शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

देश का युवा इतिहाश को पूरी तरह भूल चुका है उसको शहीदों की कुर्वानी और कस्ट का अह्शास नहीं युवाओ को विकाश की कहानिय सुनाकर विकाश की दौड़ के नाम पर इतिहाश को भुलने मजबूर किया जा रहा है !  आने बाले दिनों में संवेदना हिन् होते समाज को बांधना मुस्किल हो जायेगा क्यू की बिना बाप के पैदा होने बलि नस्ल जो टेस्ट टूव या बीजा रोपण से पैदा होगी उनमे रिस्तो की संवेदनाये नहीं होगी ,फैशन के दौड़ में आगे निकलने की ललक और पैसा कमाने की भूख के परिणाम समाज के बुजुर्गो को सम्मान नहीं दिला पाएगा ! जो धर्म प्रधान देश के लिए ठीक नहीं ! आधुनिकता जरुरत है परन्तु इतिहाश का अंत कर के नहीं बल्कि इतिहाश के सम्मान सहित देश का नव निर्माण होना जरुरी है ! देश में राजनीती की हबश में राष्ट्र निति खत्म हो रही है जो चिंतनीय है ! देश के युवाओ को इतिहाश ,आधुनिकता ,एवं राजनीती का सामंजस्य बैठने आगे आना होगा 

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