गुरुवार, 7 नवंबर 2013

 कभी विवेकानन्द जी की तुलना दाउद से कि जाती है कभी विवेकानन्द जी को आदर्श मन जाता है। कभी राम मन्दिर बनाने कि बात कि जाती है कभी राम के अस्तित्व को नाकारा जाता है कभी हिन्दू बादी होने का आडम्बर  है तो कभी मुस्लिम तुस्टी कारण का खेल खेला जाता है। .......... धन्य है गिरगिट कि तरह रंग बदलने बाकि भाजपा धन्य है तेरी सत्ता लोलुप्ता की चाल बोटो कि खातिर तुझको हर सौदा मंजूर है फिर उसकी कीमत चाहे हिन्दुओ कि अनगिनत लासे ही क्यू न हो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें