शनिवार, 6 मई 2023

          रोहिंग्याओं से देश को ख़तरा इस विषय पर चिंतन नहीं
बल्कि राजनैतिक फायदा ढूढ़ा जा रहा है ।

म्यांमार में करीब 8 लाख रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं और वे इस देश में सदियों से रहते आए हैं, लेकिन बर्मा के लोग और वहां की सरकार इन लोगों को अपना नागरिक नहीं मानती है। बिना किसी देश के इन रोहिंग्या लोगों को म्यांमार में भीषण दमन का सामना करना पड़ता है। बड़ी संख्या में रोहिंग्या लोग बांग्लादेश और थाईलैंड की सीमा पर स्थित शरणार्थी शिविरों में अमानवीय स्थितियों में रहने को विवश हैं। करण स्पष्ट है उनका संदेही और नरभक्षी होना -----?

आज पुनः 
रोहिंग्या मुस्लिम का इतिहास जनाने की ज़रूरत है । कॉमन ईरा (सीई) के वर्ष 1400 के आसपास ये लोग ऐसे पहले मुस्लिम्स हैं जो कि बर्मा के अराकान प्रांत में आकर बस गए थे। इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मीज में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे। इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्रय दिया था। अराकान म्यांमार की पश्चिमी सीमा पर है और यह आज के बांग्लादेश (जो कि पूर्व में बंगाल का एक हिस्सा था) की सीमा के पास है। इस समय के बाद अराकान के राजाओं ने खुद को मुगल शासकों की तरह समझना शुरू किया। ये लोग अपनी सेना में मुस्लिम पदवियों का उपयोग करते थे। इनके दरबार के अधिकारियों ने नाम भी मुस्लिम शासकों के दरबारों की तर्ज पर रखे गए।  परंतु इस भरोसे के बाद भी ये रोहिंग्या मुस्लिम अपनी हरकतों से संदेही बने रहे ।

वर्ष 1785 में बर्मा बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ा और वर्मा की सत्ता बौद्धों के हँथो में संरक्षित हुई । रोहिंग्या मुस्लिम अपनी हरकतों से अपने आचरण के करण आक्रामक होने लगे बौद्धों के अस्तित्व को समूल नष्ट भ्रष्ट करने और धर्म गुरूओ की हत्या जैसे इनका रोज़ की दिनचर्या बनगई थी । तब देश हित में संगठित बौद्धों रोहिंग्या मुस्लिमों को इलाके से बाहर खदेड़ दिया। इस अवधि में अराकान के करीब 35 हजार रोहिंग्या मुस्लिम बंगाल भाग गए जो कि तब अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में था। वर्ष 1824 से लेकर 1826 तक चले एंग्लो-बर्मीज युद्ध के बाद 1826 में अराकान अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया। तब अंग्रेजों ने बंगाल के स्थानीय बंगालियों को प्रोत्साहित किया कि वे अराकान ने जनसंख्या रहित क्षेत्र में जाकर बस जाएं। रोहिंग्या मूल के मुस्लिमों और बंगालियों को प्रोत्साहित किया गया कि वे अराकान (राखिन) में बसें।

रोहिंग्या मूल के मुस्लिम सुन्नी इस्लाम को मानते हैं और धार्मिक कट्टरता के करण इनकी शिक्षा का स्तर शून्य है, ये सिर्फ़ कट्टर इस्लामिक शिक्षा की ही जानकारी रखते है यही करण है की ये किसी भी स्थिति परिस्थिति में अपनी आदत कट्टरता और हिंसक प्रविति को छोड़ नहीं पाते है । ये कठ मुल्ले दिन रात औलाद पैदा करने और हिंसा को ही अपने जीवन का उद्देश्य मानते है । यही करण है की बर्मा के शासकों और सैन्य सत्ता ने इनका कई बार दमन किया किया और इन्हें देश से बाहर खदेड़ दिया गया। ऐसी स्थिति में ये अविश्वसनीय रोहिंग्या बांग्लादेश, थाईलैंड की सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसते हैं या फिर सीमा पर ही शिविर लगाकर बने रहते हैं। 

1991-92 में दमन के दौर में करीब ढाई लाख रोहिंग्या बांग्लादेश भाग गए थे । म्यांमार की सेना ही क्या देश में लोकतंत्र की स्थापना वाली आंग सान सूकी का भी मानना है कि रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार के नागरिक ही नहीं हैं। जिससे स्पष्ट होता है की इन रोहिंग्या मुस्लिम का आचरण कैसा है ।

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति और 1962 में जनरल नेविन के नेतृत्व में तख्तापलट की कार्रवाई के दौर में रोहिंग्या मुस्लिमों ने अराकान में एक अलग रोहिंग्या देश बनाने की मांग रखी, लेकिन तत्कालीन बर्मी सेना के शासन ने यांगून (पूर्व का रंगून) पर कब्जा करते ही अलगाववादी और गैर राजनीतिक दोनों ही प्रकार के रोहिंग्या लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। सैनिक शासन ने रोहिंग्या लोगों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया और इन्हें बिना देश वाला (स्टेट लैस) बंगाली घोषित कर दिया। तब से स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। बर्मा के सैनिक शासकों ने 1982 के नागरिकता कानून के आधार पर उनसे नागरिकों के  केवल दो बच्चे पैदा करने के नियम को मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया, लेकिन उन्होंने इसका संसद में विरोध करने की जरूरत नहीं समझी।

रोहिंग्या के आचरण का अंदाज़ा सिर्फ़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोहिंग्या के खिलाफ बौद्ध नहीं अपितु आश्चर्य की बात यह है कि रोहिंग्या हिंसा के ख़िलाफ़ देश रक्षा के लिये अब बौद्ध भिक्षु भी भाग लेने लगे हैं। इस स्थिति को देखने के बाद रोहिंग्या मुस्लिमों को सिर्फ़ म्यांमार भर नहीं उन्हें दुनिया का कोई भी देश अपने यहाँ की नागरिकता देने को तैयार नहीं है ।

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने म्यांमार को चेतावनी दी है कि यदि वह एक विश्वसनीय देश के रूप में देखा जाना चाहता है तो उसे देश के पश्चिमी हिस्से में रह रहे अल्पसंख्यक मुसलमानों पर बौद्धों के हमले रोकना होगा उल्लेखनीय है कि गत वर्ष बौद्ध देश म्यांमार में अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ गुटीय हिंसा में बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे और करीब क लाख 40 हजार लोग बेघर हो गए थे। कुछ लोगों का मानना है कि यह स्थिति म्यांमार के राजनीतिक सुधारों के लिए खतरा है क्योंकि इससे सुरक्षा बल फिर से नियंत्रण स्थापित करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।
विश्व संस्था के महासचिव बान की मून ने हाल ही में कहा कि म्यांमार के अधिकारियों के लिए यह जरूरी है कि वह मुस्लिम-रोहिंग्या की नागरिकता की मांग सहित अल्पसंख्यक समुदायों की वैधानिक शिकायतों को दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि ऐसा करने में असफल रहने पर सुधार प्रक्रिया कमजोर होगी और नकारात्मक क्षेत्रीय दुष्परिणाम ही मिलेंगे।

खुद संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि कुल आठ लाख रोहिंग्या आबादी का करीब एक चौथाई भाग विस्थापित है और उससे ज्यादा बुरा हाल अभी दुनिया की अन्य किसी भी विस्थापित कौम का नहीं है। रोहिंग्या विस्थापितों का सबसे बड़ा हिस्सा थाईलैंड और बांग्लादेश में रह रहा है, लेकिन अब भारत, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे नजदीकी देशों में भी उनके जत्थे देखे जाने लगे हैं।

पर उपदेश सकल बहुतेरे 
दुनिया भर में रोहिंग्या विस्थापितों की दुर्गति पर प्रश्न चिन्ह लगाने बाले मुल्ले कभी भी 58 मुस्लिम देशों से यह नहीं पूँछपाये की बह स्व जातियो को अपने देश में शरण और अपने देश की नागरिकता क्यों नहीं देते ….?


देश के लिए खतरा हैं रोहिंग्या, कुछ का आतंकियों से संपर्क : सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का हलफनामा

रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार भेजने की योजना पर केंद्र सरकार ने 16 पन्नों का हलफनामा दायर किया है। इस हलफानामे में केंद्र ने कहा कि कुछ रोहिग्या शरणार्थियों के पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों से संपर्क का पता चला है। ऐसे में ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से खतरा साबित हो सकते हैं। आतंकी कनेक्शन की खुफिया सूचना केंद्र ने अपने हलफनामे में साथ ही कहा, 'जम्मू, दिल्ली, हैदराबाद और मेवात में सक्रिय रोहिंग्या शरणार्थियों के आतंकी कनेक्शन होने की भी खुफिया सूचना मिली है। वहीं कुछ रोहिंग्या हुंडी और हवाला के जरिये पैसों की हेरफेर सहित विभिन्न अवैध व भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए गए।'
देश में अवैध तरीके से बनवा रहे भारतीय पहचान पत्र सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा कि कई रोहिंग्या मानव तस्करी में भी शामिल पाए गए। वे बिना किसी दस्तावेज के एजेंटों की मदद से म्यांमार सीमा पार कर भारत आ गए और फिर यहां पैन कार्ड और वोटर आईडी जैसे भारतीय पहचान पत्र बनवाकर यहां अवैध तरीके से रह रहे हैं। केंद्र ने साफ किया कि इन अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों को देश के नागरिकों जैसे अधिकार नहीं दिए जा सकते।

बौद्ध नागरिकों के खिलाफ उठा सकते हैं हिंसक कदम रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ म्यांमार में शुरू हुई सैन्य कार्रवाई की वजह से सैकड़ों-हजारों महिलाओं, बच्चों और पुरुषों को अपने घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा है। ऐसे में केंद्र ने एक आशंका यह भी जताई कि ये रोहिंग्या देश में रहने वाले बौद्ध नागरिकों के खिलाफ हिंसक कदम उठा सकते हैं।
केंद्र ने यह भी चिंता जताई कि अवैध शरणार्थियों की वजह से कुछ जगहों पर आबादी का अनुपात गड़बड़ हो सकता है। ऐसे में वे रोहिंग्या शरणार्थी जिनके पास संयुक्त राष्ट्र के दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें भारत से जाना ही होगा।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा
रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के लिए गंभीर समस्या रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था...

भारत की संस्कृति ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की रही है और इसीलिए वैश्विक स्तर पर आए संकट के समय भी हर तरह से पूरी दुनिया को मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाता रहा है। भारत की सह्दयता और सहनशीलता सबको साथ लेकर चलने की रही है लेकिन कोई भारत को धर्मशाला समझ बैठे और अपने कुकृत्यों को छिपाकर भारत में शरणार्थी बनकर भारतवासियों के संसाधनो पर कब्जा करने की सोचे तो ये भी भारतवर्ष को कतई स्वीकार नहीं है। कुछ ऐसे ही देश के लिए नासूर बन गए हैं रोहिंग्या शरणार्थी जिनका मसला देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए भी बेहद संवेदनशील हो गया है। रोहिंग्या शरणार्थी को शरण देने में कुछ राज्य सरकारों का भी दोष है। खासकर पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकारों ने वोट पालिटिक्स एवं सत्ता की लालच में करीब दशक भर पहले से इन्हें शरण देता आया है। अब उनकी यही नीति देश के लिए नासूर बन रही है और रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन गए हैं। ये शरणार्थी अवैध गतिविधियों में शामिल होते हैं, इसके सबूत भी मिले हैं। यहां यह ध्यान रखने की बात है कि ये वही रोहिंग्या हैं जिन्होंने अपनी नृशंसता से म्यांमार के रखाइन प्रांत को हिंदू-विहीन कर दिया है। अब बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुस्लिमों के देश में शरण लेने से इस बात की आशंका काफी बढ़ रही है कि पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा, अल-कायदा और यहां तक कि इस्लामिक स्टेट (IS) जैसे आतंकी संगठन भी उनका इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए कर सकते हैं। इस बात के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं कि काफी संख्या में रोहिंग्या मुस्लिम आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं। बांग्लादेश पहले ही आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है।

भारत में आधिकारिक रूप से 40 हजार रोहिंग्या

भारत में पनाह लेकर रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों को देश से निकालने की मांग हमेशा से होती रही है। हालांकि, 2017 में तत्कालीन केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजूजू ने आधिकारिक रुप से रोहिंग्याओं की संख्या 40,000 बताई थी। उन्होंने यह भी बताया कि इनमें लगभग 16,000 औपचारिक रूप से यूएनएचसीआर से शरणार्थी के रूप में पंजीकृत थे। हालांकि वर्तमान में रोहिंग्या प्रवासियों की सटीक संख्या का पता लगाना मुश्किल है। वैसे तो अब तक यह आंकड़ा काफी बढ़ गया होगा। अब भारत सरकार के सामने रोंहिग्या मुस्लिमों की रोजी-रोटी से कहीं बड़ा सवाल देश की सुरक्षा का है। दरअसल सरकार को ऐसे खुफिया इनपुट मिले हैं कि पाकिस्तान से ऑपरेट कर रहे टेरर ग्रुप इन्हें अपने चंगुल में लेने की साजिश में लग गए हैं। रोहिंग्या मुसलमान आईएसआई और आईएसआईएस के भी संपर्क में हैं। ऐसे में इनका भारत में रहना देश के लिए खतरा है।

रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा

वैध रोहिंग्या प्रवासियों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा करार दिया गया है। यह भी बताया गया है कि ये अवैध गतिविधियों में शामिल हैं। सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या समेत तमाम अवैध प्रवासी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। उनके अवैध गतिविधियों में शामिल होने की रिपोर्ट भी मिली है। कांग्रेस, टीएमसी, लेफ्ट, एआईएआईएम, समाजवादी पार्टी और आरजेडी जैसे राजनीतिक दल रोहिंग्या मुसलमानों को वोट बैंक की नजर से देख रहे हैं। जबकि भारत सरकार का मानना है कि रोहिंग्या घुसपैठिये देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं। कट्टरपंथी इस्लाम से भी इनका निकट संबंध माना जाता है।

सोची समझी साजिश है रोहिंग्या को बसाना !

भारत में घुस आए रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजना इसलिये भी जरूरी है कि ये लोग म्यांमार में हिंसा के दौरान वहां से भाग कर नहीं बल्कि साजिश के तहत पिछले एक दशक के दौरान आए हैं। शंका इसलिए भी उठ रही है कि असम और बंगाल के शरणार्थी कैंपों को छोड़कर इतनी दूर ये जम्मू कश्मीर कैसे आ गए? जम्मू में रोहिंग्या मुसलमानों के बसाने के पीछे क्या मकसद है? कौन सी संस्थाएं हैं जो वहां सेटल करा रही हैं? जाहिर है इसमें किसी बड़ी साजिश की बू आ रही है। जम्मू और सांबा में बड़ी संख्या में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिये बसे हुए हैं। ये लोग राजीव नगर, कासिम नगर, नरवाल, भंठिड़ी, बोहड़ी, छन्नी हिम्मत, नगरोटा और अन्य क्षेत्रों में बड़ी तादाद में हैं। दरअसल इन क्षेत्रों के भौगोलिक और जनसांख्यिकीय बदलाव के लिए ही इन्हें बसाने की साजिश रची गई है। गौरतलब है कि 2010 से लेकर अब तक रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या में करीब चार गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है। दरअसल यह हिंदू बहुल ‘जम्मू संभाग की जनसांख्यिकी को बदलने’ की साजिश का परिणाम है। इस साजिश के तहत बांग्लादेशी घुसपैठियों और घाटी के मुसलमानों को भी जम्मू में बसाया गया। उन्हें रोशनी एक्ट की आड़ में भूमि आवंटित की गई और मतदाता बनाया गया, ताकि चुनावी समीकरणों को प्रभावित किया जा सके। रोहिंग्या घुसपैठियों को राजनीतिक प्रश्रय देकर बंगाल में भी बड़ी संख्या में बसाया गया।

म्यांमार में हिंदुओं के सामूहिक नरसंहार में शामिल रहे रोहिंग्या 

एमनेस्टी इंटरनेशनल की जांच के अनुसार, रोहिंग्या मुसलमान आतंकवादियों ने 2017 के अगस्त में म्यांमार के सैकड़ों हिंदू नागरिकों की सामूहिक हत्या की थी। इस नरसंहार को ‘आरसा’ नाम के संगठन ने अंजाम दिया था, जिसने 99 निर्दोष लोगों को क्रूर तरीके से मौत के घाट उतार दिया था। रिपोर्ट के अनुसार 26 अगस्त, 2017 को ‘आरसा’ के आतंकवादियों ने म्यामांर में रखाइन प्रांत के ‘अह नौक खा मौंग सेक’ गांव के सभी पुरुषों को सामूहिक तौर पर मार दिया और महिलाओं को बंदी बना लिया था। बच्चों के सामने ही उनके परिजनों की सामूहिक हत्या की गई और बाद में उन्हें सामूहिक कब्र में दफना दिया गया।

भारत में घुसपैठियों को मुस्लिम देशों से की जाती है हवाला फंडिंग

जांच में यह बात भी सामने आई है कि इन घुसपैठियों को भारत में बसाने के लिए पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब आदि मुस्लिम देशों से हवाला फंडिंग की जा रही है। हवाला फंडिंग से खाए-अघाए कुछ एनजीओ, मदरसे, वेलफेयर सेंटर आदि बनाने/ चलाने की आड़ में इनकी सुगम बसावट सुनिश्चित कर रहे थे और जरूरी दस्तावेज जुटाने/ बनवाने में भी इनकी मदद कर रहे थे। भारत की खुफिया एजेंसियां अब इनको उघाड़ने में जुटी हुई हैं। 

वैसे तो रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा पूरी दुनिया में छाया हुआ है लेकिन आजकल एक बेहद अजीब खबर उनके बारे में प्रचारित की जा रही है जिसमे उन्हें मानव मांस खाने वाला बताया जा रहा है. आज कोहराम न्यूज़ इसी खबर की पड़ताल करके आपके सामने रखेगा की यह खबर सच है या झूठ, क्या सच में रोहिंग्या मुसलमान इंसानी मांस खाकर अपनी भूख मिटाते है, क्या सच में बर्मा सरकार उन्हें इसीलिए देश से निकाल रही है क्योंकी उन्होंने वहां के बौधों को खाकर उनकी आबादी कम आकर दी और अब उन्हें भगाया जा रहा है. क्या दुनिया का कोई भी देश उन्हें इसीलिए पनाह नही दे रहा है क्योंकी उन्हें दर है की रोहिंग्या मुसलमान उनके बच्चो को खा जायेंगे.

वैसे आपको सुनने में यह बाते बेहद अजीब सी लग सकती है लेकिन ऐसी खबर सोशल मीडिया पर बड़ी तादात में वायरल की जा रही है की रोहिंग्या मुसलमान इंसानी मांस खाते है. वायरल की जा रही इन पोस्टों में कुछ फोटो लगाकर लिखा गया है की वैसे तो इस तरह की काफी पोस्ट वायरल की जा रही है जहाँ अलग अलग लोग भिन्न फोटो का इस्तेमाल करके यह साबित करने की कोशिश कर रहे है की रोहिंग्या मुसलमान इंसानी भक्षक है और उन्हें म्यांमार से इसी कारण भगाया जा रहा है.

आइये देखते है आखिर क्या सच है. इसमें जो फोटो इस्तेमाल किये गये है उनकी पड़ताल करते है.

इस वायरल मैसेज में एक फोटो इस्तेमाल किया गया हैे जिसमे इंसानी सिर दीवार के साहारे रखे गये है लेकिन आपको बताते चले की यह फोटो कम्पलीट नही है इस फोटो में गत्ते के एक टुकड़े पर सन्देश भी लिखा गया है जो सिरों के ठीक सामने है चूँकि उसपर साफ़ पढ़ा जा सकता है की यह फोटो ड्रग माफियाओं से सम्बंधित है इसीलिए उस सन्देश को बड़ी चालाकी से फोटोशॉप से कट कर दिया गया है. दरअसल इसमें जो लोग दिखाए गये है वो मक्सिको की जेल में हुई हिंसाओ में मारे गये थे और इन सभी का सम्बन्ध ड्रग माफिया गैंग से था. ना तो इनमे से किसी का सम्बन्ध रोहिंग्या से है और ना ही इनकी गर्दन इसलिए काटी गयी है की इन्हें पकाकर खाया जाए. लिंक देखें – :

http://www.borderlandbeat.com/2012/03/10-decapitated-heads-found-at.html

इसके बाद जो दूसरी फोटो इस मैसेज में दिखाई गयी है जिसमे साफ़ तौर पर देखा जा सकता है की कुछ लोग मानव शरीर को काट रहे है, दरअसल उस फोटो का सम्बन्ध थाईलैंड से है और यह मुसलमानों के बिलकुल विपरीत बौधों की एक प्रकार की धार्मिक क्रिया होती है जिसका नाम “Lang Pa Cha’ (लैंग पा चा), इस धार्मिक रिवाज के तहत जंगल की सफाई की जाती है अगर ऐसे में कोई अनजान मृत शरीर मिलता है तो उसके शरीर की एक-एक हड्डी को अलग करके साफ़ किया जाता है, जिसके लिए स्वंसेवक साथ रखे जाते है और पूरी प्रक्रिया मेडिकल स्टाफ की देख रेख में होती है. लिंक पर क्लिक करके आपको खुद सच का अंदाज़ा आ जायेगा 

https://www.documentingreality.com/forum/f10/field-dressing-man-23186/

सन 2009 में जब यह फोटो दुनिया के सामने आई थी तब इन्होने तहलका मचा दिया था. काफी लोगो ने थाईलैंड एम्बेसी को ईमेल के ज़रिये इन फोटोग्राफ की सच्चाई बताने के आग्रह किया और एक तरह की मुहीम चल पड़ी जिसे ‘मेतहुलु’ कहा गया. बाद में इनकी असलियत सामने आई थी की थाईलैंड के एक इलाके प्रन्चुबखीरी जगह के बौध लोग इस तरह की रीति रिवाज का पालन करते है. इसमें उन शरीर को साफ़ किया जाता है जो लावारिस अवस्था में मिलते है और उन्हें काट कर उनकी हड्डियाँ निकाल ली जाती है फिर उन्हें दफ़न किया जाता है. इस लिंक पर पूरी डिटेल पढ़ी जा सकती है –          http://www.snopes.com/photos/gruesome/thaicannibals.asp


दिल्ली में अर्थात् भारत की राजधानी जहाँ से प्रजातांत्रिक सरकार का संचालन होता है, जिसे सब से अधिक सुरक्षा की ज़रूरत है वहाँ ,रोहिंग्या।

दिल्ली में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए बड़ी संख्या में रहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में 1,100 से ज्यादा रोहिंग्या घुसपैठिए रहते हैं। बताया जाता है कि ये लोग अवैध तरीके से भारत में घुसे हैं। इन शरणार्थियों ने दिल्ली में अवैध तरीके से आधार कार्ड, पहचान पत्र, राशन कार्ड बनवा लिए हैं। ये दिल्ली के कई अलग-अलग इलाकों में झुग्गी बनाकर रहते हैं। 2003 में दिल्ली पुलिस ने अवैध घुसपैठियों को पकड़ने के लिए एक सेल बनाया था और इस दौरान करीब 40 हजार अवैध घुसपैठिए को पकड़ा भी गया था। लेकिन फिलहाल ये सेल अब कम सक्रिय हो गया है। दरअसल, सेल की कम सक्रियता के पीछे की वजह है कि ये अवैध घुसपैठिये ऐसे पहचान पत्र यहां बनवा लेते हैं कि जिससे ये जानना मुश्किल हो जाता है कि वे अवैध घुसपैठिये हैं या देश के नागरिक। 2018 में एक आरटीआई के जवाब में दिल्ली पुलिस ने बताया था कि 2014-18 के बीच करीब 1,134 घुपैठिए पकड़ने की जानकारी दी थी।
दिल्ली में किन इलाकों में रहते हैं रोहिंग्या
राजधानी दिल्ली के अलग-अलग इलाके में सैकड़ों रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं। सरकार ने जहां अभी बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं उसे दिल्ली सरकार को डिटेंशन सेंटर घोषित करने को कहा है। इसके अलावा भी दिल्ली में कुछ ऐसे इलाके हैं जहां अवैध घुसपैठिए रहते हैं। विकासपुरी, नजफगढ़, सीमापुरी रेलवे स्टेशन। जहांगीपुरी, भलस्वा डेयरी जैसे इलाके में अवैध घुसपैठिये की बड़ी तादाद है। इसके अलावा श्रम विहार, कालिंदी कुंज भी अवैध घुसपैठिये रहते हैं।
देश में रोहिंग्या मुसलमानों की कितनी संख्या
वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ने बताया था कि देश में करीब 40 हजार अवैध रोहिंग्या घुसपैठिये रह रहे हैं। ये घुसपैठिये देश के अलग-अलग राज्यों या शहरों में रहते हैं। रोहिंग्या जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में रहते हैं। उधर, संयुक्त राष्ट्र संस्ता UNHRC के अनुसार, भारत में 2021 के दिसंबर महीने तक देश के अलग-अलग इलाके में करीब 18 हजार रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक सबसे ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान जम्मू-कश्मीर के आसपास के इलाके में रहते हैं। खबरों के मुताबिक यहां करीब 5 हजार रोहिंग्या रहते हैं। हालांकि, कई पक्ष यहां 10 हजार रोहिंग्या मुसलमानों के होने का दावा करते हैं।

भारत को आतंक और बलात्कार की भूमि नहीं बनने देना चाहिये, जिन मुल्लो को भारत ने आश्रय दिया वही भारत की बर्बादी का तना बना बुनने में लगे है फिर एक और उदारता जिस पर भारत का विनाश स्पष्ट दिख रहा हो उसे स्वीकार कराने का मतलब भारत के धर्म, संस्कृति का समूल अंत । जो हमें स्वीकार नहीं ।


रोहिंग्या मुसलमान नरभक्षी है या संत मैं इस बात की पुष्टि नहीं करता क्यों की यह काम सरकार और उसकी जाँच एजेंसियो का है लेकिन एक प्रश्न जो बड़ा है और अभी भी खड़ा है की इन मुल्लो को इस्लामिक देश शरण क्यों नहीं देते …..?

हिंदू जागरूक बने, सतर्क रहे, दीर्घजीवी रहे, देश और स्वयं की के लिये हर गहरी तत्पर रहे ।

1947 भारत बिभाजन को पूरी तरह लागू करो ।
मुल्लो को इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान मिला ।
हमे भारत हिंदू राष्ट्र चाहिये ।
जय हिंदू राष्ट्र



             आपका
देवेन्द्र पाण्डेय "डब्बू जी "

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