Dewdoot "Devendra ji"
मंगलवार, 30 जुलाई 2024
सोमवार, 22 जनवरी 2024
शुक्रवार, 19 जनवरी 2024
खुली पाती जानता के नाम-जनार्दन के नाम
साधू, संत, महंत, समस्त
अखाड़ा, समस्त संप्रदाय, बैरागी, गृहस्त, सनातनी, स्वाभिमानी, देशभक्त
और जिन्दा हिंदुओ के नाम । निश्चल चिंतन हेतु ।
मुनि न होही यह निश्चर घोरा, सत्य वचन मनाहु कपि मोरा
यह जन्म भूमि भगवान श्री रामलला की है
रामलला के नाम पर मुकदमा लड़ा गया आज मंदिर के गर्भगृह में रामलला क्यों नहीं है, ना ध्वज स्थापना, ना कलस गुंबद (शिखर स्थापना) ना ही मर्याद पुरुषोत्तम श्री राम जी के विधि अनुरूप प्राण प्रतिष्ठा आखिर सनातन के समाप्त करने का षड्यंत्र तानाशाह शाशक द्वारा हो रहा है और स्वयं को सनातनी, हिंदू होने पर गर्व का नारा लगाने बाला समाज आज भयभीत-लकवा ग्रस्त क्यों है...?
(रामेश्वरम जी में शिव जी की प्राण प्रतिष्ठा के समय रावण पुरोहित और श्री राम जी यजमान थे, माता सीता का अपहरण रावण ने किया था तब भी प्राण प्रतिष्ठा की मर्याद रक्षा के लिए लंका से माँ सीता को बुलाया गया - जब की यह प्रण प्रतिष्ठा रावण के वध और लंका विजय के लिए थी, रावण ने प्राण प्रतिष्ठ पूर्ण कराई, विजय होने का आशीर्वाद दिया- प्राण प्रतिष्ठा की मर्याद प्रभु श्रीराम जी के संदर्भ में यह है । दोवारा जब अश्मेघ यज्ञ होरहा था तब माँ सीता राम जी के पास नहीं थी उनका त्याग हो चुका था लेकिन यज्ञ की मर्याद रक्षा और परंपरा के विधि पूर्ण निर्वाह वेदों के सम्मान के लिए सीता जी की प्रतिमा राम जी के साथ विराजित की गई तब यह अनुष्ठान पूर्ण हुआ ) मोदी जी जो की राम जन्मभूमि में प्रभु श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हेतु मुख्य यजमान है उनकी पत्नी यशोदा वेन गुजरात में है उनका निरादर भर नही देश के प्रधान मंत्री जी वेदों के विधान का भी अपमान कर रहे है । विधि विपरीत प्राण प्रतिष्ठा की जिद सिर्फ़ चुनाव जीतने के लिए है, भले सनातन की मर्याद तार तार क्यों ना होजाए ….? मौन समाधान नही है, धर्म रक्षा का नाद हर गली गली में होना चाहिए ।
स्वप्रकट्य
रामलला को गर्भगृह में विराजित होना ही चाहिए ।
मुझे सब प्रतिमाएँ जो प्रभु श्री राम जी की है वह स्वीकार है
परंतु
स्वप्राकट्य श्री रामलाल जी के साथ, उनके विना नहीं ।
निर्दोष
पत्नी का अकारण त्याग करने बाले । अपनी
माँ की मृत्यु पर भी बाल ना करने बाले ।
गौहत्या
अर्थात् गौ मांस निर्यात को बढ़ावा पशु काटने के कारखानो को आधुनिक करने बाले ।
विकास
के नाम पर हजारो मन्दिरो को ध्वस्त करने बाले ।
अत्यधिक
झूठ बोलना और हर घड़ी अहंकार में रहने बाले ।
संतों
और हिंदुत्व वादी नेताओ की हत्या पर मौन रहने
बाले ।
संतों
का अपमान और सनातन की परंपरा का तिरस्कार करने बाले ।
महामनव
मोदी ने संतों का संप्रदायों और अखाड़ो के नाम पर तिरस्कार, संतों में भेद पैदा किया गया ।हिंदुओ में नफरत भर उन्हें आपस में लड़ाकर देश को गृह युद्ध की डेउढ़ी पर
खड़ा कर दिया ऐसे व्यक्ति के हाँथो जन्म
भूमि पर पूजन पुण्य दायक नहीं बल्कि अनिष्ट कारक होगा ।
मंदिर
के कारिडोर में लोहे का फ़्रेम और उसपर प्लास्टिक के खंभे,जब की यह प्रचारित किया गया की मंदिर में कही भी लोहे और प्लास्टिक का उपयोग नहीं किया गया, प्लास्टिक के खंभों की आयु अधिकतम 2-4 वर्ष की ही होगी फिर भी इनका उपयोग करोड़ोर में भरपूर हो रहा है । बिना शिखर के अधूरा बना मंदिर, जहां
संतों को नही नाचने गाने बालों का स्थान निर्धारित हो
वह वैदिक और सनातनी प्रम्परा की प्राण प्रतिष्ठा नही राजनैतिक नौटंकी है ।
सनातन
भारत में शंकराचार्य जी की हैसियत है ।
शंकराचार्य जिन्होंने राम जन्मभूमि के विबाद को समाप्त करने की मध्यस्तता भाजपा की तरफ़ से की तमिलनाडु के कांचीपीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी का निधन हुआ ।
द्वारका शारदापीठ व
ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने रामजन्म भूमि
पुनरुद्धार समिति गठित की और आंदोलन खड़ा किया। इसमें गिरफ्तार हुए और चुनार किले
में बनाई गई अस्थायी जेल में नौ दिनों तक निवास किया। काशी के साथ ही
अयोध्या, चित्रकूट, झोतेश्वर और फतेहपुर में संत सम्मेलन किए।
इसके लिए उन्होंने चारों शंकराचार्यों समेत संतों को लेकर श्रीराम जन्मभूमि रामालय
न्यास का गठन किया। साथ ही 30 नवंबर 2006 को अयोध्या में लाखों अनुयायियों के साथ
श्रीराम जन्म भूमि की परिक्रमा की। ऐसे शंकराचार्यों के परलोक गमन पर ना राजकीय शोक ना अवकाश ना ही श्रद्धांजलि ऐसा सम्मान है मोदी जी की नजरो में हमारे देव तुल्य संतों का ।
23 सितम्बर 2015 को ज्योतिष मठ के शंकराचार्य अभिमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को वाराणसी में सैकडो संतों सहित सड़को में घसीट-घसीट और दौड़ाकर लठियो से पीटा गया मोदी जी ने इस घटना की निंदा तक नहीं की ।
वासुदेवनंद
जी जिन्होंने सदैव स्वयं को शंकरचार्या घोषित करने के लिए शंकराचार्य स्वरूपानंद
सरस्वती जी के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी वह मोदी योगी के करीबी और राम मंदिर न्यास के
सदस्य बने ।
7 अगस्त 2016 को लखनऊ में महंत ज्ञानदास ने कहा की हमे अखिलेश यादव की सरकार चाहिए] इनके शिष्य राजू दास आज मोदी योगी के बड़े चहेते बने हुए है ।
पुरी पीठाशीश्वर शंकरचार्या निश्चलानंद जी के ख़िलाफ़ षड्यंत्र रचागया नए फर्जी शंकराचार्य को पूरी पीठ के फ़र्ज़ शंकरचार्या के रूप में हनुमान गढ़ी के महंत ज्ञानदास के शिष्य का वैष्णव तिलक मिटाकर उन्हें वैरागी परंपरा का चंदन लगादिया गया और अधोखजानंद को पुरी का शंकराचार्य घोषित किया गया ।
गुरु राम भद्राचार्य झूठे है जिन्होंने अपने गवाही की बाँह बही स्वयं की जब की उनको न्यायालय हाईकोर्ट के जज सुधीर अग्रवाल ने फटकार लगाते हुए कहा की कहानी और कविता नहीं प्रमाण और तथ्य की बात करे । सतना सांसद गणेश सिंह जो विधान सभा सतना से विधायकी की चुनाव हार गये ।, रामखेलवन मध्य प्रदेश के मंत्री अमरपाटन विधान सभा से चुनाव हार गये, नारायण त्रिपाठी मैहर से चुनाव हार गये, जीत का जिसे भी आशीर्वाद दिया वो हार गया रामानन्दाचार्य के वरदानों की ऐसी दुर्गति देखने को मिली है ।
चार
पीठों की जगह सैकडो फर्जी शंकराचार्य जगदगुरु और
महामण्डकेश्वरों को पैदा किया गया ताकि सनातन की पुरातन परिपाटी को नष्ट-भ्रष्ट और
समाप्त किया जा सके ।
राम
जन्मभूमि की प्राचीन प्रामाणिकता, आंदोलन
प्राण प्रतिष्ठा और मोदी की भूमिका ।
बाल्मीकि रामायण के चौपाई का विश्लेषण करपात्री जी महाराज ने रामायण मीमांसा में करते हुए बताया कि प्रभु श्री राम का जन्म 1 करोड़ 81 लाख 60 हजार 65 वर्ष पहले अयोध्या की धरती जो जन्म भूमि है वहाँ हुआ था । ( करपात्री जी का निधन 1982 में हुआ, अर्थात् 1982 से कम से 30 वर्ष पहले की रचना माने तो रामायण मीमांसा के अनुसार आज से लगभग 1 करोड़ 81 लाख 60 हजार 65 + 70 = 135 वर्ष पहले प्रभु श्री राम जी का जन्म अयोध्या में हुआ था )
पौष शुक्ल तृतीया 22-23 दिसंबर की रात्रि 12 बजे 1949 रामलला जी का प्राकट्यमंदिर के गर्भगृह में हुआ, (जब राम जन्म भूमि में मंदिर के गर्भ गृह में रामलला जी का प्राकट्य हुआ उस समय अयोध्या की पवन पवित्र धारा पर अखिल भारत हिंदू महासभा के सनातनी सपूत मा. महंत दिग्विजय नाथ जी-राष्ट्रीय अध्यक्ष , महंत अभिराम दास जी-अयोध्या महामंत्री, पुरणमाल जैन- जिला कार्यकारणी सदस्य, शेषनारायण त्रिपाठी जी- सदस्य कानपुर कार्यकारणी, गोपाल विशारद जी-जिला अध्यक्ष फैजाबाद, महेंद्र शर्मा (माना) जी- प्रयाग हिंदू महासभा कार्यकारणी सदस्य, भगवान शरण अवस्थी जी- एड.ज़िला कार्यकारणी सदस्य शाहजंहापुर, अंजनी प्रसाद मिश्र जी- कार्यकारणी सदस्य वाराणसी हिंदू महासभा, बृजनारायण ब्रजेश जी- जो की हिंदू महासभा में राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे है और हिंदू महासभा से सांसद भी हुए ।इंद्रसेन शर्मा जी- हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे है । राम लला जी के प्राकट्य के साक्षी समस्त हिंदू महासभा सपूतों को नमन प्रणाम)-( ठीक वैसे ही जैसे मध्य प्रदेश धार की भोजसाला के गर्भगृह में अधिष्ठात्री देवी माँ वांगदेवी का प्राकट्य 9-10 सितम्बर 2023 को हुआ ) , माँ वांगदेवी जी के प्राकट्य पर धार पुलिस ने अखिल भारत हिंदू महासभ के राष्ट्रीय महासचिव देवेन्द्र पाण्डेय, मध्य प्रदेश उपाध्यक्ष शिव कुमार भार्गव, प्रदेश संगठन मंत्री रोहित दुवे, धार जिला अध्यक्ष मनोज सिंह, संगठन के सदस्य माखन वैरागी, रवि सिंह सहित कुल 8 हिंदू महासभ के लोगो को माँ वांगदेवी केप्राकट्य काआरोपी बनाया है ।।
'केरल के अलेप्पी के रहने वाले के.के नायर 1930 बैच के IAS अफसर थे उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से फौरन मूर्तियां हटवाने को कहा.परंतु नैयर जी ने प्राकट्य हुई प्रतिमा के गर्भ गृह से टस से मस नहीं किया । उन्होंने अखिल भारत हिंदू महासभा और संत समाज का पूरा पूरा साथ दिया क्योंकि वह दैवीय शक्तिओं को मानते थे ।
के.के. नैयर की पत्नी अखिल भारत हिंदू महासभ के सदस्य बनी '1957 बस्ती नगर विधान सभा से शकुन्तला नैयर चुनाव जीती, 1967 में बहराईच लोकसभा से के.के. नैयर और कैसरगंज से शकुन्तला नैयर लोकसभ तीन बार लोकसभा पहुंचीं । 7 सितंबर, 1977 को उन्होंने इस पार्थिव देह को त्याग दिया।
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था. हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था, आधी हिंदू महासभा और आधी में आधी अर्थात् सीता रसोई निर्मीही अखाड़ा और एक चौथाई बची जमीन राम चबूतरा सुन्नी सेण्ट्रल बक्फ़ बोर्ड को दी गई । इलाहाबाद उच्च न्यायालय, जिसका फैसला 30 सितंबर 2010 को सुनाया गया था हाईकोर्ट की बेंच में जस्टिस एसयू खान, सुधीर अग्रवाल और डीवी शर्मा शामिल थे ।
3 जून 2023 को हाईकोर्ट के जज सुधीर अग्रवाल ने कहा की राम जन्मभूमि का फ़ैसला
ना सुनने के लिए मुझपर दवाव था , यदि मैं फ़ैसला नहीं
सुनाता तो 200 वर्षों में भी फ़ैसला नहीं होता ।
मैं पहले ही कहचुका हूँ की सुन्नी सेंट्रल बक्फ़ बोर्ड को जबरन सुप्रीम कोर्ट
में मुक़दमा लड़वाया गया ।
1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच
इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ।
30 अक्टबूर,
1990 ये वो
तारीख है जब कारसेवकों पर गोली चली, जिसमे
कई राम भक्त मारे गये ।
2 नवंबर 1990
में अयोध्या में कारसेवकों पर
गोलियां चलाई, हनुमान गढ़ी के पास मुझे भी गोली लगी हजारो राम भक्तो की हत्या करदी गई । किसी
भी भाजपा , आर.एस.एस
य वीएचपी नेता को खरोंच तक नहीं आई
राम भक्तों के हत्यारे उत्तर प्रदेश
के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को हिंदुओ के इन नर संहार का इनाम
प्रधान मंत्री मोदी ने दिनांक 5 अप्रैल 2023
को पद्मबिभूषण दे कर किया ।
छह दिसंबर 1992 को सोलहवीं सदी में बनाई गई बाबरी मस्जिद को कारसेवकों की एक भीड़ ने ढहा दिया
CA
10866-10867/2010 –
18 अक्तूबर 2019 को (सुप्रीम कोर्ट का फैसल आने से सिर्फ 21 दिन पहले हत्या होना आश्चर्य की बात है ) अखिल भारत हिंदू महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष जो की न्यायालम में राम जन्म भूमि के मुक़दमे में हिंदू महासभा के पैरोकार थे उनकी हिंदू महासभा कार्यालय लखनऊ में हत्या कर दी गई हत्या का कारण उन्हें मिली 18 गार्डों की सुरक्षा अचानक हटाली गई ।
9, नवंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए राम
जन्मभूमि की 2.77
एकड़ जमीन हिंदू पक्ष
को देने का फैसला सुनाया, साथ ही इसका मालिकाना हक केंद्र सरकार के पास रहेगा।
साथ ही 5 एकड़ जमीन जन्मभूमि पर अतिक्रम और आक्रमण कर्ताओं को देने का आदेश हुआ ।
1, जस्टिस रंजन गोगोई, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया 2. जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े 3. जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ 4. जस्टिस अशोक भूषण 5. जस्टिस अब्दुल नज़ीर
अयोध्या से मात्र 25 किलो मीटर, धन्नीपुर गाँव में ( लखनऊ-अयोध्या मार्ग ) भारत का मक्का बनाया जा रहा है । यह दुनिया की सब से बड़ी और सुंदर मस्जिद होगी जिसने 21 फुट ऊँची और 36 फुट लंबी-चौड़ी क़ुरआन रखी जाएगी । पूरी दुनिया का मुसलमान इस मस्जिद में आएगा (इस भूमि पर पैग़म्बर, बाबर या अकबर पैदा नहीं हुए यहाँ इतनी बड़ी मस्जिद सिर्फ़ इस लिए बनाई जा रही है क्यों की अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, ऐसे में हिंदू मुस्लिम दंगों की संभावना सदैव बनी रहेगी)
चरो वेदों और
18 पूरणों का भी निरादर किया गया है ।
प्रथम निमंत्रण प्रभु की और दूसरा निमंत्रण रामानन्दाचार्य, रामानुजाचार्य, शंकराचार्य, जगदगुरु, आचर्या महामण्डलेश्वर और महामण्डकेश्वरों सहित समस्त संप्रदायों-अखाड़ो को जाना चाहिए था । आज इन सभी पूजित सनातन के कर्णधारों की हैसियत दर्शक दीर्घा में ताली बजाने की राह गई है ।
चरो
वेदों और 18 पूरणों का भी निरादर किया गया
है ।
साथ ही 18 पूरणों की
कुल 380600 ऋचायो सहित कुल चार वेद और 18
पूरणों की समलित 401016 ऋचाओ का उच्चारण करने के लिए 36 हजार वेदाचारो विद्वानों
को तैयार किया गया था एक विद्वान मात्र 11 मिनट में सिर्फ़ 11 ऋचाओ- इस्लोको का
उच्चारण करता तो यह दुनिया का सब से लोक प्रिय रिकॉर्ड बनता और राम जी की प्राण
प्रतिष्ठा का अद्वतीय उपहार होता इस से सम्पूर्ण विश्व राम मय धर्म और सनातन मय हो
जाता । साथ ही सम्पूर्ण विश्व के सनातनियों का आव्हान कर मात्र एक मिनट में 11 बार
जय श्री राम के जय घोष की अपील की जाती तो 1375 करोड़ बार जय श्री राम के नारे से
सम्पूर धरा पवित्र हो जाती । इस संबंध में हमने 6 जून और 29
जून 2023 को प्रधान मंत्री एवं मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखकर इस आयोजन को करने की
अनुमति मगी थी, जिसका खर्च भी हम
स्वयं उठाने बाले थे परंतु अनुमति नहीं मिली
आधे अधूरे मंदिर में तानाशाही और सत्ता के दम पर सनातनी विधि की मर्याद तार तार हो रही है, सनातनी संत और परंपरा का निरादर फर्जी संतों और चोर लुटेरों से मंदिर पूरी तरह घिर चुका है,
हम अपने धर्म और परंपरा को बचाने इतने अशक्त क्यों है…?
चिंतन करे…?
यह जीवन दोवारा नहीं मिलेगा
समर शेष है नही पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध ।
जो धर्म के साथ नहीं समझो वह धर्म के खिलाफ खड़ा है ।
शनिवार, 29 जुलाई 2023
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला।माय रँग दे बसन्ती चोला॥
- इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी। क्या आप कल्पना कर सकते हैं, एक हुकूमत, जिसका दुनिया के इतने बड़े हिस्से पर शासन था, इसके बार में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। इतनी ताकतवर हुकूमत, एक 23 साल के युवक से भयभीत हो गई थी। उनकी मृत्यु की ख़बर को लाहौर के दैनिक ट्रिब्यून तथा न्यूयॉर्क के एक पत्र डेली वर्कर ने छापा। इसके बाद भी कई मार्क्सवादी पत्रों में उन पर लेख छपे, पर चूँकि भारत में उन दिनों मार्क्सवादी पत्रों के आने पर प्रतिबन्ध लगा था इसलिए भारतीय बुद्धिजीवियों को इसकी ख़बर नहीं थी। देशभर में उनकी शहादत को याद किया गया।
भगत सिंह ने छोटे भाई कुलतार के नाम एक चिट्ठी में लिखा-''अजीज कुलतार, तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर दुख हुआ। हौसले से रहना, शिक्षा ग्रहण करना, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और क्या कहूं। इसके बाद उन्होंने पत्र में चार शेर लिखे और अंत में लिखा... खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं... तुम्हारा भाई भगत सिंह।'' पत्र में लिखे शेर-----
दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें सारा जहां अदू सही आओ मुकाबला करें।
(हम क्यों शिकायत करें किसी खराबी की हौसला हिम्मत है तो हिमालय की परेशानी से टकरा जाएंगे)
कोई दम का महमा हूं अहले महफिल चिराग ए सहर हूं बुझना चाहता हूं।
(मैं सुबह की दीपक की तरह हूं जब दिन निकलेगा दीपक बुझ जाएगा)
मेरी हवा में रहेगी ख्याल की बिजली ये मुश्त ए खाक है फानी रहे ना रहे।
(मेरे विचार हमेशा रहेंगे ये मिट्टी का शरीर रहे न हरे,पीढ़ियों को प्रेरित करेंगे जैसे बादलों से बिजली निकलती है )
खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं....
भारत के पंजाब के गांव खटकड़कलां में शहीद-ए-आजम भगत सिंह का पैतृक निवास है। खटकड़कलां गांव फगवाड़ा-रोपड़ नेशनल हाईवे पर उपमंडल बंगा से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। देश के बंटवारे के बाद भगत सिंह की मां विद्यावती और पिता किशन सिंह यहीं आकर रहने लगे थे। किशन सिंह की यहां आने के बाद मौत हो गई थी, जबकि भगत सिंह की मां विद्यावती वर्ष 1975 तक यहीं रहीं।
22 मार्च, 1931 अपने साथियों को लिखा पत्र
साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता. लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं,कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता.
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है- इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता.आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं. अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी.
हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है.कामना है कि यह और नजदीक हो जाए.
आपका साथी
भगतसिंह
भगत सिंह का भाई के नाम आखिरी खत
महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह अपने भाई को बहुत प्रेम करते थे. उन्होंने अपने अंतिम वक्त में अपने भाई कुलबीर सिंह को भी एक पत्र लिखा था. जिसमें उन्होंने लिखा था-
लाहौर सेंट्रल जेल,
3 मार्च, 1931
प्रिय कुलबीर सिंह,
तुम्हारा खैर-अंदेश
भगत सिंह
शहीद भगत सिंह के यही क्रांतिकारी विचार आगे चलकर एक ज्वाला बने, जिन्होंने भारत में कई वीरों को प्रोत्साहित किया. अनेकों अनेक बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों में भगत सिंह का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा है और हमेशा लिखा रहेगा. क्योंकि उन्हीं की बदौलत आज हम आजाद हैं और खुली हवा में सांस ले रहे हैं. उनके जैसे क्रांतिकारी और दूरदर्शी विचारों का ही निचोड़ है जो आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया. मुलाकात के वक़्त खत के जवाब में कुछ लिख देने के लिए कहा. कुछ अल्फाज लिख दूं, बस- देखो, मैंने किसी के लिए कुछ न किया, तुम्हारे लिए भी कुछ नहीं. आजकल बिल्कुल मुसीबत में छोड़कर जा रहा हूं. तुम्हारी जिन्दगी का क्या होगा? गुजारा कैसे करोगे? यही सब सोचकर कांप जाता हूं, मगर भाई हौसला रखना, मुसीबत में भी कभी मत घबराना. इसके सिवा और क्या कह सकता हूं. अमेरिका जा सकते तो बहुत अच्छा होता, मगर अब तो यह भी नामुमकिन मालूम होता है. आहिस्ता-आहिस्ता मेहनत से पढ़ते जाना. अगर कोई काम सीख सको तो बेहतर होगा, मगर सब कुछ पिता जी की सलाह से करना. जहां तक हो सके, मुहब्बत से सब लोग गुजारा करना. इसके सिवाय क्या कहूँ?जानता हूं कि आज तुम्हारे दिल के अन्दर गम का सुमद्र ठाठें मार रहा है. भाई तुम्हारी बात सोचकर मेरी आंखों में आंसू आ रहे हैं, मगर क्या किया जाए, हौसला करना. मेरे अजीज, मेरे बहुत-बहुत प्यारे भाई, जिन्दगी बड़ी सख्त है और दुनिया बड़ी बे-मुरव्वत. सब लोग बड़े बेरहम हैं. सिर्फ मुहब्बत और हौसले से ही गुजारा हो सकेगा. कुलतार की तालीम की फिक्र भी तुम ही करना. बड़ी शर्म आती है और अफ़सोस के सिवाय मैं कर ही क्या सकता हूं. साथ वाला ख़त हिन्दी में लिखा हुआ है. ख़त ‘के’ की बहन को दे देना. अच्छा नमस्कार, अजीज भाई अलविदा… रुख़सत.
भगत सिंह ने लाहौर में लिखा, जिसका हर पन्ना जगाता है सरफ़रोशी की तमन्ना!
यह कोई आम डायरी नहीं है. उर्दू और अंग्रेजी (English) में लिखी गई इस डायरी के पन्ने अब पुराने हो चले हैं लेकिन इसमें दर्ज एक-एक शब्द सरफ़रोशी की समां जला देते हैं. हम बात कर रहे हैं शहीद-ए-आजम भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) के उस ऐतिहासिक दस्तावेज का जिसे उन्होंने अपने आखिरी दिनों में लाहौर (अब पाकिस्तान) जेल में लिखी थी. आज इस महान आजादी के दीवाने का जन्मदिन (Birthday) है. सिर्फ 23 साल की उम्र में शहादत को प्राप्त करने वाले भगत सिंह पढ़ने-लिखने में काफी रुचि लेते थे. इसीलिए वो जेल में रहते हुए भी अपने विचार लिखना चाहते थे. जेल (Jail) प्रशासन ने 12 सितंबर, 1929 को उन्हें डायरी प्रदान की. जिसमें उन्होंने अपने विचार लिखे. इस पर जेलर और भगत सिंह के हस्ताक्षर हैं. इसका एक-एक पन्ना उनके पूरे व्यक्तित्व को समझने के लिए काफी है.भगत सिंह लिखते हैं' महान लोग इसलिए महान हैं क्योंकि हम घुटनों पर हैं. आइए, हम उठें!' इसके पेज नंबर 177 पर वह लिखते हैं "यह प्राकृतिक नियम के विरुद्ध है कि कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास सभी चीजें इफरात में हों और जन साधारण के पास जीवन के लिए जरूरी चीजें भी न हों." इसके 41वें पेज पर धर्म के बारे में उन्होंने अपने विचार जाहिर किए हैं.'लोग धर्म द्वारा उत्पन्न झूठी खुशी से छुटकारा पाए बिना सच्ची खुशी हासिल नहीं कर सकते. यह मांग कि लोगों को इस भ्रम से मुक्त हो जाना चाहिए, उसका मतलब यह मांग है कि ऐसी स्थिति को त्याग देना चाहिए जिसमें भ्रम की जरूरत होती है.' शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आवाज, उनके क्रांतिकारी विचार आम लोगों तक पहुंचाने के लिए पहली बार उनकी जेल डायरी हिंदी में छपवाई गई है. खास बात यह है कि इसमें एक तरफ भगत सिंह की लिखी डायरी के पन्नों की स्कैन प्रति लगाई गई है और दूसरी तरफ उसका ट्रांसलेशन (अनुवाद) है. शहीद-ए-आजम ने अंग्रेजी और उर्दू में डायरी लिखी है. इस पर लाहौर जेल (Lahore Jail) के जेलर के भी हस्ताक्षर हैं. डायरी पर 'नोटबुक' भारती भवन बुक सेलर लाहौर छपा हुआ है. इसके पेज नंबर 124 पर उन्होंने Aim of life शीर्षक से लिखा है, 'ज़िंदगी का मकसद अब मन पर काबू करना नहीं बल्कि इसका समरसता पूर्ण विकास है. मौत के बाद मुक्ति पाना नहीं बल्कि दुनिया में जो है उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना है. सत्य, सुंदर और शिव की खोज ध्यान से नहीं बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के वास्तविक अनुभवों से करना भी है. सामाजिक प्रगति सिर्फ कुछ लोगों की नेकी से नहीं, बल्कि अधिक लोगों के नेक बनने से होगी. आध्यात्मिक लोकतंत्र अथवा सार्वभौम भाईचारा तभी संभव है जब सामाजिक, राजनीतिक और औद्योगिक जीवन में अवसरों की समानता हो.'यहां भी वो समानता की बात करते नजर आते हैं.पूंजीवाद और साम्राज्यवाद को बताया है खतरा, लाहौर में जन्मे भगत सिंह ने अपनी डायरी में पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के खतरे भी बताए हैं. डायरी के पन्ने उनकी साहित्यिक रुचि का भी बयान करते हैं. जिसमें उन्होंने स्वच्छंदवाद के हिमायती मशहूर अमेरिकी कवि जेम्स रसेल लावेल की आजादी के बारे में लिखी गई कविता ‘फ्रीडमʼ लिखी है. इसके अलावा शिक्षा नीति, जनसंख्या, बाल मजदूरी और सांप्रदायिकता आदि विषयों को भी छुआ है.जो गम की घड़ी भी खुशी से गुजार दे... -शहीद-ए-आजम भगत सिंह के चाहने वाले करोड़ों में हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि भगत सिंह किस क्रांतिकारी के प्रशंसक थे? भगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त के प्रशंसक थे. इसका एक सबूत उनकी जेल डायरी में है. उन्होंने बटुकेश्वर दत्त का एक ऑटोग्राफ लिया था.बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह लाहौर सेंट्रल जेल में कैद थे. बटुकेश्वर के लाहौर जेल से दूसरी जगह शिफ्ट होने के चार दिन पहले भगत सिंह उनसे जेल के सेल नंबर 137 में मिलने गए थे. यह तारीख थी 12 जुलाई, 1930. इसी दिन उन्होंने अपनी डायरी के पेज नंबर 65 और 67 पर उनका ऑटोग्राफ लिया.भगतसिंह 23 वर्ष की आयु में फाँसी चढ़ गये, तो उससे छोटे कुलतार सिंह और कुलवीर सिंह भी कई वर्ष जेल में रहे। वीर माता विद्यावती देवी ने दिल्ली के एक अस्पताल में 01 जून, 1975 को अंतिम साँस ली।
शिवराम राजगुरु जन्म: 24 अगस्त 1908 – मृत्यु: 23 मार्च 1931) को राजगुरु के नाम से जाना जाता है जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारियों में एक थे। उन्होंने देश की आजादी के लिए आपने आप को फांसी पर चढ़वाना स्वीकार कर लिया ,परंतु कभी अंग्रेजों की गुलाम नहीं की।
चंद्रशेखर आजाद के द्वारा स्थापित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन से राजगुरु जुड़े हुए थे। भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव ने जॉन सॉण्डर्स नाम के ब्रिटिश अधिकारी की हत्या कर दी थी जिसके बाद ब्रिटिश सरकार के द्वारा 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और सुखदेव सहित राजगुरु को फांसी दे दी गई।
राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को वर्तमान महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले के खेड़ तहसील में हुआ था। उनके पिता का नाम हरिनारायण राजगुरु तथा माता का नाम पार्वती देवी था। उनका परिवार एक मराठी देशस्थ ब्राह्मण परिवार था। जब राजगुरु मात्र 6 वर्ष का था तब उसके पिता का देहांत हो गया था। पिता के देहांत होने के बाद घर की सारी जिम्मेदारियां राजगुरु के बड़े भाई दिनकर पर आ गई। हालांकि राजगुरु छोटा था तो उसे उच्च शिक्षा प्राप्त करने का भी अवसर मिला। उसने खेड़ में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण की और उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए वह पुणे के न्यू इंग्लिश हाई स्कूल में दाखिल हुआ। चंद्रशेखर आजाद ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन को पुनर्स्थापित किया। इस संगठन को पुनर्स्थापित करने के बाद उन्होंने इसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन का नाम दिया। यह संगठन क्रांतिकारियों का संगठन था जिसमें क्रांतिकारी लोग जुड़ते थे और अंग्रेजो के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियां करते थे। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन में सुखदेव, भगत सिंह व अनेकों क्रांतिकारी व्यक्ति थे जिनमें राजगुरु भी सम्मिलित थे।एक क्रांतिकारी घटना में सुखदेव, भगत सिंह व राजगुरु ने ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या कर दी। यह घटना 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में हुई थी। उन तीनों ने उस ब्रिटिश अधिकारी को इसलिए मारा था क्योंकि वो लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेना चाहते थे। साइमन कमीशन के विरोध के दौरान पुलिस ने लाला लाजपत राय को बहुत गहरी चोटें पहुंचाई जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी। ब्रिटिश अधिकारी की हत्या के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह व सुखदेव सहित राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गयी।
सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और पंजाब में विविध क्रांतिकारी संगठनो के वरिष्ट सदस्य थे। उन्होंने नेशनल कॉलेज, लाहौर में पढाया भी है और वही उन्होंने नौजवान भारत सभा की स्थापना भी की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिशो का विरोध कर आज़ादी के लिये संघर्ष करना था।
सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब में लुधियाणा के नौघरा में हुआ था। उनके पिता का नाम रामलाल और माता का नाम राल्ली देवी था। सुखदेव के पिता की जल्द ही मृत्यु हो गयी थी और इसके बाद उनके अंकल लाला अचिंत्रम ने उनका पालन पोषण किया था। किशोरावस्था से ही सुखदेव ब्रिटिशो द्वारा भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचारों से चिर-परिचित थे। उस समय ब्रिटिश भारतीय लोगो के साथ गुलाम की तरह व्यवहार करते थे और भारतीयों लोगो को घृणा की नजरो से देखते थे। इन्ही कारणों से सुखदेव क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए और भारत को ब्रिटिश राज से मुक्त कराने की कोशिश करते रहे।इसके बाद सुखदेव ने दुसरे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर “नौजवान भारत सभा” की स्थापना भारत में की। इस संस्था ने बहुत से क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लिया था और आज़ादी के लिये संघर्ष भी किया था। सुखदेव ने उनके नौजवान साथी भगत सिंह, भगवती चरण बोहरा, कौम्रेड रामचंद्र इत्यादी के साथ संघटित होकर देश के स्वतंत्रता संग्राम मे योगदान देने के लिये शुरुवात की। इसके लिये बाद में सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और पंजाब के कुछ क्रांतिकारी संगठनो में शामिल हुए। सुखदेव एक देशप्रेमी क्रांतिकारी और नेता थे जिन्होंने लाहौर में नेशनल कॉलेज के विद्यार्थियों को पढाया भी था और समृद्ध भारत के इतिहास के बारे में बताकर विद्यार्थियों को वे हमेशा प्रेरित करते रहते थे। दुसरे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर सुखदेव ने “नौजवान भारत सभा” की स्थापना भारत में की। इस संस्था ने बहुत से क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लिया था और आज़ादी के लिये संघर्ष भी किया था। बाद में सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और पंजाब के कुछ क्रांतिकारी संगठनो में शामिल हुए। वे एक देशप्रेमी क्रांतिकारी और नेता थे जिन्होंने लाहौर में नेशनल कॉलेज के विद्यार्थियों को पढाया भी था और समृद्ध भारत के इतिहास के बारे में बताकर विद्यार्थियों को वे हमेशा प्रेरित करते रहते थे।सुखदेव ने बहुत से क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया है जैसे 1929 का “जेल भरो आंदोलन” । इसके साथ-साथ वे भारतीय स्वतंत्रता अभियान के भी सक्रीय सदस्य थे। भगत सिंह और शिवराम राजगुरु के साथ मिलकर वे लाहौर षड़यंत्र में सह-अपराधी भी बने थे। 1928 में लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद यह घटना हुई थी। 1928 में ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन साइमन के अंडर एक कमीशन का निर्माण किया, जिसका मुख्य उद्देश्य उस समय में भारत की राजनितिक अवस्था की जाँच करना और ब्रिटिश पार्टी का गठन करना था।लेकिन भारतीय राजनैतिक दलों ने कमीशन का विरोध किया क्योकि इस कमीशन में कोई भी सदस्य भारतीय नही था। बाद में राष्ट्रिय स्तर पर उनका विरोध होने लगा था। जब कमीशन 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर गयी तब लाला लाजपत राय ने अहिंसात्मक रूप से शांति मोर्चा निकालकर उनका विरोध किया लेकिन ब्रिटिश पुलिस ने उनके इस मोर्चे को हिंसात्मक घोषित किया।
इसके बाद जेम्स स्कॉट ने पुलिस अधिकारी को विरोधियो पर लाठी चार्ज करने का आदेश दिया और लाठी चार्ज के समय उन्होंने विशेषतः लाला लाजपत राय को निशाना बनाया। और बुरी तरह से घायल होने के बाद लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गयी थी। जब 17 नवम्बर 1928 को लाला लाजपत राय की मृत्यु हुई थी तब ऐसा माना गया था की स्कॉट को उनकी मृत्यु का गहरा धक्का लगा था।लेकिन तब यह बात ब्रिटिश पार्लिमेंट तक पहुची तब ब्रिटिश सरकार ने लाला लाजपत राय की मौत का जिम्मेदार होने से बिल्कुल मना कर दिया था।इसके बाद सुखदेव ने भगत सिंह के साथ मिलकर बदला लेने की ठानी और वे दुसरे उग्र क्रांतिकारी जैसे शिवराम राजगुरु, जय गोपाल और चंद्रशेखर आज़ाद को इकठ्ठा करने लगे, और अब इनका मुख्य उद्देश्य स्कॉट को मारना ही था।
जिसमे जय गोपाल को यह काम दिया गया था की वह स्कॉट को पहचाने और पहचानने के बाद उसपर शूट करने के लिये सिंह को इशारा दे। लेकिन यह एक गलती हो गयी थी, जय गोपाल ने जॉन सौन्ड़ेर्स को स्कॉट समझकर भगत सिंह को इशारा कर दिया था और भगत सिंह और शिवराम राजगुरु ने उनपर शूट कर दिया था।
यह घटना 17 दिसम्बर 1928 को घटित हुई थी। जब चानन सिंह सौन्ड़ेर्स के बचाव में आये तो उनकी भी हत्या कर दी गयी थी। इसके बाद पुलिस ने हत्यारों की तलाश करने के लिये बहुत से ऑपरेशन भी चलाये, उन्होंने हॉल के सभी प्रवेश और निकास द्वारो को बंद भी कर दिया था।जिसके चलते सुखदेव अपने दुसरे कुछ साथियों के साथ दो दिन तक छुपे हुए ही थे। 19 दिसम्बर 1928 को सुखदेव ने भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गा देवी वोहरा को मदद करने के लिये कहा था, जिसके लिये वह राजी भी हो गयी थी। उन्होंने लाहौर से हावड़ा ट्रेन पकड़ने का निर्णय लिया। अपनी पहचान छुपाने के लिये भगत सिंह ने अपने बाल कटवा लिये थे और दाढ़ी भी आधे से ज्यादा हटा दी थी। अगले दिन सुबह-सुबह उन्होंने पश्चिमी वस्त्र पहन लिये थे, भगत सिंह और वोहरा एक युवा जोड़े की तरह आगे बढ़ रहे थे जिनके हाथ में वोहरा का एक बच्चा भी था। जबकि राजगुरु उनका सामान उठाने वाला नौकर बना था। वे वहाँ से निकलने में सफल हुए और इसके बाद उन्होंने लाहौर जाने वाली ट्रेन पकड़ ली। लखनऊ ने, राजगुरु उन्हें छोड़कर अकेले बनारस चले गए थे जबकि भगत सिंह और वोहरा अपने बच्चे को लेकर हावड़ा चले गए।दिल्ली में सेंट्रल असेंबली हॉल में बमबारी करने के बाद सुखदेव और उनके साथियों को पुलिस ने पकड़ लिया था और उन्होंने मौत की सजा सुनाई गयी थी।
23 मार्च 1931 को सुखदेव थापर, भगत सिंह और शिवराम राजगुरु को फाँसी दी गयी थी और उनके शवो को रहस्यमयी तरीके से सतलज नदी के किनारे पर जलाया गया था। सुखदेव ने अपने जीवन को देश के लिये न्योछावर कर दिया था और सिर्फ 24 साल की उम्र में वे शहीद हो गए थे।
भारत को आज़ाद कराने के लिये अनेकों भारतीय देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे ही देशभक्त शहीदों में से एक थे, सुखदेव थापर, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत को अंग्रेजों की बेंड़ियों से मुक्त कराने के लिये समर्पित कर दिया। सुखदेव महान क्रान्तिकारी भगत सिंह के बचपन के मित्र थे।दोनों साथ बड़े हुये, साथ में पढ़े और अपने देश को आजाद कराने की जंग में एक साथ भारत माँ के लिये शहीद हो गये। 23 मार्च 1931 की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर सेंट्रल जेल में इन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया और खुली आँखों से भारत की आजादी का सपना देखने वाले ये तीन दिवाने हमेशा के लिये सो गये।
मेरी हवा में रहेगीं ख्याल की बिजली ,ये मुश्त ए खाक है फानी रहे ना रहे ॥॥
इस देश का यारों क्या कहना …यह देश है वीरों का गहना….”