सोमवार, 4 मई 2015

एक टिटिहरी ( चिड़िया ) थी जो ऊँचे ऊँचे आसमानो में उड़ाती और दूसरी चिडिओ को हेय दृस्टि से देखती थी उस घमण्डी टिटिहरी को अपने बच्चो की भी परबाह नहीं होती दिन भर आवारा गर्दी करने के बाद रात में जब बच्चो के पास पहुचती तो बच्चे भूख प्यास से तड़फ रहे होते जब वो अपनी माँ से पूछते की दाना पानी कहा है  तुम तो खाली हाँथ लौट आई जब की बोल के गई थी की जल्दी ही अच्छे पकवान लाओगी हम सब मजे से दावत उड़ायेंगे तो टिटिहरी बड़ी बेशर्मी और दृढ़ता के साथ अपनी चोंच अपने पँख में छुपा कर टिया टिया करते हुए अपने पैरो को ऊपर आसमान की और उठा कर कहती है की ये जो ऊपर आसमान देखते हो न उसको हमने ही अपने पंजो से थाम रक्खा है वरना ये निचे गिरजायेगा और दुनिया खत्म हो जाएगी बच्चे अपनी महान टिटिहरी माँ की ऒर गर्व से देखते गर्मी ठण्डी बरसात में अपनी माँ के द्वारा उठाये गए आसमान के निचे अपना जीवन यापन करते और विरासत में मिली सीख और परम्परा को आगे बढ़ाने खुद को तैयार करने में लगजाते ऐसी थोथी परम्परा को थोपने बाली टिटिहरी से किसका भला होगा ये तो टिटिहरी ही जाने !



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