शुक्रवार, 24 जनवरी 2014





गणतंत्र दिवश कि हार्दिक शुभ कामनाएं देने में मन काँप जाता है कैसे दू शुभकामनाएं जहा बलात्कार व्यापार और हत्या स्टेटस सिम्बल बनगया हो: कैसे दू शुभकामनाए भूखे बेरोजगार रोज ठगे जा रहे देश को: पडोसी देश से भयभीत भारत को: अपनी जीविका के लिए संघर्ष रत समाज को: राजनीती से प्रताड़ित कानून कि वेदना झेलते हुए आती जाती संसो को पूरा करते मौत का इंतज़ार करने बाले युवाओ को: भ्रस्टाचार में आकंठ मग्न देश को देख कर सिर्फ रोना आता है चिंतनीय है कि जिस कानून को अंग्रेजो ने भारत में शासन करने के लिए बनाया था जिस कानून के खिलाफ लाखो भारत वासियो ने कुर्वानी दी थी आज़ाद हुए भारत में वाही कानून अचानक अच्छा कैसे हो गया कैसे गर्व हो हमें उस कानून पर जिसने आजतक नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के ला पता होने के कारण को उजागर नहीं किया कैसे गर्व करू उस कानून पर जिसने देश के प्रधान मंत्री राजीव गांधी के हत्यारो को आज तक सजा नहीं दी कैसे गर्व करू उस कानून पर जिस के जाल में करोड़ लोग सुबह से साम तक बचपन से मृत्यु हो जाने तक अनबरत भटकते रहते है कैसे गर्व हो देश को उस कानून पर जिसमे भ्रस्टाचार को रोकने कि छमता नहीं अपराधी को सजा देने कि छमता नहीं कैसे गर्व हो उस कानून पर जिसकी धज्जिया नेता अपने स्वार्थो हेतु जरुरत के नाम पर बदलाव से कर लेते है कैसे गर्व करू कानून पर जो जाती धर्म ओहदा देख कर कार्य करता है जो देश को बटाता देख कर खामोश है कैसे गर्व करू भारत पर जो आज़ाद होकर भी गुलाम है     

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