रणी राजपूत राजाओं के साथ कोई और विवाह संबंध स्थापित नहीं किया गया. हालांकि खुद शाहजहां एक राठौड़ राजकुमारी का बेटा था. पूर्व बने संबंधों के आधार पर शाहजहां ने भी अग्रणी राजपूत घरानों जोधपुर और आमेर के शासकों को भारी सम्मान दिया.

राजस्थान के जाने-माने इतिहासकार डॉ. आरएस खंगारोत ने बताया कि मध्यकाल में हुई इन शादियों को किसी हिंदू राजा या राजपूत राजकुमारियों के मुसलमान शासक से विवाह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. दो शासकों के बीच अच्छे संबंध कायम हो जाएं इसलिए ये मैट्रीमोनियल एलाइंस (वैवाहिक गठजोड़) होते थे. खंगारोत ने रानी पद्मनी पर बन रही फिल्म 'पद्मावती' पर हुए विवाद को भी इतिहास के साथ छेड़छाड़ वाला बताया. (नोट- इस खबर में उल्लेखित सभी विवाह संबंधों का जिक्र ख्यात इतिहासकारों ने अपनी मध्यकालिन भारत के इतिहास की रचनाओं में किया है. संबंधित तथ्य के लिए उन्हीं संदर्भ पुस्तकों का उल्लेख किया गयाहै. न्यूज18 इतिहासकारों के दावों की पुष्टि नहीं करता है.) परन्तु चिंतन करने पर मजबूर ज़रूर करता है , यदि भारतीय राजाओं के ऐसे स्वार्थी सम्बंध उन लुटेरों मुग़लों से नहीं होते तो क्या भारत सैकड़ों वर्षों तक अपरिचित विधर्मियो के हँथो ग़ुलाम रहता,

मुग़लों के भय से जिन राजाओं ने अपनी बेटियाँ इन्हें सौंप दी यदि सभी संगठित होकर मुग़लों से  संघर्ष करते तो अपना देश , अपनी सम्पत्ति , अपनी आबरू ,अपने गौरवशाली इतिहास की मर्यादा को बचाया जा सकता था , कल से सीखो - कल को बचाओ , प्रीति के पुजारी हिंदुओ प्यार करो, प्यार करो , बस प्यार करो, स्वाभिमानी, देशभक्त और ज़िन्दा हिन्दू, जागो रे जागो



         आपका
देवेन्द्र पाण्डेय "डब्बू जी "

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