सोमवार, 11 मई 2015

     अन्धा बांटे रेबड़ी चीन्ह चीन्ह कर दे ..... बाप रे बाप कोर्ट के आदेश की अबमानना समझो कोर्ट ऑफ़ कंटेम्ट का भय लोगो को न्यायालय के सम्मान हेतु मजबूर करदेता था. ये  तब की बात थी जब न्याय में नैतिकता दिखती थी परन्तु जब न्याय का व्यापार होरहा हो.न्यायालय के फैसले जातिगत आधार पर होरहे हो .न्यायपालिका की अपने फैसले की सत्यता और असत्यता की कोई जुम्मेदारी न हो. आम जानो को ये लगने लगे की अत्याचार सहलेना ज्यादा सस्ता है न्यायालय के पीसने से. तो विचारणीय हो जाता है की देश में कितनी दादागिरी है न्यायपालिका की और कितना अविश्बास है न्यायाधीशों के प्रति. यदि यही हाल रहे तो न्यायिक प्रक्रिया से त्रस्त तबका हथियार उठाकर अपने सम्मान सम्पत्ति की रक्षा हेतु विबस हो जायेगा तब क्या होगा जब हर फैशला फरियादी की बन्दूक करेगी. क्या यह चिन्तनीय नहीं है. क्या न्याय में समानता सहजता सत्यता तत्परता को लागू करने की जरुरत नहीं है .क्या न्याय सब के लिए सुलभ हो इस ओऱ प्रयास नहीं होना चाहिए. क्या देश के दमन हेतु बनाये अंग्रेजो के कानून को समाप्त कर भारत के अनुरूप संबिधान का निर्माण नहीं होना चाहिए. यदि इसकी जरुरत है तो ख़ामोशी तोड़ो नाद करो हिन्दू राष्ट्र बनाने का . हिन्दू जागो रे जागो 

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