बुधवार, 10 मई 2023

खलनायक ख़ादिम चिस्ती खानदान अर्थात् 

मोहम्मद पैग़म्बर का परिवार जो अजमेर दरगाह में आज भी  (मुल्ला-पुजारी) है ।

सैकड़ो बच्चियों से बलात्कार होता रहा और सरकार मौन रही….?

यह फिल्मी स्टोरी या राजनैतिक डरावना किस्सा नहीं बल्कि वह सत्य है

जिसे कॉंग्रेस से अधिक भाजपा ने छुपाने का षड्यंत किया ।


बात साल 1992  सोफ़िया गर्ल स्कूल और सावित्री स्कूल अजमेर की है अजमेर अजमेर दरगाहअजमेर शरीफ - दरगाह शरीफ, मोइनिद्दीन चिश्ती जिसका इतिहास हिंदुओ के कत्ल से सुसज्जित है ।) मोइनिद्दीन चिश्ती का एक शागिर्द मलिक ख़ितब जिसने एक हिन्दू राजा की बेटी का अपहरण कर लिया था और मोइनिद्दीन चिश्ती को उपहार रूप में प्रस्तुत किया, मोइनिद्दीन चिश्ती ने अपहृत राजकुमारी को उपहार जैसा स्वीकार किया और उससे निकाह किया उस हिन्दू अपहृत राजकुमारी का नाम चिश्ती ने बीबी उमिया रखा था । यह किस्सा भी अजमेर दरगाहअजमेर शरीफ - दरगाह शरीफ, मोइनिद्दीन चिश्ती का मक़बरा उसी के ख़ादिम का है । जिसे मुल्ले और मजार भक्त कायर हिन्दू अजमेर शरीफ़ कहते है, ये वही अजमेर शरीफ़ है जहाँ हिन्दू बच्चियों की सिसकियाँ उनके मौत पर ही खत्म होती थी । अजमेर शरीफ़ का के बदमाश ख़ादिम चिश्ती खानदान अर्थात् मोहम्मद पैग़म्बर का परिवार (मुल्ला-पुजारी) जिसके हांथ ना जाने कितने अंधभक्त मुल्ले और हिन्दू बड़ी श्रद्धा के साथ आज भी चूमते / चाटते है ।

किस्सा आज से 31 साल पहले का है फिर भी क्रूरता की तपन और बच्चियों के तड़फ से हमारी धमनियों और नशों में प्रवाहित रक्त चीख चीख कर कहता है की अभी बन्दूक उठाऊँ और उन पापी कुत्तो का समूल विनाश करदु जिन्होंने हजारो बच्चियों का जीवन वर्बाद किया फिर भी चिश्ती खानदान अर्थात् मोहम्मद पैग़म्बर का परिवार जो अब (मुल्ला-पुजारी) बनकर पूजित है । मुल्ले जिस ख़ानदान के हांथ चूमते है और नपुंशक हिंदू उनके चरण चाटते है, यह कहानी उसी अपराधी परिवार की है । 

वाह वाह भारत का न्याय / न्यायाधीश / राजनीति तुझसे कोई आस नहीं । आज भी बलात्कार की शिकार बच्चियों को ना तो न्याय मिला ना ही बलात्कारी दरिन्दों को उनकी नीचता उसके जघन्य कृत्यो की सजा ही मिली ।


आखिर न्याय में देर और अंधेर क्यों …..?

अजमेर में स्कूल-कॉलेज की 300 से ज्यादा लड़कियों का यौन शोषण किया गया था. जिसका आरोप शहर के सबसे रईस और ताकतवर खानदानों में से एक चिश्ती परिवार के लड़कों पर लगा था, 21 अप्रैल 1992 को राजस्थान के अजमेर में रोज जैसा ही माहौल था, लेकिन उस दिन जो हुआ, उसके लिए कोई तैयार नहीं था, दरअसल, एक स्थानीय अखबार दैनिक नवज्योति में अजमेर में चल रहे एक सेक्स स्कैंडल का खुलासा होता है, ये 90 के दशक के उस दौर की बात थी, जब मोबाइल, इंटरनेट, न्यूज चैनलों का भारत में ठीक से आगमन भी नहीं हो पाया था. कुछ बड़े लोगों के घरों में ही लैंडलाइन के फोन हुआ करते थे  दैनिक नवज्योति नामक अखबार में खबर छपी कि अजमेर में लंबे समय से एक सेक्स स्कैंडल को अंजाम दिया जा रहा है, कुछ लोगों का एक ग्रुप स्कूल में पढ़ने वाली कम उम्र की लड़कियों का सामूहिक बलात्कार कर रहे हैं, हालांकि, इस खबर पर लोगों को भरोसा नहीं हुआ, क्योंकि न किसी लड़की ने खुलकर आरोप लगाए थे और न ही पुलिस में किसी ने शिकायत दर्ज की थी, इसके कुछ दिनों बाद 15 मई को फिर से एक खबर प्रकाशित हुई, जिसमें बलात्कार का शिकार हुई कुछ लड़कियों की धुंधली तस्वीरें भी छापी गई थीं 


लड़कियों की इन तस्वीरों में कुछ लोग उनके साथ आपत्तिजनक हालत में नजर आ रहे थे, दो दिनों तक लगातार ये तस्वीरें दैनिक नवज्योति अखबार में प्रकाशित हुईं और इस खबर ने अजमेर में तूफान ला दिया था, कहा जाता है कि ये खबर सामने आने के बाद तत्कालीन राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत की कुर्सी तक हिल गई थी, हर रोज नई तस्वीरें सामने आने लगीं और इन तस्वीरों की जीरॉक्स कॉपियां भी लोगों के बीच बंटने लगीं, किसी ने इसे अजमेर गैंगरेप कांड, तो किसी ने अजमेर ब्लैकमेल कांड करार दिया  परन्तु हिलती हुई मुख्यमंत्री की कुर्सी में भैरो सिंह शेखावत मजबूती से बैठे रहे । मुख्यमंत्री की कुर्सी का सौदा शायद बच्चियों की लुटी हुई इज्जत से  हो गया था / शायद अपराधियों / दुष्कर्मियों की रक्षा के बदले राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भाजपा के भैरो सिंह शेखावत को बने रहने का उपहार प्राप्त हुआ था । अपनी मरी हुई आत्मा /सत्ता का लोभ और बच्चियों के साथ हुए अत्याचार के बोझ को लादे ज़िन्दगी भर भैरो सिंह मुस्कुराते रहे । क्यों की अजमेर बलात्कार काण्ड में उनसे संबंधित शायद कोई बच्ची नहीं थी, हो सकता है रही भी हो और सत्ता के सौदे में वह बात भी दबा दी है हो….?      और पुरा मामला शांत हो गया । 

साथ ही एक कमजोर मुख्यमंत्री के मजबूरी 

मजबूती का रहस्य कभी उजागर नहीं हुआ ।


लड़कियों के यौन शोषण का आरोप 

अजमेर दरगाह के खादिमों के परिवार पर

लड़कियों को फंसाने के लिए कुछ यूं बिछाते थे जाल

90 के दशक की शुरुआत में अजमेर में केवल दो ही रेस्तरां थे, एलीट और हनी ड्यू. उस समय, ये हैंग आउट स्पॉट (युवाओं के मिलने-जुलने के स्थान) अभी भी काफी नए-नवेले थे, ये दोनों अजमेर रेलवे स्टेशन के पास स्थित थे, जो नई ट्रेनों के नेटवर्क की बदौलत देश के बाकी हिस्सों से पहले से बेहतर तरीके से जुड़ा हुआ था, सोफिया स्कूल और सावित्री स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां यहीं जाती थीं, अजमेर दरगाह के केयरटेकर यानी खादिमों के परिवार से आने वाले नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती अपनी खुली जीप, एम्बेसडर और फिएट कारों में घूमते थे, पैसा, सामाजिक प्रभाव और सियासी ताकत सब कुछ उनके पास था, लड़कियों को महंगे गिफ्ट देना और रेस्तरां में खाना खिलाना इन लोगों के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती दोनों ने हिंदू लड़कियों को जल में फसाने के लिये मुस्लिम लड़कियों का सहारा लिया,होटलों में खाना,जन्मदिन पर पार्टी करना और घूमने घुमाने का सिलसिला धीरे धीरे शुरू हुआ,जो इतने बड़े बलात्कार काण्ड का कारण बना ।


बलात्कारी  'शरीफ' ख़ादिम से कुछ ऐसे करवाई जाती थी लड़कियों से मुलाकात


हिन्दू लड़कियों का शिकार करने अब तक इन ख़ादिम मुल्लो ने पूरी गैंग तैयार कर ली थी, इसका एक ही उद्देश था लड़कियों के साथ बलात्कार करो फिर उन्ही बलात्कार की शिकार लड़कियों द्वारा दूसरी लड़कियों (सहेलियों, मुहल्ले, परिचितों) को ब्लैक मेलिंग कर बुलाओ फिर उनसे बलात्कार कर उनका भी फोटो बनाओ अर्थात् संपूर्ण शहर में इन बलात्कारियों का आतंक स्थापित हो चुका था । अजमेर ब्लैकमेल कांड में फारुक, नफीस के साथ अनवर, मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, सलीम, शमशुद्दीन, सुहैल वगैरह भी शामिल थे,  इन लोगों ने गैस कनेक्शन जैसी चीजें तक दिलवाने के लिए लड़कियों को अपना शिकार बनाया, इन लड़कियों को नफीस और फारुक से ये कहकर मिलवाया जाता था कि ये लोग बहुत शरीफ लोग हैं. जिसके बाद ये शरीफ लोग तमाम लड़कियों को अजमेर के एक बंगले, एक फार्महाउस और एक पोल्ट्री फार्म में ले जाकर उनका यौन शोषण करते थे और अश्लील तस्वीरों के सहारे ब्लैकमेल करते रहते थे । स्थिति यह हुई की अजमेर में पढ़ने बाली हर लड़की जाने अनजाने बदनाम होने लगी । डरी सहमी लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ दी कुछ ने सामाजिक मर्यादा के करण आत्महत्या करली । परन्तु इन अपराधियों के गिरेवान में हांथ डालने का साहस सरकार / शासन / प्रशासन / नेता / समाज सेवियो किसी में नहीं हुआ ।



2004 में सामने आये दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) के ‘एमएमएस कांड‘ से बहुत पहले हुआ यह कांड कई सारी युवतियों के साथ सामूहिक बलात्कार और वीडियो रिकॉर्डिंग तथा तस्वीरों के माध्यम उन्हें अपने आप को उनके हवाले करने और चुप्पी साधे रखने के लिए ब्लैकमेल करने का मामला था, अजमेर गैंगरेप और ब्लैकमेल का मामला राजनीतिक संरक्षण, धार्मिक पहुंच, दण्डभाव से मुक्ति और छोटे शहर के ग्लैमर के जहरीले मिश्रण से उपजा एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और जघन्य आपराधिक मामला था । अजमेर में हर कोई जानता था कि आरोपी कौन हैं, वे थे मशहूर चिश्ती जोड़ी फारूक और नफीस – जो अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़े बड़े परिवार से संबंधित थे – और उनके दोस्तों का गिरोह, इन लोगों ने स्कूल जाने वाली कई सारी युवतियों को महीनों तक धमकियों और ब्लैकमेल के जाल में फंसाया और उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया, एक फोटो कलर लैब ने इन महिलाओं की नग्न तस्वीरें छापी और उन्हें वितरित करने में मदद की, जब लंबे समय के बाद यह सारी खबर सामने आई, तो अजमेर में धार्मिक तनाव बढ़ गया और पूरा शहर बंद भी हो गया, लेकिन, बहुत से लोग नहीं जानते थे कि ये महिलाएं कौन थीं और उनके मामले के सार्वजनिक बहस के बाद वे कहां गायब हो गईं..........?

स्थानीय मीडिया ने इन युवतियों को ‘आईएएस-आईपीएस की बेटियां‘ कहा, लेकिन वे सिर्फ कुलीन घरों से ही नहीं थीं, उनमें से कई सरकारी कर्मचारियों के मामूली, मध्यमवर्गीय परिवारों से आती थीं, जिनमें से कई वदनामी भरे हंगामे से डरकर अजमेर या फिर दुनिया छोड़कर चली गई थी ।



‘हर बार जब वे किसी पुलिसकर्मी को देखती हैं, तो घबरा जातीं हैं’

पुलिस के रिकॉर्ड (अभिलेख) में इन बलात्कार पीड़िताओं के प्रथम नाम और सरकारी कॉलोनी के उन अस्पष्ट पतों का उल्लेख है, जहां से वे बहुत पहले चलीं गयीं थीं, उस समय की स्कूली छात्राएं रहीं ये सामूहिक बलात्कार पीड़िताएं अपने-अपने पतियों, बच्चों और पोते-पोतियों के साथ अलग-अलग शहरों में चली गईं, जिससे पुलिस के लिए उनका पता-ठिकाना रखना लगभग असंभव हो गया। पिछले कई दशकों से, किसी आरोपी के आत्मसमर्पण करने या उसके गिरफ्तार होने पर अदालतों ने हर बार इन पीड़िताओं को तलब किया, जब भी सुनवाई शुरू हुई, पुलिस वाले समन देने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं के घरों पर जा धमके। जिन महिलाओं का शोषण पहले मुल्लो ने किया उनका भय आज भी बना हुआ है, मीडिया / पुलिस / या जिसके हांथ भी इस बलात्कार काण्ड की फ़ाईल लगी उसने इन पीड़ितो को ब्लैकमेल किया / शारीरिक और आर्थिक शोषण हुआ । घर की मर्यादा बहू, बेटी, माँ, मौसी, मामी यहाँ तक की दादियों का भी भरपूर शोषण हुआ । 

पत्रकार मदन सिंह की कर दी गई हत्या इंडिया टुडे की एक खबर के मुताबिक, उस समय एक स्थानीय अखबार के पत्रकार मदन सिंह ने अपने अखबार में रोज लड़कियों की ऐसी ही तस्वीरें छापना शुरू कर दिया, मदन सिंह के खिलाफ एक लड़की ने एफआईआर दर्ज करवाई कि वो तस्वीरें न छापने के लिए उससे पैसों की मांग कर रहा था, कुछ समय बाद मदन सिंह ने अजमेर ब्लैकमेल कांड से जुड़े 4-5 बड़े नाम छाप दिए, इसके बाद उस पर एक जानलेवा हमला हुआ, जिसका आरोप उसने पूर्व कांग्रेस विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल समेत कुछ लोगों पर लगाया था, इसके कुछ दिनों बाद 12 सितंबर 1992 को मदन सिंह की अस्पताल में घुसकर हत्या कर दी गई, भारत की मर्यादा कानून की चौखट पर बदनाम होने बार बार बिवश हुई / हो रही है । परन्तु न्याय कही दूर दूर तक नजर नहीं आता यही करण है की अपराधी निश्चिन्त और पीड़ित आज भी भयभीत व चिंतित है ।

वकीलों का कहना है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) की धारा 273 के तहत, अदालत को आरोपी की उपस्थिति में पीड़िता की गवाही दर्ज करनी होती है – यह एक ऐसी प्रक्रिया जो इन महिलाओं को फिर से आघात पहुंचाती है। इसे लेकर पुलिस भी हताश-परेशान होती है,  दरगाह थाने के थाना प्रभारी  कहते है कि, ‘कितनी बार हम उन्हें अदालत में घसीटेंगे..........? फोन करने पर वे-बस महिलायें रोती है / अपना घर परिवार विखर जाने के डर से वो सहम जाती है कुछ महिलायें हिम्मत कर हमें गालियां देती हैं, आज भी इस काण्ड से भयभीत महिलायें जब भी अपने दरवाजे पर किसी पुलिसकर्मी को देखती हैं, तो वे आतंकित हो जाती हैं। पुलिस की ज़बरदस्ती के करण कई महिलाओं ने न्यायालय में बयान दिये उसके बाद आत्महत्या करली / कई ने आत्महत्या की कोशिश की । यह बहुत ही मुस्किल और कष्टदाई स्थिति है की पीड़ित अपनी पीड़ा में आज भी भयभीत है घुटरही है । जो अब न्याय नहीं इस मुकदमे य अपने जीवन से छुटकारा चाहती है ।

सितंबर 1992 में मुकदमा शुरू होने के बाद से, पुलिस ने छह आरोपपत्र दायर किए हैं, जिनमें 18 आरोपियों (शुरुआत में आठ से बढ़ाकर) और 145 से अधिक गवाहों का नाम है. यह मामला राजस्थान में 12 सरकारी अभियोजकों, 30 से अधिक एस.एच.ओ., दर्जनों एस.पी., डी.आई.जी., डी.जी.पी. और पांच बार सरकार में बदलाव तक फैला हुआ है, अजमेर पुलिस को हमेशा से संदेह था कि इस मांमले में सैकडो किशोरियों का शोषण किया गया था, लेकिन प्राथमिक जांच के दौरान केवल 17 पीड़िताओं ने ही अपने बयान दर्ज किए, उनमें से भी अधिकांश अंततः अपनी बात से पलट गईं। कुछ लापता हुई कुछ ने आत्महत्या करली । यह मामला जिला अदालत से राजस्थान उच्च न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट, महिला अत्याचार न्यायालय में घूमते हुए, अजमेर की पॉक्सो अदालत तक पहुँचा ।

गैंगरेप, ब्लैकमेलिंग, फोटो ग्राफी, प्रलोभन और ….?

चाहे यह कोई ‘अपराध की बड़ी सी कहानी’ हो या न हो, परन्तु अदालत के दस्तावेज और इस मामले से जुड़े लोगों के बयान अजमेर के एक बंगले, एक फार्महाउस और एक पोल्ट्री फार्म के बंद दरवाजों के पीछे 90 के दशक की शुरुआत में घटित हुई प्रलोभन, यौन शोषण और ब्लैकमेल की एक घिनौनी तस्वीर पेश करते हैं कई महिलाओं ने अपनी गवाहियां वापस ले लीं और इस बात की पूरी संभावना है कि कुछ बातें कभी सामने नहीं आईं, लेकिन घटनाओं की ज्ञात समयरेखा 1990 में शुरू होती है। उस वर्ष किसी समय, सावित्री स्कूल की कक्षा 12 की छात्रा ‘गीता’ नामक एक महत्वाकांक्षी युवा लड़की ने फैसला किया कि वह कांग्रेस पार्टी में शामिल होना चाहती है. उसे लगा कि किस्मत उसके साथ थी क्योंकि अजय (गीता और अजय नाम काल्पनिक है ) नामक एक परिचित ने उसे बताया कि वह उन ‘लोगों’ को जानता है जिनसे उसे बात करनी चाहिए: अर्थात् वे लोग थे नफीस और फारूक चिश्ती। उन दिनों गैस का कनेक्शन बहुत बड़ी बात हुआ करती थी, गीता अजय (गीता और अजय नाम काल्पनिक है ) को गैस कनेक्शन पाने और कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा के बारे में बताती रहती थी, और उसने इसका फायदा उठाया. उसने उसे नफीस और फारूक चिश्ती से यह कहते हुए मिलवाया कि वे भले लोग हैं 

इस मामले में 2003 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में गीता की गवाही का विवरण दिया गया था कि कैसे उसे ‘ग्रूम’ (अच्छी तरह से संवारा) किया गया, फिर उसका यौन उत्पीड़न किया गया, और फिर चिश्ती जोड़ी और उनके दोस्तों के लिए और अधिक युवा महिलाओं को लाने के लिए उसे ब्लैकमेल किया गया. गीता के अनुसार, जब वह अजय के साथ थी तब भी नफीस और फारूक उससे कई बार मिले थे, एक बार जब वह बस स्टैंड पर थी तो वे अपनी मारुति वैन में सवार हो उसके पास आये थे, उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वे उसे कांग्रेस में एक ‘असाइनमेंट’ के साथ जगह दिला देंगे

नफीस और फारूक के ही एक सहयोगी सैयद अनवर चिश्ती ने उसे एक फॉर्म भरने के लिए दिया और कहा कि इसके साथ उसे एक पासपोर्ट आकार की फोटो जमा करने की जरूरत होगी

सब कुछ एकदम से वैधानिक लग रहा था, इसलिए एक दिन गीता के स्कूल जाने की राह में जब नफीस और फारूक ने उसका रास्ता रोक अपनी वैन में उसे लिफ्ट देने की पेशकश की, तो उसे कोई खास चिंता नहीं हुई, उसने उनकी पेशकश स्वीकार कर ली, लेकिन उसे स्कूल ले जाने के बजाय, वे दोनों उसे एक फार्महाउस में ले आए, अपनी गवाही में, गीता ने कहा कि उसका सोचना था कि रास्ते में इस बदलाव का उद्देश्य कांग्रेस में उसके शामिल किये जाने पर चर्चा करना था, लेकिन जिस क्षण वह नफीस के साथ अकेली हुई उसी पल उसने उस पर झपट्टा मारा और जैसा वह कह रहा था वैसा न करने पर उसे जान से मारने की धमकी देते हुए उसका यौन उत्पीड़न किया। गीता ने अपनी गवाही में बताया कि कुछ दिनों बाद उसने उसे फिर से प्रताड़ित किया और यह बात दोहराई कि अगर उसने किसी को इस यौन हमले के बारे में बताया तो उसे इसके लिए पछताना होगा

यह तो केवल शुरुआत थी, इस मर्दों ने गीता को अन्य लड़कियों से उन्हें मिलवाने के लिए मजबूर किया, कभी-कभी वह उन्हें अपने ‘भाइयों’ के रूप में मिलवाती थी ताकि उनका विश्वास बन सके और वे फ़ॉय सागर रोड पर स्थित उनके फार्महाउस या फारूक के बंगले में होने वाली ‘पार्टियों’ में स्वेच्छा से शामिल हों, इनमें से कई महिलाओं का एक या कई पुरुषों द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था, बलात्कारी आमतौर पर बलात्कार की तस्वीरें भी लेते थे क्योंकि शर्म और ब्लैकमेल इन पीड़िताओं की चुप्पी बरक़रार रखने की सबसे विश्वसनीय गारंटी थी, ‘मीडिया ने यह कहकर इस मामले को सनसनीखेज बना दिया कि ये सब आईएएस-आईपीएस अधिकारियों की बेटियां हैं. उनमें से एक राजस्थान सिविल सेवा अधिकारी की बेटी थी और दूसरी एक कृषि अधिकारी की

यहां परेशान होने वाली बात यह है कि, गीता की गवाही के अनुसार सामूहिक बलात्कार के इस दौर के शुरुआती दिनों में, उसने और एक अन्य पीड़िता कृष्णाबाला  (कृष्णाबाला काल्पनिक नाम है) ने एक पुलिस कांस्टेबल से संपर्क किया था, जिसने उन्हें अजमेर पुलिस की विशेष शाखा में काम करने वाले एक अधिकारी से भी मिलवाया, उन्होंने पीड़िताओं को उनकी ब्लैकमेल वाली तस्वीरों को वापस प्राप्त करने में मदद करने का वादा किया, लेकिन जल्द ही इन महिलाओं को इस बात के लिए धमकी भरे फोन / संदेशे आए और उनसे पूछा गया कि उन्होंने पुलिस से संपर्क क्यों किया......?

गीता ने दावा किया कि इस कांस्टेबल ने एक बार उसे और कृष्णाबाला को दरगाह क्षेत्र से तस्वीरें बरामद करने के लिए अपने साथ जाने के लिए कहा था, जब पुलिसकर्मी कुछ दूरी पर खड़ा था, तभी इस गिरोह के सदस्यों में से एक, मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, चहलकदमी करते हुए उनके पास आया और उसने गुप्त रूप से कहा, कि ‘जो खेल वे खेल रहीं हैं वह एक ऐसा खेल था जिसे उन्होंने बहुत पहले ही खेल रखा है, वे तस्वीरें कभी वापस नहीं की गईं (आश्चर्य की बात है की पुलिस से की गई बात अपराधियों तक कैसे पहुची, पुलिस के सामने ही पीड़िता को अपराधी द्वारा धमकी फिर कैसे मिलता न्याय)

फिर सुर्खियों में है अजमेर दरगाह का खादिम

उसी अजमेर का एक और चिश्ती फिर से सुर्खियों में हैं। सलमान चिश्ती खुद को ख्वाजा के दरगाह का खादिम बताता है। उसने नूपुर शर्मा की हत्या करने वालों को अपना मकान देने का ऑफर करते वीडियो बनाया जो वायरल हो गया। अब सलमान गिरफ्तार हो चुका है। खबरों के मुताबिक, सलमान पर दरगाह थाने में पहले से ही कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। यानी, वह हिस्ट्रीशीटर है। ऊपर 1992 के जिस घटना का जिक्र किया गया है कि उसका एक मुख्य आरोपी नफीस चिश्ती भी हिस्ट्रीशीटर ही है। जो अभी जमानत पर जेल से बाहर है। फारूक समेत पांच आरोपियों के साथ उस पर भी 1992 अजमेर ब्लैकमेल कांड में पॉक्सो कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।

ख़ादिम चिस्ती खानदान अर्थात् मोहम्मद पैग़म्बर का परिवार

 ‘दरगाह पर आने वाले लोग उनके हाथ चूमते थे उन्होंने इस मजहबी ताकत का इस्तेमाल राजनीतिक प्रभाव पाने के लिए किया. एस.एच.ओ. से लेकर एस.पी. तक सब उन्हें एफ.आई.आर. पर बातचीत करने या अपील जारी करने के लिए फोन करते थे, कोई उन्हें न नहीं कह सकता था.’ इस बीच, इन महिलाओं की सबसे बड़ी आशंका सच हो गई, उस फोटो लैब जहां यौन उत्पीड़न की ये तस्वीरें छापी जाती थीं के कुछ कर्मचारियों ने उन तस्वीरों को प्रसारित कर दिया, जिससे उनके प्रति हुआ दुर्व्यवहार और भी बढ़ गया, अगर इसका कोई अच्छा नतीजा हुआ तो वह यह था कि सारा मामला लोगों के सामने आगया 


हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं ने हंगामा कर दिया

इसने लगभग तुरंत ही हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं ने हंगामा खड़ा कर दिया, इस मामले में पुरुषोत्तम नामक एक रील डेवलपर (तस्वीरें साफ़ करने वाला) ने जब अपने पड़ोसी देवेंद्र जैन को एक अश्लील पत्रिका में छपीं तस्वीरों को देखते हुए पाया तो उसने यौन शोषण की इन तस्वीरों के बारे में डींग मारी, पुरुषोत्तम ने स्पष्ट रूप से उपहास करते हुए कहा था : ‘यह तो कुछ भी नहीं है, मैं तुम्हें असली चीजें दिखाऊंगा. ‘इस ‘असली चीज’ ने देवेंद्र के कान खड़े कर दिए. उसने इन तस्वीरों की प्रतियां बनाईं और फिर उन्हें ‘दैनिक नवज्योति’ तथा हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं को भेज दिया, इसके बाद हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं ने ये तस्वीरें पुलिस को दीं, जिसने उनकी जांच शुरू की, इस बीच, 21 अप्रैल 1992 को इस यौन शोषण के बारे में ‘दैनिक नवज्योति’ के लिए अपनी पहली खबर लिखी. हालांकि, इस खबर ने तब तक कोई ज्यादा हलचल नहीं मचाई, जब तक कि इस अखबार ने इस बारे में अपनी दूसरी रिपोर्ट – इस बार पीड़िताओं की बिना कपड़ों वाली धुंधली की गईं तस्वीरों के साथ – प्रकाशित नहीं की, यह खबर 15 मई 1992 को सामने आई और  को लेकर जनता में फैले व्यापक आक्रोश के कारण 18 मई को पूरा अजमेर बंद रहा, 27 मई को, पुलिस ने कुछ आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत वारंट जारी किया, और तीन दिन बाद, तत्कालीन उत्तरी अजमेर के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) हरि प्रसाद शर्मा ने गंज पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की, तत्कालीन-एसपी सीआईडी-क्राइम ब्रांच, एन.के. पाटनी को इस मामले की जांच के लिए जयपुर से अजमेर भेजा गया । पत्रकारों से बात करते हुए, एसपी सीआईडी-क्राइम ब्रांच, एन.के. पाटनी, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने कहा कि यह हाई-प्रोफाइल मामला ऐसे समय में आया था जब पूरे भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा था, लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा कुछ साल पहले ही हुई थी और यह मामला बाबरी मस्जिद के विध्वंस से कुछ महीने पहले आया था, पाटनी ने कहा, ‘यह तब एक बड़ी चिंता की बात थी कि कैसे इस मामले को सांप्रदायिक होने से रोका जाए क्योंकि मुख्य आरोपी मुस्लिम थे और अधिकांश पीड़िताएं हिंदू थीं । उन्होंने जांच के दौरान सात गवाहों के बयान दर्ज करने की बात याद की, जिसमें से एक वह चश्मदीद गवाह भी शामिल थी जो बाद में अदालत में गवाही देने गयी थी, पाटनी ने कहा, ‘मैं सादे कपड़ों में उसके घर गया था, मुझे उसे यकीन दिलाना पड़ा कि उसने कुछ भी गलत नहीं किया है, काफी काउंसलिंग (समझाने-बुझाने) के बाद उसने अपना बयान दर्ज कराया’। सितंबर 1992 में, पाटनी ने पहली चार्जशीट दायर की, जो 250 पृष्ठों में थी और जिसमें 128 प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के नाम और 63 सबूत थे, जिला सत्र अदालत ने 28 सितंबर को सुनवाई शुरू की थी


                                               मुकदमे, और फिर मुकदमे..

1992 के बाद से, अजमेर बलात्कार मामले ने कई अलग-अलग मुकदमों, अपीलों और कुछ लोगों के बरी होने के साथ एक जटिल और लम्बा कानूनी रास्ता तय किया है। कुल मिलाकर अठारह लोगों को आरोपी के रूप में नामितकिया गया था, जिनमें से एक, पुरुषोत्तम, 1994 में आत्महत्या कर ली थी, मुकदमे चलाये जाने वाले पहले आठ संदिग्धों को 1998 में जिला सत्र अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन साल 2001 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने उनमें से चार को बरी कर दिया था और फिर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2003 में बाकी आरोपियों की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया। बाकी संदिग्धों को अगले कुछ दशकों में गिरफ्तार किया गया और उनके मामलों को अलग-अलग समय पर मुकदमे के लिए भेजा गया

फारूक चिश्ती ने दावा किया कि वह मुकदमे का सामना करने के लिए मानसिक रूप से अक्षम है, लेकिन 2007 में, एक फास्ट-ट्रैक अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई, 2013 में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने माना कि उसने पर्याप्त समय कैद में बिता दिया है और इस वजह से उसे रिहा कर दिया गया, नफीस चिश्ती, जो एक हिस्ट्री-शीटर (आपराधिक इतिहास वाला व्यक्ति) था और जो नशीली दवाओं की तस्करी के मामलों में भी वांछित था, 2003 में उस वक्त तक फरार रहा था जब दिल्ली पुलिस ने उसे पहचाने जाने से बचने के लिए बुर्का पहने हुए पकड़ा था एक अन्य संदिग्ध इकबाल भट 2005 तक गिरफ्तारी से बचता रहा, जबकि सुहैल गनी चिश्ती ने 2018 में आत्मसमर्पण कर दिया,

इस तरह के हर घटनाक्रम के बाद वैसी पीड़िताओं को जो अभी भी गवाही देने की इच्छुक या सक्षम थीं, वापस अदालत में घसीटा गया, फिलहाल छह आरोपियों- नफीस चिश्ती, इकबाल भट, सलीम चिश्ती, सैयद जमीर हुसैन, नसीम उर्फ टार्जन और सुहैल गनी पर पॉक्सो कोर्ट में मुकदमा चल रहा है, लेकिन वे सभी जमानत पर बाहर हैं एक और संदिग्ध, अलमास महाराज, कभी पकड़ा ही नहीं गया और उसके बारे में माना जाता है कि वह अमेरिका में रह रहा है, उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट और रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया है। पहली चार्जशीट दाखिल करने वाले एन.के. पाटनी ने कहा, ‘कुछ आरोपियों को उम्रकैद की सजा दी गई, लेकिन कुछ पुलिस अधिकारियों और विशेष अभियोजकों ने कई सालों में इस सारे मामले को कमजोर कर दिया’

‘लोग आज भी उन दोनों का हाथ चूमते हैं,भले ही वह अपराधी क्यों ना हो

नफीस और फारूक चिश्ती अजमेर में एक ऐशो-आराम का जीवन जी रहे हैं और दरगाह शरीफ में अक्सर आते रहते हैं, जहां कुछ वफादार अभी भी उनके हाथों को चूमते हैं नफीस एक ‘आदतन अपराधी’ है, लेकिन इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा कभी प्रभावित नहीं हुई, ‘साल 2003 में, उसे 24 करोड़ रुपये की स्मैक के साथ पकड़ा गया था, उसके खिलाफ अपहरण, यौन उत्पीड़न, अवैध हथियार और जुआ खेलने के भी मामले दर्ज हैं(अर्थात् वह भारत की बर्बादी में पुरा योगदान कर रहा है)

सावित्री स्कूल, जिसकी बाहरी दीवारों पर माधुरी दीक्षित, कल्पना चावला और इंदिरा गांधी जैसी महिला प्रतीकों की थोड़ी पुरानी पड़ चुकी पेंटिंग बनी हैं, अभी भी चल रहा है, लेकिन इसका छात्रावास 1992 के बाद से बंद है. सोफिया स्कूल भी अब लड़कियों के लिए अपनी छात्रावास वाली सुविधा नहीं चलाता है, दोनों में से कोई भी स्कूल अपनी प्रतिष्ठा को पूरी तरह से वापस नहीं पा सके हैं

लड़कियों को ब्लैकमेल कर और छात्राओं को बनाया जाता था शिकार

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर @starboy2079 नाम के एक यूजर ने इस पर एक ट्विटर थ्रेड लिखा है, इसमें लिखा है कि लड़कियां जब इन लोगों से तस्वीरों की निगेटिव रील देने की मांग करती थीं, तो उनसे और लड़कियों से बात करने का दबाव बनाया जाता था, ऐसा होने के बाद निगेटिव नहीं मिलते थे, बल्कि शिकार की लिस्ट में एक लड़की और जुड़ जाती थी, बदनामी के डर से लड़कियां चुप रहती थी और दूसरी लड़कियों को भी मजबूरी में उनका शिकार बनवाने को राजी हो जाती थीं


कलंक की कालिमा और अपमान का घूँट

सालों तक, इस ‘कांड’ का कलंक, कम-से-कम अजमेर के अधिक रूढ़िवादी वर्गों की नज़र में, शहर की सभी युवतियों को कलंकित करता रहा था, चाहे वे उस गिरोह के सम्पर्क में आईं हो या नहीं ‘कोई भी अजमेर की लड़कियों से शादी नहीं करना चाहता था, 90 के दशक में लोग अजमेर में शादी करने से पहले लड़कियों की फोटो आमजान / पुलिस स्टेशन / प्रेस को ज़रूर दिखाकर पूछते थी कही यह लड़की भी ख़ादिमो के बलात्कार का शिकार तो नहीं हुई । क्या वह ‘उनमें से एक’ तो नहीं हैं। लोग अजमेर में लड़कों का रिश्ता करने से वर्षों तक कतराते रहे है । यह दुर्भाग्य ही था की अजमेर में यदि कोई लड़की किसी करण वस आत्महत्या करती थी तो उसके मरने के बाद भी मृतक युवती का सम्बन्ध ख़ादिम के द्वारा बलात्कार से जोड़कर देखा जाता था, अर्थात् मारने के बाद भी कलंक से छुटकारा नहीं था ।

पीड़िताओं के लिए, इसके बाद सामने आने वाल नतीजा बड़ा कष्टदायक था, खासकर उन कुछ लोगों के लिए जिन्होंने अदालत में गवाही देने का फैसला किया था, ऐसी ही एक पीड़िता हैं कृष्णाबाला, जिसके बयानों ने कई लोगों की सजाओं में योगदान दिया, राजस्थान उच्च न्यायालय के 2001 के फैसले में कहा गया है कि उसने अदालत में फारूक, इशरत अली, शम्सुद्दीन उर्फ माराडोना और पुत्तन की पहचान की, यह उसकी इस गवाही का भी विवरण देता है कि कैसे इन लोगों के साथ-साथ सुहैल गनी और नफीस द्वारा उसका सामूहिक बलात्कार और ब्लैकमेल किया गया था, फिर, 2005 में, कृष्णाबाला अचानक गायब हो गईं, कृष्णाबाला के वयान से कई राज और खुलने थे ना जाने कितनो को सजा होना सुनिश्चित था परन्तु लापता कृष्णाबाला का कही कोई पता नहीं था ।

तीन मुकदमों में अपने बयान से मुकरने वाली पीड़िता सुषमा (सुषमा परिवर्तित नाम) ने 2020 में फैसला किया कि वह आखिरकार अदालत में अपनी बात रखेगी 

लिपस्टिक और पाउडर के लिए 200 रुपये

मीडिया से बात करते हुए 51 वर्षीय सुषमा ने कहा कि वह अपने सदमे को दबाने की कोशिश करने में बिताये गए कई सालों के बाद इस बारे में बात करने के लिए तैयार हैसुषमा ने तस्वीरों का एक पुलिंदा, जिनमें चमकदार आंखों वाली एक लंबी, गोरी-चमड़ी वाली लड़की दिखाई दे रही है, सामने लाते हुए कहा, ‘मीडिया में से कोई भी मेरे पास तक कभी पहुंचा हीं नहीं, इस घटना को मैंने अपनी यादों में दफ़न कर देने की कोशिश की ’ उसने कहा, ‘मेरे बालों को देखो, यह कितने मोटे हुआ करते थे । लेकिन, इस गिरोह के शिकंजे में आने से पहले भी सुषमा एकदम से असुरक्षित थी, एक गरीब परिवार की छह में से सबसे छोटी संतान होने के साथ वह बचपन में भी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित थी और जब वह कक्षा 8 में थी तभी उसने स्कूल जाना छोड़ दिया था, सुषमा के मुताबिक, इस गैंग से उसका संपर्क सूत्र (लिंक) कैलाश सोनी नाम का एक परिचित था, वह उसे फुसलाकर एक सुनसान इमारत में ले गया, उसके साथ बलात्कार किया और फिर सात या आठ अन्य मर्दों को भी उसका यौन शोषण करने के लिए बुलाया, सुषमा उस वक्त महज 18 साल की थीं, उसने कहा, ‘मैं यह समझने के लिए बहुत भोली थी कि उन्होंने मेरे साथ क्या किया है, उन्होंने बारी-बारी से मेरा रेप किया, उनमें से एक मेरे साथ रेप करता, जबकि दूसरा अपनी बारी का इंतजार करते हुए तस्वीरें खींचता’

सुषमा की नग्न तस्वीरें और साथ ही उस जीर्ण-शीर्ण इमारत की तस्वीरें उस मुक़दमे में पेश किए गए सबूतों का हिस्सा थीं। सुषमा ने कहा, ‘मेरे साथ यह सब करने के बाद, नफीस ने मुझे 200 रुपये दिए और मुझे कुछ लिपस्टिक और पाउडर खरीदने के लिए कहा.’ यह सब कहते हुए सुषमा का क्रोध अन्ततः उसके रक्तिम चेहरे से फूट पड़ा था

उसने कहा कि ब्लैकमेल वाली तस्वीरों के बारे में सोचकर वह चिंतित हो जाती है और उसने हमें बार-बार यह आश्वस्त करने के लिए कहा कि उसके चेहरे की तस्वीर प्रकाशित नहीं की जाएगी, सुषमा ने बताया ‘मेरी दो भतीजियां हैं, वे अभी भी नहीं जानते कि मेरे साथ क्या हुआ था.’ सुषमा उन कुछ एक पीड़िताओं में एक थीं, जिनकी 1992 में चिकित्सकीय जांच की गई थी, और उससे गवाही की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन इस बीच उसका खुद के जीवन में जबर्दस्त उलट-पुलट मची थी.। उसने कहा, ‘मैं गर्भवती हो गई थी, मेरी मां [गर्भपात करवाने के लिए] सब कुछ करने की कोशिश की, लेकिन वो कहते हैं ना की हराम का बच्चा कभी गिरता नहीं तो ये भी नहीं गिरा. हालांकि, वह मृत ही पैदा हुआ.’। सुषमा ने आगे कहा, एक साल बाद एक रिक्शा वाले ने उसके साथ फिर बलात्कार किया और उसे 25 दिनों तक अपने घर में बंदी बनाकर रखा, वह फिर से गर्भवती हुई और इस बार उसने एक बच्चे को जन्म दिया जिसे एक दूर के रिश्तेदार ने गोद ले लिया था, सुषमा ने बताया, ‘उन्होंने उसे दो या तीन महीने तक रखा और फिर वह भी मर गया.’ अब तक सुषमा का मानसिक स्वास्थ्य टूट की कगार पर था और वह घंटों इधर-उधर घूमती हुई मस्जिदों और मंदिरों में बैठी रहती थी, उसका परिवार उसे ओझा-गुनी के पास, और यहां तक कि इलेक्ट्रोकोनवल्सी थेरेपी (बिजली के झटके) के लिए भी, ले गया, लेकिन इन सब ने उसकी ज्यादा कुछ मदद नहीं की, उसने सरलता से कहा, ‘मेरा जीवन नरक हो गया है,’। जब वह 22 साल की थी, तब उसके परिवार वालों ने उसकी शादी किसी दूसरे शहर के एक फल विक्रेता से कर दी. अपनी शादी की रात में, उसने उसे अपनी व्यथा के बारे में सब बता दिया. उसके पति ने तब कोई प्रतिक्रिया नहीं की, लेकिन चार दिन बाद उसने सुषमा को उसके माता-पिता के घर छोड़ दिया और फिर कभी नहीं लौटा, सुषमा ने कहा, ‘जब मेरे हाथों में मेंहदी लगी ही हुई थी, तभी मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया.’ छह साल बाद, जब वह 28 साल की थी तो वह एक और आदमी से मिली और बाद में उसके साथ उसे एक बेटा भी हुआ, उसके दूसरे पति ने उसे 2010 में तलाक दे दिया, मगर सुषमा का कहना है कि उसने उससे प्यार करना कभी नहीं छोड़ा, तीन महीने पहले सुषमा को दूसरे की पत्नी हो गया थी, लेकिन सुषमा ने उसके सम्मान में उनके नामों के पहले अक्षरों से अंकित दो अंगूठियां बनवाई. उसने कहा, ‘वह अनिल कपूर की तरह दिखता था और वह मेरे इतिहास के बारे में सब जानता था.’ सुषमा ने बताया कि उनका बेटा कभी उनके बहुत करीब नहीं रहा क्योंकि उसकी दादी ही हमेशा से उसकी देखभाल करती थीं,जब सुषमा छोटी थीं, उसके अब-मर चुके चाचा उसे कई बार अदालत में ले गए, लेकिन वह अपने बयान से मुकर गई. इसका कारण पूछे जाने पर उसने कहा, ‘नफीस और गिरोह के कई लोग उसी इलाके में रहते हैं जहां मेरी बहनें रहती हैं.’ मैं उन्हीं गलियों से गुजरता थी. उन्होंने मुझे धमकी दी थी.’ हालांकि, जब दरगाह पुलिस स्टेशन के एक पुलिसकर्मी ने 2020 में सुषमा को खोज निकला और उसे अदालत का समन सौंपा, तो वह गवाही देने के लिए तैयार हो गईं. वह घबराई हुई थीं, लेकिन जब वह पुलिसकर्मी उसके साथ अदालत में गया तो वह आश्वस्त महसूस करने लगी. वह कहती हैं, ‘सौभाग्य से, 2020 में, नफीस और बाकी लोगों को मेरी सुनवाई के बारे में पता नहीं था.’। साल 2020 में जब सुषमा ने पॉक्सो कोर्ट रूम में कदम रखा था तो उसके बयान से मुकरने के इतिहास और उसके मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धी संघर्षों को देखते हुए किसी को उससे कोई खास उम्मीद नहीं थी, अपनी पहले की अदालती पेशियों में, उसने यौन उत्पीड़न की तस्वीरें और अन्य सबूत दिखाए जाने के बावजूद अपने बलात्कारियों को पहचानने से इनकार कर दिया था, 2001 में, जब राजस्थान उच्च न्यायालय ने कैलाश सोनी और परवेज अंसारी को बरी कर दिया था, तो पीठ ने कहा कि ‘[वह] अकेले ही अपीलकर्ताओं के खिलाफ अपराध को साबित कर सकती थी …’. परन्तु, इस बार, सुषमा आत्मविश्वास से भरी और आश्वस्त लग रही थी और उसने सीधे अपने सामने खड़े मर्दों की आंखों में देखा, जब उससे अपने बलात्कारियों की पहचान करने के लिए कहा गया, तो उसने एक-एक करके स्पष्ट और पुरे ज़ोर के साथ उनके नाम बताए: ‘नफ़ीस, जमीर, टार्ज़न…’वह थोड़ी देर के लिए बस तभी झिझकी जब उसकी नज़र अगले चेहरे पर चली गई क्योंकि वह उसका नाम याद रखने में असमर्थ थी, फिर, उसने उसकी ओर इशारा किया और कहा: ‘ये भैया भी था जिन्होन रेप करा.’ उसके सामने वाला वह शख्स था सुहैल गनी, जिसने 2018 में आत्म-समर्पण कर दिया था 51 की आयु में भी, उसने अपने बलात्कारी को भैया के रूप में संबोधित किया,

वह एक लाइन जो सामाजिक रिश्तों को झकझोर देने के लिये पर्याप्त थी ।

बलात्कारी भइया......?

           










अजमेर ( अजमेर दरगाहअजमेर शरीफ - दरगाह शरीफ, मोइनिद्दीन चिश्ती साहब और बहा के ख़ादिम की करतूत / सत्यता तो आप ने जानली अब मा.नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी साहब जी, प्रधानमंत्री, भारत सरकार द्वारा हर साल अजमेर भेजी जाने बाली चादरों के दर्शन भी करले ।

अब समझ में आया की तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखाबत साहब ने 

जो किया वह क्यों किया…..?


गुजरात की पवित्र धरती पतित क्यों हो रही है ।
देखते देखते महिलाये हो जाती है लापता ।
जनाने के लिये इस लिंक को देखे 

https://dewdoot.blogspot.com/2023/05/41.html

चादर और फादर के ग़ुलाम नेताओ ने देश को गर्त में मिला दिया ।


आपका
देवेन्द्र पाण्डेय "डब्बू जी "

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